जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, सियासी चर्चाओं से इलाकों की हवा गर्म होती जा रही है। पब्लिक के जो तेवर हैं, उसे देखकर कहा जा सकता है कि इस बार वह बूथ पर पहुंचने से पहले ही सारा हिसाब-किताब कर लेना चाह रही है। चाय की दुकानों से लेकर हर जगह वर्तमान विधायक से लेकर पिछले कई नेताओं के कार्यकाल की समीक्षा तो हो ही रही है, पार्टियों की विचारधारा, उम्मीदवारों की छवि से लेकर मुख्यमंत्री पद तक चर्चा के विषय हैं। खास बात यह कि पब्लिक इस बार सिर्फ यह तय नहीं कर रही कि किसे चुनना है, वह इस पर भी चर्चा कर रही है कि किसे इस बार नहीं चुनना है।

GORAKHPUR:

सहजनवां विधानसभा क्षेत्र

स्थान : मेन मार्केट

गोरखपुर शहर, ग्रामीण, पिपराइच विधानसभा क्षेत्रों में पब्लिक के साथ चाय की चर्चा में शामिल होने के बाद आई नेक्स्ट रिपोर्टर सहजनवां विधानसभा क्षेत्र में पहुंच गया। इस विस क्षेत्र में सहजनवां मेन मार्केट पर आम दिनों में भी सियासी समीकरणों पर चर्चा होती रहती है। वहीं इस समय चुनाव होने के कारण यहां चर्चाओं में रोज विधायक से लेकर मुख्यमंत्री तक बनाए-बिगाड़े जा रहे हैं। शुक्रवार को भी मेन मार्केट की प्रसिद्ध चाय दुकान पर चाय की चुस्कियों के साथ गर्मागर्म सियासी बहस जारी थी। बस क्या था, उनके बीच पहुंच बिना कोई परिचय दिए, रिपोर्टर ने भी एक सवाल उछाल दिया

रिपोर्टर- अब तो सभी पार्टियों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। उम्मीदवार घोषित हो गए हैं तो इस बार सहजनवां किस पर दांव चलेगा?

अनिल त्रिपाठी- भाई, पार्टियों के पत्ते खोलने से क्या होता है। अभी हम लोगों के पत्ते बाकी हैं। इस बार जरा हटकर पत्ते चलना है। वोट सभी विकास के नाम पर ही मांगते हैं लेकिन विकास करता कोई नहीं। इसलिए इस बार नोटा भी चलेगा

(अनिल त्रिपाठी की बात का समर्थन करते हुए)

भूपेश तिवारी- अनिल भाई सही कह रहे हैं। धोखा देने वालों को इस बार आइना दिखाने की जरूरत है। सहजनवां का जो विकास नहीं करेगा, उसका विकल्प हम लोगों को तो सोचना ही पड़ेगा।

(भूपेश के चुप होते ही)

श्रीप्रकाश शुक्ला- पिछले 10 साल में दो सरकारें आई। दोनों को देख लिया। विकास का एक भी ईट सहजनवां में नहीं पड़ी है। प्रदेश में चेहरा बदलेगा तभी कुछ होगा। देखिए, 2014 के बाद देश की तस्वीर कैसे बदली है।

(बात को बीच में काटते हुए)

बृजेश यादव- अरे शुक्ला जी, देश की तस्वीर बदली है तो मोदीजी चेहरा थे। इस बार प्रदेश में तस्वीर बदलना चाहते हैं तो सीएम कैंडिडेट का चेहरा लेकर मैदान में क्यों नहीं उतरते? वोटर्स भले ही माया, राहुल, मोदी में बंट जाएं, लेकिन सीएम पद के अहम दावेदार तो अखिलेश ही रहेंगे।

(चुटकी लेते हुए)

श्रीप्रकाश शुक्ला- हां भाई, प्रदेश में दंगे हुए और सैफई में विकास। ऐसा ही विकास पुरुष तो चाहिए आपको जो केवल अपने घर में विकास करे। और दिखा दीजिए कहीं कुछ हुआ हो तो?

(पलटवार करते हुए)

बृजेश यादव- तो भाई गुजरात में क्या हुआ था? वहां तो 2002 में विकास की गंगा बही थी ना? अब यहां भी बहाना चाहते हैं? संघ के एजेंडे पर पूरी सरकार चल रही है आपकी

(बीच में बोलते हुए)

राजकुमार- पांच साल में प्रदेश में अराजकता बहुत बढ़ गई है। केन्द्र हो या प्रदेश की सरकार, कोई इसे रोक नहीं पाई। जब केन्द्र ने कुछ करना चाहा तो प्रदेश सरकार अपराधियों के बचाव में उतर जाती थी और जब प्रदेश सरकार कार्रवाई के मूड में हो तो केन्द्र उन्हें बचा लेता है। यही तो हो रहा है विकास? इस बार दोनों तरफ से आपराधिक छवि के उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। खुद लिस्ट देख लीजिए आप लोग।

अशोक- बिल्कुल सही कह रहे हैं राजकुमार भाई। सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

(तीखी हो रही बहस को हल्का करते हुए)

गुड्डू उपाध्याय- अरे भाई, हमें पीएम, सीएम नहीं, विधायक चुनना है। आप लोग कहां अखिलेश, मोदी, माया में उलझ गए? अपने इलाके की बात कीजिए। पांच साल में कौन सी रोड बनी? बता सकते हैं?

अनिल त्रिपाठी- सही कह रहे हैं गुड्डू भाई। हम लोग ऐसी ही बातों में उलझ जाते हैं और इसका फायदा उठाकर विकास नहीं करने वाले भी सत्ता में आ जाते हैं। इस बार तो आप भी मेरे मुहिम से जुड़ ही जाइए। अच्छा नेता मिले तो ठीक, नहीं तो चट से नोटा दबा दीजिए

(बीच में बोलते हुए)

विकास यादव- अनिल त्रिपाठी जी, आप जब भी कुछ कहते हैं, माहौल खराब करते हैं। उम्मीदवार विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं, कुछ तो विकास करेंगे ही।

अजय यादव- ये लीजिए, विकास भाई का नाम क्या विकास हो गया, इन्हें यकीन है कि सहजनवां का भी विकास हो जाएगा। वैसे सही भी है। पिछले पांच साल में प्रदेश की सूरत बहुत बदली है। इसमें कोई दोराय नहीं कि जो विकास करे, उसी को वोट दिया जाए। नहीं तो लगा दीजिए नोटा

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टी प्वाइंट

मेरी दुकान पर चाय पीने वाले तरह-तरह की चर्चा करते रहते हैं। अलग-अलग समय पर अलग-अलग चर्चा होती है। अब इस समय चुनाव होना है तो जो भी आता है, चुनावी बहस करता रहता है। मेरा क्या है, अपना धंधा चल रहा है। कई बार लोग मुझसे भी राय मांगते हैं और बहस में शामिल कर लेते हैं। मेरा मानना है कि नेता जो भी वादा करें, जीतने के बाद उसे पूरा जरूर करें। वोट जाति के नाम पर नहीं, बल्कि विकास के नाम ही दिया जाना चाहिए।

रंगीलाल गौड़, दुकानदार

(सहजनवां रेलवे स्टेशन के पास यह दुकान 25 साल से है.)