- घर पहुंचने के लिए कर रहीं मददगार का इंतजार
GORAKHPUR : 'बजरंगी भाईजान' फिल्म तो आपने देखी ही होगी। कैसे एक गूंगी मासूम बच्ची को उसके घर पहुंचाने के लिए बजरंगी भाईजान सरहद पार कर जाते हैं। अब आपको हकीकत की दुनिया में ले चलते हैं। यहीं आपके शहर में कुछ बहनों को एक 'बजरंगी भाईजान' का इंतजार है, जो आकर उन्हें अपनों से मिलवाए। ये बहनें रहती हैं राजकीय महिला शरणालय में, जो इसी शहर में होने के बावजूद, उनके लिए किसी अलग दुनिया सरीखा है।
अपनों की राह तक रही बेबस निगाहें
बेतियाहाता मोहल्ले में राजकीय महिला शरणालय है। शरणालय में करीब 50 महिलाएं हैं। वह आपस में बातें कर लेती हैं। कभी-कभी किसी के घरवाले भी मिलने आ जाते हैं। लेकिन उनके बीच ऐसी भी बेबस और लाचार युवतियां भी हैं जो न बोल नहीं सकतीं हैं और न सुन सकती हैं। मंदबुद्धि होने की वजह से अपना दर्द बयां नहीं कर सकती। सिसकियां उनकी किस्मत बन चुकी हैं। आंसुओं के बीच वह अपनों की राह तक रही हैं।
आस पर तलाश
राजकीय महिला शरणालय से जुड़े लोगों का कहना है कि बोलने, सुनने में लाचार इन बहनों के घरवालों की तलाश पूरी नहीं हो पा रही है। लाख कोशिशों के बावजूद इन युवतियों के फैमिली मेंबर्स का पता नहीं चल सका है। शरणालय में लावारिस रह रही युवतियां घर जाना चाहती हैं। लेकिन सही नाम-पते के अभाव में उनकी मदद नहीं हो पा रही। कुछ दिनों पहले युवतियों को हाईकोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने उनके घरवालों का पता लगाकर युवतियों को सुपुर्द करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट के आदेश पर संवासिनियों के परिजनों की तलाश शुरू हुई है। अफसर भी चाहते थे कि रक्षाबंधन के पहले युवतियों को उनके घर पहुंचा दिया जाए।
मांग भरने का इशारा करके लगा रही गुहार
लोगों की बातचीत सुनकर युवतियां बहुत कुछ कहने की कोशिश करती हैं, लेकिन उनके अरमान होठों तक आकर ठिठक जाते हैं। कभी-कभी वह माथे पर सिंदूर लगाने का इशारा करती हैं, मानों कहना चाहती हों कि उनकी शादी करवा दी जाए ताकि कोई तो सहारा मिल जाए। लेकिन लोग उनके जज्बातों की कद्र नहीं करते और मजाक बनाकर हंस देते हैं।
दो साल से अपनों का इंतजार
शरणालय के लोगों ने बताया कि 18 साल की सकीना और 19 साल की शांति बोल नहीं सकती है। 19 साल की गौरी और 21 साल की बीना मंदबुद्धि हैं। चारों संवासिनी अपने घरवालों के बारे में कुछ बता नहीं पा रही हैं। 11 अगस्त 2013 को सकीना को संवासिनी शरणालय में लाया गया। सात जून 2014 को शांति आई। 19 जुलाई 2014 को बीना और नौ अक्टूबर 2014 को गौरी को पुलिस ने शरणालय में दाखिल कराया। जिला प्रोबेशन कार्यालय के अनुसार सभी संवासिनियों को सुरक्षा के लिहाज से शरणालय में रखा गया है। शकीना को महराजगंज जिले के निचलौल से लाया गया था। शांति चौरीचौरा कस्बे में मिली थी। जबकि बीना को सिटी मजिस्ट्रेट ने शरणालय में रखने का आदेश दिया। वह रेलवे स्टेशन रोड पर भटक रही थी। गौरी को कैंपियरगंज से पहुंचाया गया था।
सभी युवतियां बालिग हैं। उनके घरवालों का पता लगाया जा रहा है। युवतियों की मानसिक हालत ठीक न होने, मूक-बधिर होने से उनके बारे में जानकारी जुटाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में एनजीओ और अन्य संस्थाओं से भी मदद मांगी गई है ताकि बेसहारा युवतियों को उनके घर पहुंचाया जा सके।
समर बहादुर, डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन ऑफिसर