- आसानी से मार्केट में बिक रहे कछुए, कोडवर्ड से होती है तस्करी
- गोरखपुर में फैला है तस्करी का जाल,
GORAKHPUR : तीन दिन पहले सिटी के गोड़धोइया नाला पर कुछ शिकारी पहुंचे। शिकारियों ने जाल डाला तो कछुए फंस गए। शिकारी उन कछुओं को पकड़कर ले जाते, इसके पहले लोगों की भीड़ जमा हो गई। जाल डालने वाले मछुआरे आननफानन में कछुओं को पानी में फेंककर फरार हो गए। तब सामने आया कि कछुआ तस्करी का जाल गोरखपुर में काफी गहरा है। आई नेक्स्ट ने जब कछुआ तस्करी को लेकर पड़ताल की तो पता चला कि ये नेक्सस प्रदेश, देश और विदश तक फैला हुआ है। वैसे तो कछुओं की बिक्री पर पूरी तरह से रोक है, लेकिन शहर में खुलेआम आधा दर्जन से ज्यादा दुकानों पर रंग बिरंगी मछलियों के साथ कछुए भी बेचे जा रहे हैं। इस पूरे खेल को बेनकाब करने के लिए आई नेक्स्ट टीम ने स्टिंग ऑपरेशन किया तो महज 250 रुपए में दुकानदार कछुआ बेचने को तैयार हो गया।
250 दीजिए, गोलू ले जाइए
एक्वेरियम में तैरने वाले कछुए सिटी में बड़ी आसानी से मिलते हैं। गणेश चौक, खोआमंडी गली, अलीनगर, विजय चौक सहित कई जगहों पर करीब आधा दर्जन एक्वेरियम की दुकानें हैं। इन दुकानों पर कछुए बिक रहे हैं। हर दुकान पर अलग-अलग रेट है। दो सौ रुपए से लेकर चाढ़े चार सौ रुपए में आसानी से एक कछुआ मिल जाता है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने तीन दुकान पर जाकर कछुआ खरीदने की बात की। बातचीत में पता चला कि कछुए का कोडवर्ड गोलू है। शॉपकीपर इसी नाम से कछुआ खरीदते-बेचते हैं।
प्लेस- एक्वेरियम शॉप, खोआमंडी
रिपोर्टर- घर के लिए कछुआ चाहिए।
दुकानदार- अभी तो नहीं है। तीन दिन बाद आइए।
रिपोर्टर- अर्जेट है। बच्चे जिद कर रहे हैं। एक्वेरियम में लगाना है। जल्दी कर दीजिए।
दुकानदार- हम आगरा से कछुआ मंगाते हैं। तीन दिन बाद आइए, तब मिल जाएगा। जब कछुआ लेने आइएगा तो पूछिएगा, गोलू आया या नहीं।
प्लेस- एक्वेरियम शॉप, विजय चौक
रिपोर्टर- भाई, एक कछुआ चाहिए, कितने में मिल जाएगा?
दुकानदार- मिल जाएगा, पर तीन सौ लगेंगे।
रिपोर्टर- ठीक है, लेकिन दाम ज्यादा लगा रहे हो। मैं पता कर लेता हूं, फिर आता हूं।
प्लेस- एक्वेरियम शॉप, गणेश चौराहा
रिपोर्टर- कछुआ चाहिए?
दुकानदार- मिल जाएगा। कौन सा दूं?
रिपोर्टर- एक्वेरियम में रखना है, कितना देना होगा?
दुकानदार- तीन सौ लगेगा, आपके लिए ढाई सौ में दे रहे हैं।
रिपोर्टर- ठीक है, मैं अपने किसी साथी को लेकर आता हूं।
कोई रोकटोक नहीं, ले जाइए
आई नेक्स्ट की तहकीकात में पता चला कि कछुओं की बिक्री पर कोई रोकटोक नहीं है। सिटी में ऑफिसर्स बंगला, बिजनेसमैन, स्कूल, हॉस्पिटल सहित कई जगहों पर एक्वेरियम में कछुए जलक्रीड़ा करते नजर जा जाएंगे। दुकानदारों ने बताया कछुआ की करीब सवा दो सौ प्रजातियां होती हैं, लेकिन हिन्दुस्तान में 55 प्रजातियां ही मिलती हैं। वन विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि यूपी में कछुओं की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। मुलायम खोल की कटावा और सुंदरी प्रजाति के कछुओं की डिमांड ज्यादा होती है।
तीन साल की कैद, 25 हजार का जुर्माना
कछुआ पालन नियमानुसार प्रतिबंधित है। सिटी और देहात में नियम कानूनों का मजाक बनाकर कछुए पाले जा रहे हैं। वन्य जीव अधिनियम-1972 के तहत पशु पक्षियों, जानवरों के शिकार, अवैध ढंग से पालन पर रोक है, इनमें कछुआ भी शामिल है। कछुओं की बड़े पैमाने पर तस्करी होने पर केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सरकारों को कछुओं को अवैध ढंग से पालने पर रोक लगाने और संरक्षण का निर्देश दिया था।
कुशीनगर, नेपाल के रास्ते पहुंच रहे बिहार
बिहार से सटे गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया सहित कई जिलों से कछुओं की तस्करी होती है। पुलिस का कहना है कि दुदही और जटहां बाजार में बनी जल सुरंगों में कछुओं को रखा जाता है। कुछ दिनों से बाद तस्कर कछुओं को कोलकाता फिर वहां से चीन तक भेज देते हैं। महराजगंज और सिद्धार्थनगर के रास्ते जहां नेपाल कछुए भेजे जाते हैं। इंटरनेशनल मार्केट में कछुओं की कीमत लाखों रुपए होती हैं। वर्ष 2014 में कुशीनगर में पकड़े गए तस्करों ने पुलिस को बताया था बीस नाखून वाले कछुओं की कीमत दस से पन्द्रह लाख रुपए होती हैं। वर्ष 2012 में फेमस बखिरा झील से कछुआ तस्करी का मामला सामने आया था। यहां से कछुओं को नेपाल ले जा रहे तस्करों को पुलिस, वन विभाग की टीम ने पकड़ा था।
हाल में सामने आए बड़े मामले
20 जून 2015 को कानपुर की कल्याणपुर पुलिस ने सैकड़ों की तादाद में कछुआ बरामद किए।
23 मई 2015 को मुंबई एयरपोर्ट से विदेश भेजे जा रहे 335 कछुए बरामद किए गए।
24 दिसंबर 2014 को पीलीभीत में 126 कछुए पकड़े गए।
20 दिसंबर 2014 को जीआरपी कानपुर ने 218 कछुए बरामद किए।
3 नवंबर 2014 को पटना जंक्शन पर जीआरपी ने कछुओं की भारी खेप बरामद की।
गोरखपुर में कछुआ तस्करी का कोई मामला पकड़ा नहीं गया है। इस पर पूरी नजर रखी जाती है। यदि जिले में तस्करी की कोई सूचना मिली तो जांच करके कार्रवाई की जाएगी।
डॉ। जनार्दन, डीएफओ