कानपुर (ब्यूरो) एनआईए ने अपनी चार्जशीट में देशद्रोह, आतंक फैलाना, ट्रेन में धमाका, धमाकों की साजिश, प्रतिबंधित साहित्य बांटना, प्रतिबंधित इलाके में रेकी, देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहना, विदेशी असलहों का इस्तेमाल, धार्मिक तकरीरों से युवाओं का ब्रेनवॉश, सुरक्षा एजेंसियों को धोखे में रखना और उन पर फायरिंग करने के अलावा कुल 12 आरोप गिरफ्तार आतंकियों पर लगाए। वहीं एनकाउंटर और गिरफ्तारी में शामिल पुलिसकर्मी, पब्लिक के इविडेंस समेत 140 गवाह एनआईए कोर्ट में पेश किए गए। इनमें से 39 गवाह तो सिर्फ जाजमऊ से थे। जाजमऊ के छह आतंकियों समेत अन्य आतंकियों के घर और ठिकानों से आतंक से जुड़े 156 दस्तावेज भी अहम सबूत बने।

मार्च 2018 में शुरु हुआ था ट्रायल
मार्च 2017 में जाममऊ निवासी आतंकी सैफुल्लाह एटीएस की मुठभेड़ में मारा गया था। इसके बाद शुरू हुआ अरेस्टिंग का सिलसिला। केंद्र सरकार के आदेश के बाद जांच एटीएस से एनआईए ट्रांसफर कर दी गई। एनआईए ने सेंट्रल फॉरेंसिक टीम के साथ मिलकर इविडेंस कलेक्ट करने शुरू किए और केस को मजबूत करने के लिए गवाहों की तलाश शुरू की। एनआईए की इस सुनवाई के दौरान 50 लोगों की गवाही हुई। गवाहों को पूरी सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। यही 50 लोग इस मामले में सजा दिलाने में सहायक सिद्ध हुए। एटीएस की सुनवाई को छोड़ दिया जाए तो केवल एनआईए ने 12 आरोप तय किए।

बताते चलें कि गिरफ्तार आतंकियों पर दो दर्जन से ज्यादा आरोप थे, लेकिन गवाह और सुबूतों सुनवाई के बाद 12 आरोप ही तय हो सके। एनआईए सूत्रों की मानें अगर सभी गवाहों की गवाही होती तो इस मामले में सजा सुनाने में एक साल और लग सकता था। वहीं तीन गवाहों ने सुनवाई के दौरान दम तोड़ दिया। एनआईए सूत्रों के मुताबिक तीनों की नॉर्मल डेथ हुई थी.एनआईए के विशेष लोक अभियोजक की मेहनत थी कि पांच साल में ही मुकदमा और आतंकी अपने अंजाम तक पहुंच गए।