- दस सितंबर को मनाया जाता है 'व‌र्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे'

-इस बार का थीम है 'प्रिवेंटिंग सुसाइड: रीचिंग आउट एंड सेविंग लाइव्स'

GORAKHPUR: जिले में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों के मुताबिक ज्यादातर आत्महत्याएं डिप्रेशन (अवसाद) के चलते होती हैं। असफलता से लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं। नतीजतन लोग आत्महत्या करने की कोशिश करने लगते हैं। इसके अलावा फेसबुक और वॉट्सएप पर सिमटती दुनिया में अक्सर इंस्टैंट फेम पाने की चाहत भी सुसाइड की वजह बनती हैं।

फैक्ट बॉक्स

- भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा लोग करते हैं सुसाइड

- हर 16वें मिनट में दुनिया में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है

- हर 17वें मिनट पर दुनिया किसी न किसी के मन में आत्महत्या करने का विचार आता है

- इस बार का थीम है 'प्रिवेंटिंग सुसाइड: रीचिंग आउट एंड सेविंग लाइव्स'

ऐसे पहचानें सुसाइडल टेंडेंसी

- व्यक्ति का एकाएक समाज से कट जाना। चुपचाप और अकेला रहना।

- किसी उत्सव आदि में शामिल होने से कतराना। बाथरूम में ज्यादा देर तक बैठे रहना।

- भूख का खत्म हो जाना, शांत रहने लगना।

- कभी-कभी मानसिक उत्तेजना भी इसकी वजह बन जाती है।

- त्वरित असफलता, अपमान आदि का डर।

अगर आपके आस-पास किसी में इस तरह के लक्षण दिखें तो उसे इमोशनल सपोर्ट दें। उसके साथ टाइम स्पेंड करें और उसे खुश रखने की कोशिश करें।

यह होता है इलाज

- साइको थरैपी बेहतर उपचार है। इसमें व्यक्ति के साथ बातचीत करके उसे पॉजिटिव दिशा में मोड़ा जाता है।

- मनोविज्ञान के माध्यम से पहले पे्ररित के इमोशन को शेयर किया जाता है.फिर थेरेपी के माध्यम से उसके मन में पॉजिटिव थॉट्स डाले जाते हैं।

- अगर कोई व्यक्ति मन की बात किसी से शेयर कर दे तो ऐसी घटनाएं होने के चांसेस काफी कम हो जाता है।

साइकोलाजी के अनुसार आत्महत्या की घटना से पहले ही व्यक्ति की हरकतों से इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इसका मुख्य कारण है अवसाद। जब भी किसी व्यक्ति किसी भी कारण से अवसाद बढ़ेगा तो आत्महत्या की घटना होने के चांस बढ़ जाता है। कई बातें इस बातें इस बात का संकेत देती है कि ऐसी घटना हो सकती है। इसकी रोकथाम के लिए साइको थेरेपी बेहतर उपचार है। इसमें व्यक्ति के बातचीत के जरिए उसका ब्रेनवॉश कर दिया जाता है।

-प्रो। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट

कुछ साइकोलॉजिकल आइडियाज होते हैं जिससे कि प्रेरित व्यक्ति के व्यवहार को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि वे ऐसी बातें उसके मन में धीरे-धीरे पल रही है। जैसे कि भूख का खत्म हो जाना, शांत रहने लगना, समाज से अलग रहना, किसी अच्छे पल में सम्मलित होने से कतराना। किसी सामान्य बात पर कड़ी प्रतिक्रिया देना आदि तमाम ऐसी बातें होती है। ऐसा विचार किसी के मन में तब आता है जब उसके पास किसी रास्ते का कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में मनोविज्ञान के कांउसलर द्वारा इन चीजों को पकड़ा जा सकता है।

-प्रो0 अनुभूति दूबे, साइकोलॉजिस्ट

ऐसी घटनाएं कोई तभी करता है जब उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती है। ज्यादातर ऐसी स्थिति डिप्रेशन के कारण होती है, वह कारण कुछ भी हो सकता है। कभी-कभी मानसिक उत्तेजना भी इसकी वजह बन जाती है। इसकी रोकथाम के लिए सबसे पहले जरूरी होता है कि उसके डिप्रेशन की पहचान करना। ऐसे में इससे प्रेरित व्यक्ति का व्यवहार काफी बदल जाता है। जिससे उसके विचारों का अनुमान लगाया जा सकता है। इसमें व्यक्ति उदास रहने लगता है, बात-बात में चिड़चिड़ाना, कई बार अपने विचार को बातचीत या मजाक के दौरान पकड़ भी कर देता है। इस बात का अनुमान लगते ही उसकी प्रापर काउंसलिंग होनी चाहिए और इसके बाद मेडिसिन और बातचीत से उसका होता है।

डॉ। सीपी मल्ल, साइकियाट्रिस्ट