-वर्ल्ड स्पैरो डे स्पेशल
-मोबाइल टॉवर और बदली लाइफ स्टाइल बनी नन्हीं चिडि़या की दुश्मन
GORAKHPUR: दादी-नानी की कहानियों में राजकुमारी, परियों की रानी और जलपरी के बारे में खूब सुना होगा। मगर वह समय भी दूर नहीं जब घरों में रहने वाली नन्हीं चिडि़या भी इन कहानियों का हिस्सा बन जाएगी। घरों में चहकने वाली नन्हीं गौरेया की चहचहाहट अब सुनाई नहीं पड़ती। न तो उनके घोंसले नजर आते हैं और न ही उनकी फड़फड़ाहट। खुले आसमान के बजाए घरों में मनुष्यों के बीच खुद को सेफ समझने वाली नन्हीं गौरेया लगभग गायब हो चुकी है। आखिर ये नन्हीं चिडि़या कहां गुम हो गई? गुड मॉर्निग और गुड नाइट की साथी इस नन्हीं गौरेया की कमी देश का फ्यूचर बन रही जेनरेशन को तो नहीं खलती, मगर हमें अब भी उसकी याद सताती है।
हाईटेक और बिजी लाइफ स्टाइल से दूर हुई नन्हीं चिडि़या
समय के साथ बदलती लाइफ स्टाइल ने हमें जहां तरक्की के नए मुकाम दिए, वहीं गांव की जिंदगी को दूर कर दिया। लाखों किमी की दूरी को कम करने के लिए मोबाइल टॉवर लग गए तो समय की कमी ने गेहूं को सीधे आटे में बदल दिया। घर खपरैले के बजाए पक्के बन गए तो रोशनदानों की जगह भी खत्म हो गई। इस बदलाव ने इंसानों की लाइफ स्टाइल को हाइटेक करने के साथ बिजी कर दिया तो इन नन्हीं चिडि़यों की दुश्मन बन गई। इस चेंज से न तो नन्हीं गौरेया के लिए घर बचा और न ही खाना। मोबाइल टॉवर से निकलने वाली रेज (900 से क्800 मेगा हर्ट्ज) इस नन्हीं चिडि़या के लिए जानलेवा साबित हो रही है। साथ ही ये चिडि़या जन्म से क्भ् दिन तक सिर्फ कीड़े खाती हैं। मगर हाईटेक हो रहे समाज में अब फसल को बचाने के लिए कीटनाशक का छिड़काव हो रहा है। जिससे अब कीड़े नहीं बचते। ऐसे में इस नन्हीं चिडि़या के लिए भोजन की कमी सता रही है।
वर्जन-
मुझे चिडि़या से बहुत लगाव है। गौरेया को बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। मैंने अपने घर को गौरेया के अनुरूप बनाया है। इसके चलते सुबह गौरेया मेरे घर जरूर आती है।
चंदन प्रतीक
मुझे गौरेया के बीच रहना बहुत पसंद है। मगर शहर से अब ये गायब हो चुकी है। मगर मैंने अपने फॉर्म हाउस को गौरेया के अनुरूप ढाल रखा है। अब भी मेरे फॉर्म हाउस में गौरेया सुबह चहचहाती है।
हसन मसूद
डॉ। सीपीएम त्रिपाठी, पर्यावरण विद्