गोरखपुर (अमरेंद्र पांडेय)। इस बात का खुलासा किया है बीआरडी मेडिकल कालेज के मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ। तपस आइच ने अपनी स्टडी मेें। शराब का सेवन करने वाले 21-40 वर्ष के युवाओं पर स्टडी के लिए उन्होंने मनोचिकित्सकों की एक टीम बनाई। टीम ने शराब का सेवन करने वाले 534 युवाओं की काउंिसलिंग की। काउंसिलिंग के दौरान उनसे सवाल-जवाब किए गए। इस दौरान जो बाते सामने निकलकर आईं। उसमें हिप्पोकैम्पस के शिकार युवा ज्यादा पाए गए। कुछ की मानसिक तंत्रिकाएं कमजोर पाई गईं। वहीं, जिला आबकारी कार्यालय से लिए गए आंकड़ों में भी शराब का सेवन करने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी पाई गई है।
दिमाग पर एल्कोहल का असर
बीआरडी मेडिकल कालेज के मानसिक रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ। तपस आइच ने बताया कि शराब में मौजूद एल्कोहल और एथेनॉल का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। ज्यादा शराब पीने की वजह से दिमाग में हिप्पोकैंपस काम करना बंद कर देता है। हिप्पोकैंपस ही यादों को स्टोर करता है। वहीं, स्टडी टीम के सदस्य व बीआरडी मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सक डॉ। आमिल हयात खान ने बताया कि कोरोना संक्रमण का असर दिमाग की तंत्रिकाओं पर पड़ा था। दिमाग में प्रोटीन और दूसरे केमिकल का बैलेंस बिगड़ गया था। इससे लोगों की याददाश्त कमजोर हुई थी। इसे ब्रेन फॉग कहते हैैं। अब यह ठीक होने लगा है। ब्रेन फॉग से पीडि़त लोगों की याददाश्त बेहतर हो रही है।
अल्जमाइर के होते शिकार
मनोचिकित्सक डॉ। आमिल हयात खान ने बताया, शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना, मोटापा, शुगर, सिर पर चोट लगना, सुनने की क्षमता का कमजोर होना, इस बीमारी की प्रमुख वजह है। यह रोग दिमाग में टाउ टैैंगल्स प्रोटीन को बनने से रोकता है। इससे दिमाग की संतुलन बिगड़ जाता है। शराब के अत्यधिक सेवन से दिमाग की तंत्रिकाओं को प्रभावित कर रहा है। इससे तंत्रिकाएं कमजोर हो रही हैैं। दिमाग समय से पहले बूढ़ा हो जा रहा है। शराब पीने वाले की मेमोरी कमजोर हो रही है। यंगस्टर्स भी अल्जाइर के शिकार हो रहे हैैं। जिला अस्पताल में अल्जाइमर का इलाज करने वाली मरीजों की उम्र में गिरावट देखी जा रही है।
न्यूरॉन पर पड़ता है सीधा असर
जिला अस्पताल गोरखपुर के मनोचिकित्सक डॉ। अमित शाही ने बताया, शराब का अत्यधिक सेवन मस्तिष्क की क्रियाशीलता को संतुलित करने वाले न्यूरॉन पर सीधा असर डालता है। इससे न्यूरॉन का आकार कम हो जाता है। दिमाग में न्यूरॉन की संख्या में भी तेजी से कमी आ जाती है। आम बोलचाल में इसे सठियाने की बीमारी भी कहते हैैं। आमतौर पर यह बीमारी 60 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन अब युवा भी इसकी जद में आने लगे हैैं।
वर्ष - देसी शराब (बल्क ली.)- अंग्रेजी शराब (बोतल में) - बीयर (केन में)
2020-21 - 1,68,49,940.69 - 59,25,340.84 - 1,35,81,976.08
2021-22 - 2,24,66,579.91 - 62,07,961.918 - 1,50,42,176.11
2022-23 - 2,55,60,303.78 - 65,41,544.44 - 2,09,54,822
2023-24 - 1,28,41,891.5 - 31,65,558.172 - 1,18,76,544.16
(नोट: अंग्रेजी शराब 750 एमएल में, बीयर की 500 एमएल में केन की रिपोर्ट दर्ज की गई है। 2023-24 के आंकड़े वर्तमान तक के हैं.)
तेजी के साथ यंगस्टर्स शराब के लती हो रहे हैैं। पहले यह लत शौक से शुरू होती है। फिर बाद में लत लग जाती है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। एल्कोहल और एथेनॉल का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। ज्यादा शराब पीने की वजह से दिमाग में हिप्पोकैंपस काम करना बंद कर देता है। हिप्पोकैंपस ही यादों को स्टोर करता है।
डॉ। तपस आइच, अध्यक्ष, मानसिक रोग विभाग, बीआरीड मेडिकल कॉलेज