गोरखपुर (शिवाकर गिरि)। सोमवार को शैक्षणिक संस्थाओं में भाषण, वाद-विवाद, गायन, चित्रकला, संगीत और नाटकीय प्रदर्शन से मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा दिया जाएगा। इसे लेकर कॉलेज व स्कूल प्रशासन ने तैयारी पूरी कर ली है। वहीं, बच्चों को भी तैयारी के साथ स्कूल आने को कहा गया है। हिंदी के जानकारों की मानें तो पढ़ाई, दवाई और कमाई में यदि हिंदी का प्रयोग बढ़े तो हिंदी भाषाओं के माथे की बिंदी बन सकती है।
शहीदों की याद में मनाया जाता है यह दिवस
वर्ष 1952 में ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए 21 फरवरी को एक आंदोलन किया गया था। इसमें शहीद हुए युवाओं की स्मृति में ही यूनेस्को ने पहली बार वर्ष 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को पहली बार वर्ष 2000 में अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया।
विश्व में बोली जाती हैं 6900 भाषा
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व में लगभग 6900 भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी, जापानी, स्पैनिश, हिंदी, बांग्ला, रूसी, पंजाबी, पुर्तगाली, अरबी भाषा हैं। संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गई भाषाओं में 90 प्रतिशत भाषाएं बोलने वाले लोग एक लाख से भी कम हैं। गौरतलब है कि विश्व के कुल भाषाओं में से 24 परसेंट भाषाएं भारत में बोली जाती हैं। 1961 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 1652 भाषाएं बोली जाती हैं।
दूसरी लोकप्रिय भाषा हिंदी
भारत विविध संस्कृति और भाषा का देश रहा है। 1961 की जनगणना के मुताबिक भारत में 1652 भाषाएं बोली जाती हैं। हालांकि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में फिलहाल 1365 मातृभाषाएं हैं, जिनका क्षेत्रीय आधार अलग-अलग है। अन्य मातृभाषी लोगों के बीच भी हिंदी दूसरी भाषा के रूप में लोकप्रिय है। 43 करोड़ लोग देश में हिंदी बोलते हैं, इसमें 12 परसेंट द्विभाषी है और उनकी दूसरी भाषा अंग्रेजी है। जबकि बांग्ला बोलने वाले 9.7 करोड़ लोगों में 18 परसेंट द्विभाषी हैं। हिंदी और पंजाबी के बाद बांग्ला भारत में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। जबकि देश में 14 हजार लोगों की मातृभाषा संस्कृत है। इसके अलावा 82 परसेंट कोंकणी भाषी और 79 परसेंट सिंधी भाषी अन्य भाषा भी जानते हैं।
वर्जन
मातृभाषा रोजगार की भाषा होनी चाहिए। आज के समय में भाषाओं की स्थिति दयनीय है। अंग्रेजी भाषा के वर्चस्व में मातृभाषा को युवा भूल रहे हैं। मातृभाषा को अगर बढ़ावा देना है तो पढ़ाई, दवाई और कमाई में भी प्रयोग किया जाना चाहिए।
प्रो। कमलेश गुप्त, हिंदी डिपार्टमेंट गोरखपुर यूनिवर्सिटी