- महिलाओं को भी है पैतृक संपत्ति में अधिकार
- विधवा बहू भी अपने ससुर से ले सकती है गुजारा भत्ता
GORAKHPUR: यूं तो आज की लड़कियां, महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। पुलिस से लेकर फोर्स तक ज्वाइन कर रही हैं लेकिन दूसरी तरफ आधी आबादी का एक हिस्सा ऐसा भी है जो अपने अधिकारों से अनजान होने के कारण असहाय बना हुआ है। यदि सभी को उनके अधिकार की जानकारी हो जाए तो बचा तबका भी खुद को महफूज और सक्षम महसूस कर सकेगा। आइए, आज आपको बताते हैं कि आपके मायके या ससुराल की संपत्ति में आपका क्या हक है।
यह है अधिकार
- विवाहिता हो या अविवाहित, महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है।
- विधवा बहू भी अपने ससुर से गुजारा भत्ता व संपत्ति में हिस्सा पाने की की हकदार है।
- हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 27 के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है।
- पत्नी का अपने स्त्री धन पर भी पूरा अधिकार रहता है।
- दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है।
क्या कहता है कानून
हिंदू उत्तराधिकार संशोधित अधिनियम 2005 में यह कहा गया है कि पिता की संपति पर एक बेटी भी बेटे के समान अधिकार रखती है। हिंदू परिवार में एक पुत्र को जो अधिकार दिए गए हैं वह सभी अधिकार समान रूप से बेटियों को भी मिलेंगे। लेकिन इस प्रस्ताव के तहत 20 दिसंबर 2004 से पूर्व हुए प्रापर्टी के बंटवारे लागू नहीं होंगे।
जानिए अपने अधिकार
पिता की संपत्ति का अधिकार:
किसी महिला को अपने पिता की पुस्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है। अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाइयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा। यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा।
पति की संपत्ति से जुड़े हक:
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी संपत्ति में हिस्सा मिलता है। शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुस्तैनी जायदाद की वसीयत नहीं हो सकती है।
पति-पत्नी में ना बने तो:
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने औच् बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है। घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है। अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी कमाई संपत्ति के आधार पर तय की जाती है।
कोट
चल संपति में महिलाएं नामिनी होने की दशा में उसका लाभ पाएंगी या फिर रक्त संबंधों में वरीयता में पुरुष सदस्यों के उत्तराधिकारी न होने की दशा में महिला को हक मिलेगा। लेकिन पैतृक अचल संपति में बराबर की हिस्सेदारी हो गई है। पहले व्यवस्था सिर्फ पुरुषों के लिए थी। एक्ट में संशोधन से महिलाओं को यह अधिकार मिल गया है। इससे महिलाओं को उनके रहन-सहन की सुविधाएं मिलने लगी हैं।
ओंकार नाथ भट्ट, एडवोकेट, दीवानी कचहरी