- प्रदेश के पहले फूको पैंडुलम पर लगा है चार साल से यूनिवर्सिटी का ताला

- यूनिवर्सिटी प्रशासन के उदासीन रवैये के चलते इसे कर दिया जाता है नजरअंदाज

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र:

डीडीयूजीयू के फिजिक्स डिपार्टमेंट में बने फूको पैंडुलम टावर को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन कितना संजीदा है। यह तो फूको पैंडुलम को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश के पहले फूको पैंडुलम को लेकर न तो डिपार्टमेंट के टीचर्स जागरूक हैं और ना ही यूनिवर्सिटी प्रशासन। जबकि इस फूकों पैंडुलम के चालू हालात में होने पर बीएससी स्टूडेंट्स को इसका फायदा मिलता वहीं प्राकृतिक आपदा की भयावहता का अंदाजा लगाने में भी यह मददगार साबित होता। इस पैंडुलम के चालू होने से गोरखपुराइट्स को भी एक नए यंत्र के बारे में जानकारी प्राप्त होती।

19 अप्रैल 2004 को की गई थी स्थापना

मुंबई, पुणे और कोलकाता के म्यूजियम में फूकों पैंडुलम लगाए जाने के बाद दीन दयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट में फूको पैंडुलम टॉवर की स्थापना 19 अप्रैल 2004 को गई थी। इस यंत्र को लगाने का मकसद पृथ्वी की स्पीड को मापना था। साथ ही साथ इस यंत्र के माध्यम से यह भी पता लगाया जा सकता है कि पृथ्वी 24 घंटे में कितनी बार प्लेन ऑफ ऑक्सिलेशन कर सकती है। हर घंटे इसके मेजरमेंट से कैलुकेट कर एक आंकड़ा भी निकाला जा सकता है। इस आंकड़े के जरिए भौतिकी के क्षेत्र में काफी जानकारियां इक्ट्ठी की जा सकती हैं।

चार साल से खराब है पैंडुलम

फिजिक्स डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। मिहिर राय चौधरी ने बताया कि इस पेंडुलम को बनाने में 10 लाख से ज्यादा रुपए खर्च हुए हैं। इधर 2012 के बाद से यह खराब है। खराब होने की वजह यह है कि इस पेंडुलम को परमानेंट ऑपरेट होने के लिए एनर्जी की आवश्यकता होती है। जो इसे नहीं मिल पा रही है। अगर इस यंत्र को प्रॉपर इलेक्ट्रिक सप्लाई मिलती रहे तो इसे आपरेट करने में कोई दिक्कत नहीं है। जो बेसिक प्राब्लम है वह है इसकी बैट्री जो खराब हो चुकी है। इसके बेसिक प्रॉब्लम को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है।

बाक्स में दें

क्या है फूको पैंडुलम

फिजिक्स के टीचर डॉ। राकेश तिवारी बताते हैं कि फ्रेंच साइंटिस्ट लियोन फैकल्ट के नाम से इसका नाम फूको पड़ा। इस यंत्र को सन 1851 में पेरिस के टॉवर पर लटकाया गया। जहां इसकी जांच परख की गई। यह यंत्र 31 केजी गोलाकार है। जो पीतल का बना हुआ है। जिसे मेटल के 100 फीट धागे नुमा तार पर लटकाया गया है। जो धीरे-धीरे एक सीरे से दूसरे सिरे पर मुक्त रूप से आती जाती रहती है। जैसे-जैसे पृथ्वी रोटेट करती है। वैसे ही यह पैंडुलम भी अपना स्थान बदलता रहता है। इसी से पता लगाया जाता है कि पृथ्वी एक घंटे में कितना सफर तय की। टीचर्स की माने तो अगर यह सही सलामत रहता तो भूकंप के तीव्रता को इस यंत्र से मापा जा सकता है। इसके माध्यम से नये रिसर्च भी किए जा सकते हैं।

वर्जन

फूकों पेंडुलम के लिए प्रस्ताव मांगा गया है। जल्द ही इसे चालू करा दिया जाएगा। ताकि स्टूडेंट्स को इसका लाभ मिल सके।

प्रो। अशोक कुमार, वीसी, डीडीयूजीयू