- व‌र्ल्ड थैलीसीमिया डे स्पेशल

- प्रेग्नेंसी के टाइम कराएं जांच, वरना हो सकता है जीवन बर्बाद

- अवेयरनेस के अभाव में बढ़ रहे मरीज, न स्पेशलिस्ट, न जांच, कैसे हो इलाज

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : एचआईवी, एनीमिया, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी में एक और नाम जुड़ गया है थैलीसीमिया। इसके मरीज अधिक हैं, मगर अवेयरनेस की कमी से जानकारी कम है। गोरखपुर में भी लगातार थैलीसीमिया के मरीजों की संख्या बढ़ रही है, मगर उन्हें जान बचाने के लिए लखनऊ का रुख करना पड़ रहा है क्योंकि यहां न तो इस बीमारी का कोई स्पेशलिस्ट है और न ही सरकारी हॉस्पिटल में कोई जांच की सुविधा है। एक माह पहले तक गोरखपुर नहीं बल्कि पूरे पूर्वाचल में इस बीमारी की जांच संभव नहीं थी। जांच के लिए लोगों को लखनऊ या दिल्ली जाना पड़ रहा था, मगर एक माह से एक प्राइवेट पैथालॉजी में इसकी जांच शुरू हो गई है। इस बीमारी से ग्रसित मरीज की जिंदगी ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर टिकी रहती है। इस बीमारी की भयावता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात में इसे पायलट प्रोजेक्ट में रखा गया है। डॉक्टर्स के मुताबिक अवेयरनेस की कमी से ये बीमारी अपने पांव तेजी से पसार रही है। अगर हर प्रेग्नेंट लेडीज की जांच में इसे कंपलसरी किया जाए तो स्टार्टिग में ही इसे डिटेक्ट किया जा सकेगा।

क्या है थैलीसीमिया

यह जानलेवा बीमारी है। जेनेटिक बीमारी होने के साथ इसकी कोई दवा नहीं है। इस बीमारी में ब्लड के अंदर मौजूद हीमोग्लोबिन में खराबी आ जाती है। इस खराबी के कारण ब्लड में मौजूद रेड ब्लड कार्पस्युल नष्ट होने लगता है जिससे मरीज गंभीर एनीमिया का शिकार हो जाता है। मतलब उसे जिंदा रहने के लिए फ्रेश ब्लड की जरूरत पड़ती है। थैलीसीमिया के तीन प्रकार हैं। माइनर, इंटरमीडिएट और मेजर। इंडिया में करीब 6 करोड़ लोग माइनर थैलीसीमिया से पीडि़त है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल सात से दस हजार बच्चे ऐसे जन्म लेते हैं, जो इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। बोन मैरो ट्रांसप्लांट में 25 से 30 लाख रुपए का खर्चा आता है, जो काफी महंगा है। वहीं ब्लड की कमी भी कॉमनमैन के लिए बड़ी समस्या है। इस कारण कई लोगों की मौत भी हो जाती है।

सिम्पटम्स

- हीमोग्लोबिन कम होना

- चेहरे की हड्डियां विकृत होना

- अधिक थकान होना

- असामान्य विकास

- चेहरा सूख जाना या मुरझा जाना

- लगातार कमजोरी

- वजन न बढ़ना

थैलीसीमिया गंभीर बीमारी है। माइनर थैलीसीमिया के काफी मरीज हैं, मगर डिटेक्ट न होने के कारण इनकी संख्या पता नहीं चलती। जिन मरीजों में यह डिटेक्ट होता है, वे इलाज के लिए लखनऊ रेफर कर दिए जाते हैं। पूर्वाचल में एक माह पहले तक कहीं भी इसकी जांच नहीं होती थी। एक माह पहले इसकी जांच शुरू हुई है।

डॉ। अमित गोयल, पैथालॉजिस्ट

ये डिजीज जेनेटिक है। अगर मदर-फादर में किसी को ये है, तो बच्चे को होने के पूरे चांसेस रहता है। इसलिए प्रेग्नेंसी से पहले इसका टेस्ट जरूर कराएं। इसके बाद ही प्रेग्नेंसी को रखना है या नहीं, डिसाइड करें। इस बीमारी में सिर्फ ब्लड ट्रांसफ्यूजन ही इलाज है।

पूजा नाथानी, गाइनकोलॉजिस्ट