अब तो सुन लो नीर की पीर
- दस वर्ष में सिटी की आबादी हुई दो गुनी
- अंडरग्राउंड वाटर लेवल दस साल में 100 फीट हुआ नीचे
द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र: आज वर्ल्ड एनवायर्नमेंट डे है। पूरे विश्व में आज इसे अलग-अलग रूप में मनाया जाएगा। इस खास दिन पर आई नेक्स्ट भी आपको गोरखपुर के सबसे डेंजर जोन में आ चुके पर्यावरण की एक हकीकत से रूबरू कराने जा रहा है। दिन-ब-दिन सिटी की आबादी बढ़ रही है। शहर मेट्रो सिटी बनने की राह पर है। आधुनिक सुविधाओं के मामले में भी यह किसी मेट्रो सिटी से कम नहीं है। शासन भी इसी के मद्देनजर योजनाएं बनाकर उसे अमली जामा पहनाने में लगा है। लेकिन इन सब के बीच दिन प्रतिदिन विकराल होती जा रही एक प्रॉब्लम की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। वह प्रॉब्लम है पीने के पानी की मतलब शुद्ध पेयजल की।
चौंक गए ना लेकिन यह सच है। स्थिति यह है कि सिटी की आबादी से शुद्ध पेयजल लगातार दूर होता जा रहा है। बीते 15 साल में यह 100 फीट से अधिक नीचे चला गया गया। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में गोरखपुराइट्स को पीने के पानी के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
सिविल लाइंस से रेती तक है अधिक प्रॉब्लम
इस समय पूरे शहर में शुद्ध पानी की प्रॉब्लम खड़ी हो गई है। स्थिति यह है कि सिटी में वाटर लेवल आज भी 40 फीट पर मिल जा रहा है, लेकिन पीने लायक पानी की बात की जाए तो उसका लेवल इतना नीचे चला गया है कि जलकल विभाग को भी सोचना पड़ जा रहा है। सबसे विकट स्थिति सिटी के सिविल लाइंस से रेती चौक एरिया के बीच में है। इन एरियाज में दो साल पहले लगे ट्यूबवेल पानी देना बंद कर दिए हैं। जलकल जेई पीएन मिश्रा का कहना है कि 2001 में नगर निगम की कुल आबादी 6.22 लाख थी। उस समय सिटी के 50 प्रतिशत हिस्से में जलकल की ओर से पानी सप्लाई की जाती थी। इसके लिए जलकल के कुल 79 बड़े और छोटे ट्यूबवेल लगे थे। 2011 में सिटी की कुल जनसंख्या 13 लाख (नगर निगम की संभावित जनसंख्या) हो गई और इसके 68 प्रतिशत हिस्से में जलकल पानी सप्लाई करने लगा। इसके लिए जलकल कुल 121 बडे़ और छोटे ट्यूबवेल लगाया है, लेकिन भू-जल स्तर लगातार घटता गया। उन्होंने बताया कि 2001 में सिटी के सभी हिस्से में 250 फीट पर शुद्ध पानी मिल जाता था। लेकिन वर्तमान में उस समय इतनी गहराई पर लगे लगभग 20 से अधिक ट्यूबवेल पानी देना बंद कर दिए हैं। हालांकि 15 से अधिक ट्यूबवेल को रिवोर करके गहराई बढ़ाई गई है। उन्होंने बताया कि सिटी का जलस्तर 450 फीट से नीचे चला गया है।
ताकि मिल सके 20 साल तक पानी
वहीं जल निगम का कहना है कि सिटी में पानी का तीन स्टेज है। वैसे सिटी में 40 फीट पर भी पानी आ जाता है, लेकिन अच्छा पानी 180 फीट से शुरू हो जाता है। पीने योग्य पानी के लिए हम लोग 450 फीट पर ट्यूबवेल लगाते हैं, ताकि उस एरिया में लगा ट्यूबवेल 20 साल तक पानी दे सके।
300 लीटर की घटी क्षमता
सिटी में लगे ट्यूबवेल के पानी देने की क्षमता भी घटी है। स्थिति यह है कि 2001 में लगे कई ट्यूबवेल पानी देना बंद कर दिए हैं या जो पानी दे रहे हैं उनकी क्षमता कम हो गई है। जलकल आंकड़ों की बात करें तो सिटी में पहले ट्यूबवेल 800 लीटर प्रति मिनट पानी देते थे, लेकिन वर्तमान समय में ये ट्यूबवेल 500 लीटर प्रति मिनट ही पानी दे रहे हैं।
कुछ इस तरह से गिरा वाटर लेवल
एरिया वाटर लेवल शुद्ध वाटर लेवल(2001) शुद्ध वाटर लेवल (2015)
रुस्तमपुर 40 180 400
रेती 30 260 460
सूरजकुंड 30 240 380
गोरखनाथ 35 200 390
राप्तीनगर 40 350 480
पादरी बाजार 45 380 500
बिछिया 25 250 350
मोहद्दीपुर 20 350 450
कूड़ाघाट 25 350 460
बक्शीपुर 30 250 400
नोट- आंकड़े जलकल के है। गहराई फीट में है।
