- आदिकाल से खेली जा रही है कुश्ती, नियम बदले, क्रेज नहीं

- गोरखपुर के पहलवालों ने लहराया है पूरी दुनिया में परचम

GORAKHPUR : कुश्ती का महायुद्ध 'आरपीएम एकेडमी प्रजेंट्स आई नेक्स्ट गोरखपुर का योद्धा' ख्7 दिसंबर को है। सैयद मोदी रेलवे स्टेडियम के ग्राउंड पर एक नया इतिहास रचने के लिए कई पहलवान तैयार हो चुके हैं। अगर आप भी इसमें पार्टिसिपेट करना चाहते हैं तो अपना रजिस्ट्रेशन कराने आइए सिविल लाइंस स्थित आई नेक्स्ट ऑफिस सुबह क्क् से शाम भ् बजे के बीच आइए। आज से हम महामुकाबले के दिन तक गोरखपुर और यहां की कुश्ती के कुछ ऐसी रोचक बातें बताएंगे, जिन्हें आप ने पहले कभी नहीं सुना होगा। इसी क्रम चलिए पहली स्टोरी आपको बताते है कुश्ती के इतिहास की कहानी।

प्राचीन काल से चली आ रही है कुश्ती

कुश्ती भारतीय सभ्यता का वह खेल है, जो आदिकाल से खेला जा रहा है। समय बदलता गया और साथ-साथ खेलने का तरीका और स्थान भी। सतयुग से त्रेतायुग तक कुश्ती को मल्लयुद्ध कहा जाता था तो अब यह रेसलिंग बन चुकी है। मिट्टी के अखाड़े से होते हुए कुश्ती मैट पर पहुंच गई तो जीत का नियम भी चित से प्वाइंट पर आ गया। कुश्ती के बदलते स्वरूप सेगोरखपुर में इसका क्रेज कम जरूर हुआ, मगर कभी खत्म नहीं हुआ। गोरखपुर के पहलवानों ने मिट्टी से लेकर मैट तक परचम फहराया। देश के लिए मेडल जीते तो गोरखपुर का नाम रोशन किया।

कुश्ती का है गांव

व‌र्ल्ड में फुटबाल तो इंडिया में क्रिकेट के फैंस काफी अधिक हैं। मगर गोरखपुर में अभी भी कुश्ती का क्रेज जबरदस्त है। इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां कई गांव कुश्ती के नाम से ही जाने जाते हैं। डेरवा, छपरा, मनझरिया, मझौलिया, घुनघुनकोठा, सुरगौरा, नकहा, मोहद्दीपुर (चौरीचौरा), जगतबेला, खजनी, चतुरपंडवारी, दरगहिया, सुहड़वा समेत कई ऐसे गांव है, जहां ऐसा कोई घर नहीं जिसमें एक पहलवान न हो। बल्कि हर बाप अपने बेटे को पहलवान बनाने का ही सपना देखता है। पिता ने अगर स्टेट लेवल खेला है तो वह बेटे को इंटरनेशनल बनाने के लिए चार साल की उम्र से ही उसे तैयार करना शुरू कर देते हैं।

दंगल से बन गया जिला केसरी

कुश्ती का क्रेज गोरखपुर में सदियों से है। नागपंचमी, महाशिवरात्रि और मकर संक्रांति पर गोरखनाथ मंदिर में दंगल का आयोजन किया जाता है। जिसमें गोरखपुर नहीं बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज समेत अन्य कई जिलों के पहलवान दम दिखाने आते है। पहलवानों के साथ कुश्ती देखने लोग भी दूर-दूर से आते हैं। दंगल का आयोजन बहुत पुराना है। मगर समय के साथ अब उसका रूप बदल गया है। पिछले करीब म् साल से नागपंचमी पर दंगल नहीं बल्कि जिला केसरी का आयोजन किया जाता है। जिसमें पहलवान अपने को सर्वोच्च साबित करने के लिए पूरा दम दिखाते हैं।

विदेशों में रहा है गोरखपुर मिट्टी का जलवा

कुश्ती का इतिहास गोरखपुर में बहुत पुराना है। आजादी के पहले भी यहां के पहलवानों का दूर-दूर तक जलवा रहता था। पहलवानों के मुताबिक पुराना अखाड़ा कालीबाड़ी है। जहां के पहलवान दूर-दूर दम दिखाने जाते थे जो समय के साथ पक्कीबाग में तब्दील हो गया। वर्तमान में पक्कीबाग के अलावा कृष्णानगर व्यायामशाला, शिवाजी व्यायामशाला, रेलवे स्टेडियम, रीजनल स्टेडियम, गोकुल व्यायामशाला नंदानगर, खजनी व्यायामशाला, मोहद्दीपुर व्यायामशाला, मनझरिया व्यायामशाला, स्पो‌र्ट्स कॉलेज और डेरवा व्यायामशाला में पहलवान दिन-रात पसीना बहा कर गोरखपुर और देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

इंटरनेशनल प्लेयर्स की है लंबी कतार

गोरखपुर को कुश्ती की जननी ऐसे नहीं कहा जाता। यहां ऐसे पहलवानों की लंबी लिस्ट है, जिन्होंने देश नहीं बल्कि विदेशों में भी इंडिया और गोरखपुर का झंडा गाड़ा है। ब्रह्मदेव मिश्रा, जयनारायन सिंह, भारत भीम जनार्दन सिंह, लालमन पहलवान, रामचंदर, राम नारायन मिश्रा, मुक्तार सिंह, दिनेश सिंह, हरेंद्र सिंह, पन्ने लाल यादव, रामाश्रय यादव, राकेश सिंह पहलवान, हनुमान पांडेय, शत्रुघ्न राय, विवेका तिवारी, सुरेंद्र तिवारी, भोरिक यादव, राम मिलन यादव, राम मूरत यादव, तालुकदार यादव, राजीव यादव, जनार्दन सिंह यादव, चन्द्रविजय सिंह, मायाशंकर शुक्ला ओमप्रकाश यादव, सुरेंद्र यादव, राणा यादव, योगेंद्र यादव, विजय बहादुर सोनकर पहलवान ने कई नेशनल और इंटरनेशनल टूर्नामेंट में न सिर्फ मेडल जीते, बल्कि गोरखपुर का नाम रोशन किया। तालुकदार यादव और चन्द्रविजय सिंह को यूपी सरकार ने यशभारती और लक्ष्मण अवार्ड से भी सम्मानित किया। वहीं रामाश्रय यादव को लक्ष्मण अवार्ड के लिए नामित किया गया है। चन्द्रविजय सिंह करंट में इंडियन रेसलिंग टीम के कोच भी है। वहीं पन्नेलाल यादव, जनार्दन सिंह यादव को यशभारती अवार्ड मिला है।