मरहम के फरेबी दिलासे ने उसके जख्मों को कुरेद दिया

- पति के गुम होने पर गुमशुदा हो गई जिंदगी

- बेटी का हक दिलाने के लिए फरियाद कर रही

GORAKHPUR: कोतवाल साहब मेरी मदद करिए। यदि आप लोग कार्रवाई नहीं करेंगे तो मैं कहां जाउंगी। मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं। मेरी बेटी के बारे में जरा सोचिए। मुझे नहीं तो उस मासूम को तो कुछ हक दिला दीजिए। इंसाफ के लिए नौ साल से भटक रहीं हूं। मेरे ससुराल वाले मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं। इतना कहने के बाद युवती के आंसू छलक पड़े। वह कोतवाल के सामने फफक पड़ी। पुलिसवालों ने दिलासा देकर चुप कराने की कोशिश की, पर मरहम के फरेबी दिलासे ने उसके जख्मों को कुरेद कर रख दिया। आगे पढि़ए आई नेक्स्ट की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट।

नौ साल से इंसाफ के लिए भटक रही सुमन

बेलघाट एरिया के मीरपुर निवासी उमेश चंद की पत्‍‌नी सुमन राजघाट एरिया के तुर्कमानपुर एरिया में रहती है। सुमन के पास क्क् साल की बेटी अंशू है। सुमन की जिंदगी में एक सवेरा आया लेकिन खुशियों की झोली भरने के पहले सांझ आ गई। सुमन के पति हिमाचल में इंजीनियर थे। शादी के बाद वह घर लौटे तो खलीलाबाद में फैक्ट्री लगाने का प्लान बनाया। फैक्ट्री लगने के पहले अचानक वह लापता हो गये। पति के लापता होने के बाद सुमन अपनी ससुराल में बेजार हो गई। धीरे-धीरे उसकी खुशियों पर गम के बादल गहराते चले गए। आरोप है कि पति के लापता होने के बाद ससुरालियों ने उसको बेघर कर दिया। मासूम बेटी को गोद में लेकर सुमन अपने मायके चली गई। मां, बाप का सहारा छूटने के बाद वह बिल्कुल तन्हा हो गई। राजघाट एरिया के तुर्कमानपुर में अपना ठिकाना बना लिया। ससुरालियों के व्यवहार से तंग आकर उसने इंसाफ की लड़ाई शुरू की। अपने हक के लिए वह नौ साल से अफसरों का चक्कर लगा रही है।

मेरा नहीं तो बेटी का हक दिला दीजिए साहब

एमटेक इंजीनियर उमेश की पत्‍‌नी सुमन के ससुर, जेठ अच्छे पदों पर जॉब करते हैं। पति के लापता होने के बाद उसकी किसी ने सुधि नहीं ली। आरोप है कि मदद की बजाय लोगों ने उसको बेघर कर दिया। किसी तरह से कामकाज करके वह अपना और बेटी का पालन पोषण कर रही है। हर अफसर से बेटी का हक दिलाने को कहती है। उसके बार-बार की दरख्वास्त देने की वजह से अफसर गंभीरता नहीं दिखाते। हर बार मामला टरकाने की कोशिश की जाती है।

पति के लापता होने के बाद बदल गई जिंदगी

गोरखपुर यूनिवर्सिटी से प्राचीन इतिहास में एमए सुमन की शादी हुई तो जिदंगी रुठ गई। ख्00क् में सुमन की शादी हुई। शादी के बाद हिमाचल प्रदेश से जॉब छोड़कर पति ने खलीलाबाद में फैक्ट्री लगाने का प्लान बनाया। सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद काम शुरू हुआ लेकिन फैक्ट्री शुरू होने के पहले पति लापता हो गए। पति के लापता होने के बाद फैक्ट्री की जमीन भी नीलाम हो गई। जीने का कोई सहारा नहीं बचा तो उसने ससुरालियों से हक मांगना शुरू किया। आर्थिक तंगी से जूझ रही सुमन की हालत ऐसी नहीं रही कि वह मुकदमा लड़ सके। राजघाट थाना पर मौजूद सुमन ने पुलिसवालों को बताया कि उसके पास रिक्शे का भाड़ा नहीं था। रिक्शे वाले से रिकवेस्ट करके थाने तक पहुंची।

कल आना परसो आना, करा देंगे निस्तारण

सुमन के पास किसी की पैरवी नहीं। उसके शिकायत करने पर ससुरालियों के पक्ष में एक विधायक खड़े हो जाते हैं। ऐसे में कोई भी उसकी मदद को तैयार नहीं होता। जिले से लेकर थाने तक उसको देखने के बाद हर अफसर उसको कल आने की बात करके टरका देता है। हद तो तब हो जाती है जब अधिकारी और कर्मचारी पीडि़ता को मेंटल कह कर टालने लगते हैं। उसके मामले के निस्तारण कराने के बारे में कोई गंभीरता से विचार नहीं करता।

मेरे मरने के बाद सब दौड़ेंगे साहब

सिस्टम से हारी, जिंदगी से तंग सुमन बार-बार सिर्फ बेटी की दुहाई देती है। वह अफसरों से यहां तक कह देती है कि मर जाने के बाद हर कोई दौड़ेगा। कोई उसकी डेड बॉडी का पोस्टमार्टम कराने तो कोई मामला दबाने के लिए परेशान होगा। अफसरों से गिड़गिड़ाते हुई वह कहती है कि यदि इंसाफ नहीं दिला सकते तो बता दीजिए। वह कह देती है कि यदि बेटी न होती तो वह जान दे देती।

मेरी फरियाद कोई नहीं सुनता। मेरे ससुरालियों ने हर चीज पर कब्जा कर लिया है। बेटी को लेकर कहां जाऊं। नौ साल से मैं चक्कर काट रहीं हूं। दरख्वास्त दे देकर मैं टूट चुकी हूं।

सुमन यादव, पीडि़ता

पीडि़ता की तहरीर पर जांच पड़ताल की जा रही है। उसके ससुरालियों को बुलाकर मामला सुलझाया जाएगा। बात न बनने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

पीके झा, इंस्पेक्टर राजघाट