सिटी से 270 भू-जल स्रोत गायब
नगर निगम सीमा के अंदर के भू-जल संरक्षण की जिम्मेदारी कुल 80 तालाब और कुओं के भरोसे है। जबकि नगर निगम के राजस्व विभाग के आंकड़ों पर नजर डाले तो नगर निगम के नक्शे में 150 से 200 के लगभग कुआं है और वहीं 150 से अधिक तालाब हैं। इस तरह शहर में कुल 350 जलस्रोत वाटर रिचार्ज के लिए थे, लेकिन हकीकत यह है कि वर्तमान समय में सिटी में कुल 42 कुआं और मात्र 38 तालाब अस्तित्व में हैं।
सिटी में 15 लाख लीटर शुद्ध पानी की कमी
सिटी में शुद्ध पानी की किल्लत शुरू से ही रही है। जलकल के आंकड़ों पर नजर डाले तो 2001 में जब सिटी की आबादी 6 लाख थी। तब डेली कम से कम 21 लाख लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती थी। उस समय सिटी के 50 प्रतिशत एरिया में जलकल पानी सप्लाई करता था। ऐसे में केवल 3 लाख लोगों को मात्र 10.5 लाख लीटर शुद्ध पानी ही मिल पाता था। ऐसे में उस समय भी 3 लाख लोग अपनी प्यास भगवान भरोसे ही बुझाते थे। वहीं वर्तमान समय में कुल 15 लाख लीटर प्रतिदिन शुद्ध पेयजल की कमी है। जलकल की आंकड़ों पर नजर डाले तो एक व्यक्ति को प्रति दिन 3.50 लीटर पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। महानगर की कुल आबादी 13 लाख है। इस तरह आंकड़ों पर नजर डाल तो सिटी में प्रति दिन 45.5 लाख लीटर शुद्ध पानी की आवश्यकता पड़ेगी, जबकि जलकल विभाग डेली 30 लाख लीटर पानी ही उपलब्ध करा पा रहा है।
दूषित हो चुके हैं हैंडपंप
वहीं सिटी के बचे 32 प्रतिशत हिस्से में पानी सप्लाई के लिए 3975 इंडिया मार्का हैंडपंप लगाए गए हैं। इनकी औसत गहराई 220 से 230 फीट तक है। जलकल के आंकड़ों की मानें तो इसमें अधिकांश हैंडपंप पानी देना ही बंद कर दिए और जो पानी दे रहे हैं, उनमें भी अधिकांश दूषित पानी उगल रहे हैं। हालांकि सिटी के 32 प्रतिशत एरियाज के लोग पानी सप्लाई न होने के कारण इन्हीं हैंडपंप्स के सहारे प्यास बुझाने को मजबूर हैं।
सिविल लाइंस के पानी की हकीकत
पीने का पानी, सिटी की एक ऐसी बड़ी प्रॉब्लम, जिसका सॉल्युशन ढूंढने में रिसर्च फील्ड के दिग्गज जोरों से लगे हुए हैं। सैंपल कलेक्ट किए गए, टेस्ट हुए, जिसमें आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे डेंजर एलीमेंट्स मिले। सिटी के डिफरेंट एरियाज में पानी की क्या कंडीशन है, इसके लिए आई नेक्स्ट ने एक और पहल की है। गोरखपुराइट्स जो पानी पी रहे हैं, वह किस कदर प्योर है, यह जानने के लिए वॉटर टेस्ट कराया गया। सबसे पहले सिटी के पॉश एरिया सिविल लाइंस के पानी की जांच कराई गई, जिसमें पीने के पानी में क्या एलिमेंट्स है और यह नॉर्मल रेंज से किस लेवल पर हैं, इसकी हकीकत सामने आई। इसमें सिविल लाइंस एरिया का पानी विद इन नॉर्मल रेंज पाया गया।
न्ह्मद्गड्ड - ष्टद्ब1द्बद्य रुद्बठ्ठद्गह्य
क्कड्डह्मड्डद्वद्गह्लद्गह्मह्य न्ष्ष्द्गश्चह्लड्डढ्डद्यद्ग रुद्बद्वद्बह्लह्य
क्क॥ - 7.46 (6.5-8.5)
ञ्जष्ठस् - 450 (500द्वद्द/द्यह्लह्म)
ष्टड्ड - 68 (75द्वद्द/द्यह्लह्म)
ष्टद्य - 170 (250द्वद्द/द्यह्लह्म)
रूफ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग
पानी की किल्लत को वाटर हार्वेस्टिंग प्रॉसेस से कम किया जा सकता है। वाटर हार्वेस्टिंग कई तरह से किया जा सकता है, जिसमें से एक है रूफ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग। इस प्रॉसेस में घरों की छतों पर पड़ने वाले बारिश के पानी को गैलवेनाइज्ड आयरन, एल्यूमिनियम, मिट्टी की टाइलें या कंक्रीट की छत की मदद से वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बनी टंकी से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार हार्वेस्टिंग वाटर का यूज सामान्य घरेलू उपयोग के अलावा भूजल स्तर को बढ़ाने में भी किया जा सकता है।