GORAKHPUR : खून इंसानी शरीर का वो हिस्सा है जिसकी कमी से जान पर बन आती है। एक्सीडेंट या किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त होने पर शरीर में ब्लड की मात्रा घट जाती है। जान बचाने के लिए ब्लड की कमी पूरी करना जरूरी हो जाता है। ऐसी कंडीशन में ब्लड डोनेट करने वाले किसी देवदूत की तरह हमारी मदद करते हैं। अब तो मेडिकल टेक्नोलॉजी में एडवांसमेंट की बदौलत पूरा ब्लड चढ़ाना नहीं पड़ता, बस जिस कंपोनेंट की जरूरत हो, वहीं पेशेंट को चढ़ाया जाता है। इससे एक यूनिट ब्लड से कई लोगों की जिंदगी बचाई जाती है। वर्ल्ड ब्लड डोनर डे पर आई नेक्स्ट आपके लिए लाया है ब्लड डोनेशन से जुड़ी सारी जानकारी, पढि़ए ये रिपोर्ट।
शहर में हैं ये ब्लड बैंक
गवर्नमेंट-
- बीआरडी मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक
- डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल ब्लड बैंक
प्राइवेट-
- गोरखनाथ हॉस्पिटल ब्लड बैंक
- सावित्री ब्लड बैंक
- फातिमा हॉस्पिटल ब्लैड बैंक
- सिटी ब्लड बैंक
- नवजीवन ब्लड बैंक
ब्लड लेने के पहले होती हैं ये जांच
- ब्लड ग्रुप
- हीमोग्लोबिन
- बीपी
- सिंपल टेस्ट
जांच के बाद मिलता है ब्लड
डोनर के ब्लड देने के बाद एक्सपर्ट की टीम उसकी जांच करती है क्योंकि ब्लड में कई गंभीर बीमारियां भी कैरी हो सकती है। कहीं ऐसा न हो कि जान बचाने के लिए दिया जा रहा ब्लड मरीज की जान ले ले। इसके लिए एक्सपर्ट की टीम ब्लड की कई जांच करने के बाद उसे मरीज को देती है।
ये होती हैं जांच
- एचआईवी 1
- एचआईवी 2
- हेपेटाइटिस बी
- हेपेटाइटिस सी
- वीडीआरएल
- मलेरिया
सावधानी है जरूरी
- लाइसेंस या प्रमाणित ब्लड बैंक से ही ब्लड लें।
- ब्लड बैग पर लिखी एक्सपायरी डेट देख लें।
- ब्लड वाले बैग को साफ हाथ से टच करें।
- ब्लड ले जाते वक्त ध्यान रखें कि उसका टेंप्रेचर 4 डिग्री सेल्सियस बना रहे।
- चढ़ाने से पहले देख लेना चाहिए कि ब्लड में क्लाटिंग या जमाव तो नहीं आया है।
मैक्सिमम 42 दिन सेफ रहता है ब्लड
ब्लड को निकालने के बाद उसे एक बैग में रखा जाता है। ये बैग दो टाइप के होते हैं। दोनों बैग में रखे गए ब्लड की एक्सपायरी डेट या लाइफ अलग-अलग होती है। एक बैग में 35 दिन और दूसरे बैग में 42 दिन तक ब्लड सेफ रहता है। 42 दिन सेफ रखने वाले बैग में एड सोल नाम का लिक्विड डाला जाता है, जो थोड़ा महंगा होता है।
कैंप से पूरी होती है कमी
एक कंपोनेंट के बदले मरीज के परिजन को एक कंप्लीट ब्लड डोनेट करना पड़ता है। इससे बैंक में ब्लड की स्थिति नॉर्मल बनी रहती है। हालांकि इस आदान-प्रदान में ये मुश्किल हो जाता है कि किस ग्रुप के ब्लड की मात्रा अधिक है और किस की कम। अक्सर निगेटिव ब्लड ग्रुप की शॉर्टेज रहती है। ऐसे में अधिकांश ब्लड बैंक समय-समय पर कैंप का आयोजन करते हैं जिसमें ब्लड डोनेट कराने के साथ डोनर का मोबाइल नंबर और एड्रेस भी लेते हैं। इससे अचानक ब्लड की शॉर्टेज व इमरजेंसी में वे डोनर को बुलाकर प्रॉब्लम को सार्ट आउट कर लेते हैं।
अब ब्लड नहीं, मिलता है कंपोनेंट
एक यूनिट ब्लड एक, दो नहींबल्कि चार लोगों की जिंदगी बचा सकता है। यह अक्सर किताबों में पढ़ा होगा मगर अब यह हकीकत में हो रहा है। अब बैंक से एक यूनिट कंप्लीट ब्लड नहीं मिलता। अब डॉक्टर हर पर्ची पर मरीज को ब्लड के जिस कंपोनेंट की जरूरत होती है, उसके बारे में लिख कर देता है। फिर बैंक से वह कंपोनेंट ही दिया जाता है। इससे एक यूनिट ब्लड चार जिंदगी बचा रहा है। पहले मरीज की जरूरत के मुताबिक ब्लड का एक कंपोनेंट उसे चढ़ा दिया जाता था और जिंदगी बच जाती थी, मगर बाकी तीन कंपोनेंट खराब हो जाते थे। हालांकि कंपोनेंट वाइज ब्लड गोरखपुर में अभी सिर्फ दो ही ब्लड बैंक में रेगुलरली दे रहे हैं। गोरखनाथ हॉस्पिटल और सावित्री हॉस्पिटल में कंपोनेंट के अनुसार ही ब्लड दिया जाता है। जबकि अन्य ब्लड बैंक में कंप्लीट ब्लड दिया जा रहा है।