- विश्व आर्थराइटिस दिवस आज
GORAKHPUR: आर्थराइटिस या गठिया एक पीड़ादायक और जोड़ों की बीमारी होती है। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। देश में करीब 10-15 फीसदी लोग इस बीमारी से किसी न किसी रूप में पीडि़त हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें दवा के साथ-साथ एक्सरसाइज का भी रोल इंपॉर्टेट होता है।
ऐसे होता है गठिया
प्रत्येक हड्डी के अंत में एक पतला तथा रबड़ की तरह लचीला पदार्थ होता है, जिसे कार्टिलेज कहते हैं। यह कार्टिलेज एक गद्दी का काम करती है और जोड़ों की हड्डियों को आपस में रगड़ने से बचाती है। कार्टिलेज के अतिरिक्त पूरे जोड़ के चारों ओर पतला टिशू होता है, जिसे 'साइनोवियल मैंबरेन' कहते हैं। इस मैम्बरेन से एक तरल पदार्थ निकलता है जो साइनोवियल फ्लूड कहलाता है। यह तरल पदार्थ जोड़ों को चिकना बनाए रखता है। जोड़ों की इसी विशिष्ट रचना के परिणामस्वरूप हम अपने पैरों पर चल पाते हैं और हाथ-पैर को घुमा पाते हैं। यदि किसी कारणवश कार्टिलेज की चिकनाई खत्म हो जाती है तो जोड़ों की गति बाधित होने लगती है। रगड़ के कारण दर्द भी शुरू हो जाता है और कभी-कभी झिल्ली पर सूजन भी आ जाती है। यह दो तरह की होती है।
इंफेक्शन के कारण
जोड़ों पर गंदगी अथवा फोड़ा आदि होने पर इंफेक्शन हो सकता है। इंफेक्शन के कारण अक्सर जोड़ों की झिल्ली (जिसे साइनोवियल मैंबरेन कहते हैं) के अंदर मवाद पड़ जाता है, जिसके कारण जोड़ खराब होकर विकृत हो जाते हैं। यह किसी भी उम्र में हो सकता है।
ऐसे करें बचाव: जोड़ों पर यदि चोट लग जाए तो उसे साधारण न समझकर समुचित ढंग से साफकर पट्टी की जानी चाहिए और उसकी सफाई कर पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसमें भी कभी-कभी टीबी हो जाती है, ऐसे में उसका इलाज पूरा और समुचित ढंग से होना चाहिए।
बिना इंफेक्शन के
इस तरह की गठिया किसी भी उम्र में हो सकती है।
(अ) रियुमेटिक आर्थराइटिस-इसको एलर्जिक आर्थराइटिस भी कहते हैं। इसके होने का कारण बैक्टीरिया है। यह गले में इंफेक्शन के बाद होती है।
- यह 4 से 11 वर्ष तक के बच्चों में ज्यादा पायी जाती है।
- इसमें जोड़ सूज भी सकते हैं,लाल भी हो सकते हैं और बुखार भी आ सकता है।
- जांच के लिए एएसओ टाइटर का टेस्ट होता है। यदि टेस्ट पॉजिटिव आता है तो रियुमेटिक आर्थराइटिस माना जाता है।
(ब) जुवेनायल रियुमेटिक आर्थराइटिस- जब किसी कारणवश शरीर के ही किसी हिस्से को शरीर की डिफेंस मैकनिज्म फॉरेन बॉडी समझ लेती है तो इसका प्रतिकार करने लगती है। इसके बारे में अभी तक पता नहीं लगा है कि आखिर वह कौन सा रीजन है जिसके कारण बॉडी ऐसा बिहैव करती है। यह देखा गया है इसके लिए एचएलएबी 27 जीन्स उत्तरदायी होती हैं। इसके कारण न केवल जोड़ गतिहीन होने लगते हैं बल्कि सूजकर खराब भी होने लगते हैं।
बचाव-
इस प्रकार की गठिया से बचने केलिए जोड़ों को गतिशील बनाये रखना जरूरी है, साथ में कुछ दवायें भी चलती हैं।
(स) आस्टियो आर्थराइटिस- यह जोड़ों का रोग है। इसका घुटने तथा कूल्हे पर सबसे ज्यादा असर होता है। इसमें सर्वप्रथम घुटने के बीच में कार्टिलेज घिसने लगती है और उसमें छेद हो जाता है। कार्टिलेज की लचक कम होने लगती है और समय के साथ कार्टिलेज का कुछ हिस्सा पूरी तरह घिस जाता है जिससे घुटने की हड्डियां आपस में रगड़ने लगती हैं। जोड़ में सूजन आ जाती है तथा जोड़ को हिलाने-डुलाने और खड़ा करने में दर्द होता है।
इसकी पहचान ये है-
- घुटनों का दर्द शाम के समय अधिक रहता है क्योंकि दिनभर घुटनों से अधिक कार्य लिया जाता है।
- जोड़ों में कड़ापन प्रात:काल अधिक रहता है। धीरे-धीरे घुटनों के गतिशील होने पर लगभग 15 मिनट में यह कड़ापन दूर हो जाता है। उम्र के साथ घुटनों का क्षरण बढ़ने लगता है और गतिशीलता में कमी आ जाती है।
उपचार
रोग की प्रारंभिक दशा में उपचार का शुरू कर देना बेनेफिशियल है। इससे रोगी की जीवनचर्या में तो सुधार आता ही है,रोग के बढ़ने की गति को भी धीमा किया जा सकता है। आर्थराइटिस का उपचार हर तरह के रोगी लिए अलग तरह का होता है। यह रोग की गतिशीलता, रोगी की आशाओं और उसकी गतिशीलता की स्थिति पर निर्भर करता है। जिन लोगों के जोड़ मामूली रूप से विकृत हैं उन्हें केवल जोड़ों पर दबाव डालने वाले क्रियाकलाप न करने, मांसपेशियों की सुदृढ़ता और गतिसीमा को विकसित करने और कभी-कभी सूजन और औषधि के प्रयोग से राहत मिल सकती है। जब ऑस्टियो आर्थराइटिस की एक्टिवनेस में कमी आने लगती है, तब प्राय: सहारा देने वाले इक्विमेंट्स के उपयोग, स्पेशल एक्सरसाइज और मेडिसिंस से एक्टिवनेस को जारी रख सकते हैं।
एक्सरसाइज और आराम
एक्सरसाइज डॉक्टर की देखरेख में करना चाहिए। यह जोड़ की चाल और मांसपेशियों की ताकत को बिना जोर डाले बढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त घूमना,साइकिल चलना,तैरना आदि भी उपयोगी एक्सरसाइज हैं।