- बजट पास नहीं हुआ लेकिन आरटीओ के चेंबर में लग गई टाइल्स
- कहां से आई निर्माण की राशि? महकमे में हो रही चर्चा
GORAKHPUR: अभी तक आपने ऐसे तमाम मामले देखे होंगे, जिनमें बजट के बाद भी निर्माण में लेट-लतीफी होती होगी लेकिन यह मामला बिल्कुल अलग है। यह मामला अपने अजीबोगरीब कारनामों से अक्सर चर्चा में रहने वाले आरटीओ ऑफिस का है। यहां अधिकारियों ने ऑफिस में निर्माण कार्य में इतनी तेजी दिखाई कि बिना किसी बजट के ही निर्माण कार्य शुरू करा दिया है। महकमे में भी इस बात की बहस छिड़ गई है कि जब बजट बना ही नहीं तो निर्माण कार्य के लिए राशि कहां से आ रही है?
कर्मचारियों के पैसे से निर्माण?
आरटीओ में कुछ महीने पहले लर्निग ड्राइविंग लाइसेंस के लिए ऑनलाइन टेस्ट की प्रक्रिया शुरू हुई तो विभाग को नए टेस्ट रूम की जरूरत पड़ी। आनन-फानन में परिसर में टेस्ट रूम का निर्माण शुरू हो गया। इसमें हैरानी वाली बात यह है कि इसके लिए न तो किसी तरह का बजट बना और न ही किसी मद की मुख्यालय से स्वीकृति हुई। आरटीओ सूत्रों के मुताबिक इस टेस्ट के लिए रूम का निर्माण कर्मचारियों के पैसों से कराया गया है।
यह है चर्चा
सूत्रों की मानें तो टेस्ट रूम बनवाने के लिए अधिकारियों का सख्त निर्देश था। इसके बाद अधिकारियों की तरफ से कर्मचारियों पर इस बात का दवाब बनाया गया कि टेस्ट रूम का निर्माण उन्हें ही कराना पड़ेगा। चर्चा है कि कुछ कर्मचारियों ने पैसों का इंतजाम करके करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत से टेस्ट रूम का निर्माण कराया। इसमें टीन शेड के कमरे से लेकर यहां के फर्नीचर तक का जुगाड़ कर्मचारियों ने ही किया।
चेंबर में कहां से लगी टाइल्स?
इतना ही नहीं यह चर्चा तब और जोर पकड़ ली, जब अन्य जरूरी काम पेंडिग होते हुए आरटीओ अधिकारियों के चेंबर्स में लाखों रुपए की टाइल्स लगने लगी। यह टाइल्स दोनों आरटीओ अधिकारियों के चेंबर्स में लग रही है। सूत्रों के मुताबिक इस काम की जिम्मेदारी एनफोर्समेंट के कर्मचारियों को दी गई हैं। जिनके जरिए अधिकारियों के चेंबर्स का नक्शा बदला जा रहा है।
सिर्फ कंप्यूटर के लिए मिले दो लाख
आरटीओ अधिकारियों के मुताबिक ऑनलाइन टेस्ट की प्रक्रिया शुरू करने के लिए मुख्यालय से सिर्फ दो लाख रुपए का बजट मिला था। जो कंप्यूटर के लिए था। इन पैसों से ही टेस्ट के लिए पांच कंप्यूटर सेट मंगाए गए थे।
वर्जन
निर्माण के लिए विभाग में पैसे आते रहते हैं। उसी से निर्माण कार्य कराया जा रहा है। कर्मचारियों पर इस तरह का कोई दबाव नहीं बनाया जाता। हो सकता है कि आरटीओ ने इसके लिए कोई बजट बनाकर भेजा हो, फिलहाल मेरी जानकारी में नहीं है।
सूरज राम पाल, एआरटीओ, प्रशासन
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अब 'जांच' की होगी जांच
- आरटीओ में चल रहे गोलमाल की एडिशन ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने की जांच
- एटीसी की जांच में हुए गोलमाल पर फिर टीसी ने बैठाई जांच
- 2009 के बाद के हुए पटल परिवर्तन के आदेश की मांगी रिपोर्ट
GORAKHPUR: आरटीओ में पटल परिवर्तन से संबंधी जांच में भले वाराणसी से आए एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर की जांच पर ही अब सवाल उठ गए हैं। जांच रिपोर्ट पर ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के रविंद्रनायक ने फिर से जांच के आदेश दिए हैं। इस बार टीसी ने यह रिपोर्ट मांगी है कि अगर बीते तीन साल के पहले विभाग में कभी भी पटल परिवर्तन हुआ है तो इसके आदेश की कॉपी भी मुख्यालय को उपलब्ध कराई जाए। इसके लिए उन्होंने बुधवार को निर्देश भी जारी कर दिया।
क्या है मामला
गौरतलब है कि आरटीओ ऑफिस में एक ही पटल पर लंबे अरसे से तैनात कर्मचारियों के जमे रहने सहित बिना टेस्ट परमानेंट ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने का मामला उजागर करते हुए आई नेक्स्ट ने बीते दिनों लगातार खबरें प्रकाशित की थी। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी के ट्रांसपोर्ट कश्मिनर के रविंद्रनायक ने इसकी जांच वाराणसी जोन के एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को सौंपी थी। बीते दिनों इस मामले की जांच करने आए एटीसी को यहां के अधिकारियों ने आननफानन में कर्मचारियों की तैनाती की लिस्ट बनाकर सौंप दी और किसी तरह मामले से पीछा छुड़ाया। यह मामला जब मुख्यालय पहुंचा तो एक बार फिर ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ने जांच के आदेश दे दिए और कहा कि अगर 2009 के बाद कभी भी आरटीओ में पटल परिवर्तन हुआ है तो उसके आदेश की कॉपी व तैनाती आदि की लिस्ट मुख्यालय को भेजी जाए।
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वर्जन
जब मैं कमिश्नर गोरखपुर था तो आरटीओ में पटल परिवर्तन कराया था। इसके बाद सभी कर्मचारियों के अपने पटल पर वापस आने की सूचना मिली। अगर इस बीच पटल परिवर्तन हुआ है तो उसके आदेश की कॉपी मांगी गई है। साथ ही परमानेंट लाइसेंस के संबंध में भी रिपोर्ट मांगी गई है। साक्ष्य मिलते ही कार्रवाई होना तय है।
के रविंद्रनायक, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, यूपी