- डीडीयूजीयू के संवाद भवन में 'भारतीय समाज में स्त्री: यथार्थ व चुनौतियां' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
भारतीय सांस्कृतिक इतिहास नारी अधिकारों को लेकर कलंकित नहीं: प्रो। विपुला
GORAKHPUR: डीडीयूजीयू के संवाद भवन में गोरखपुर यूनिवर्सिटी महिला कल्याण परिषद की तरफ से 'भारतीय समाज में स्त्री: यथार्थ एवं चुनौतियां' विषय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के सांख्यिकी विभाग की अध्यक्ष प्रो। शीला मिश्रा ने कहा कि भौतिकवादी दर्शन ने स्त्री विमर्श के वर्तमान दृष्टिकोण को सर्वाधिक प्रभावित किया है। असंवेदनशील समाज में बढ़ती स्वेच्छाचारिता, अमानुषिकता की पराकाष्ठा, भेदभाव और असुरक्षित वातावरण नारी के सुखी और सम्मानित जीवन के लिए अभिशाप बन गए हैं। लैंगिक भेद को केंद्र में रखते हुए ही स्वतन्त्रता की मर्यादाओं को भी परसीमित किया गया है, जो न केवल भेदभाव को किसी न किसी रूप में प्रोत्साहित कर रहा है बल्कि सामाजिक समता के आदर्शो को धीरे धीरे खोखला भी कर रहा है।
आचारों में निहित है संस्कृति की परंपरा
उद्घाटन सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक एवं प्राचीन इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो। विपुला दुबे ने कहा कि प्राचीन भारतीय मनीषा में नारी सशक्तीकरण के सूत्र भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के आचारों में निहित थे। वैदिक काल में यज्ञ संपादन के लिए पुरुष के वाम में स्त्री का बैठना और निर्णय की समस्त प्रक्रियाओं में सशक्त व प्रभावी भूमिका का निर्वाह किया जाना इस बात का परिचायक है कि ऐतिहासिक भारतीय पृष्ठभूमि इस विषय पर कलंकित नहीं है।
सामाजिक मानसिकता का दोहरापन
विशिष्ट अतिथि प्रो। मधु कुमार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की प्राकृतिक व्यवस्था न्याय के मूलभूत सिद्धांतों को केंद्र में रखकर कभी भेदभाव नहीं करती। यह तो सामाजिक मानसिकता का दोहरापन है जिसने लैंगिक विभेद को जन्म दिया और स्त्रियों को सशक्त करने पर आज समाज को चिंतन करने पर बाध्य होना पड़ा।
क्यों न यूनिवर्सिटी को महिला वीसी मिले
अध्यक्षता कर रहे वीसी प्रो। अशोक कुमार ने कहा कि जीव वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर हम देखें तो लिंगभेद जैसा कोई भी तत्व दूर दूर तक दिखाई नहीं देता। एक मूल कोशिका ही शरीर में जाकर मानव के अंश का निर्माण करती है। शरीर के अंदर हमारा शरीर तक शिशु के पालन पोषण में कोई विभेद नहीं करता। यह तो सामाजिक भेदभाव का दृष्टिकोण है, जिसकी वजह से हम मानव को पुरुष और स्त्री के रूप में विभेदित कर देते हैं। मौके पर वीसी ने एक प्रस्ताव भी रखा कि क्यों न उनके कार्यकाल की समाप्ति पर यूनिवर्सिटी को एक महिला वीसी मिले।
ये थे मौजूद
मौके पर मानद ग्रन्थालयी प्रो। हर्ष कुमार सिन्हा, प्रो। हिमांशु चतुर्वेदी, प्रो। सुधीर कुमार श्रीवास्तव, प्रो। विनोद सोलंकी, प्रो। राजवंत राव, प्रो। ईश्वर शरण विश्वकर्मा, प्रो। रविशंकर सिंह, प्रो। विनोद सिंह, प्रो। द्वारिका नाथ, प्रो। आर.के पाठक, डॉ। रानी धवन, प्रो। सुषमा पाण्डेय, प्रो। पूजा सिंह, डॉ। दिव्या रानी सिंह सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी छात्र छात्राएं उपस्थित थे।