- प्रोफेशन ने बदल दिए मायने मतलब
- खुद को चेंज करने की कोशिश करें टीचर्स
GORAKHPUR: गुरू वंदनीय है। अनुकरणीय हैं। वह भटके को सही राह दिखाते हैं। गुरु, शिष्य को अंधकार से उजाले की राह पर ले जाते हैं, इसलिए तो गुरु पूजनीय हैं। वक्त बदलने के साथ जहां जमाने में काफी बदलाव आया है, वहीं गुरु-शिष्य के रिश्ते भी अब बदल चुके हैं। अब अगर गुरू खुद को प्रोफेशन से अलग रखेगा, तो गुरु-शिष्य रिश्ते की मिठास जन्म जन्मांतर तक बनी रहेगी और इससे दोनों को ही फायदा मिलेगा। इस गुरू शिष्य के रिश्तों की मिठास और हकीकत जानने के लिए जब आई नेक्स्ट ने गोरखपुराइट्स को मन टटोला तो इस मुद्दे पर कई अहम बातें सामने आईं।
पहले गुरु लगन के साथ पढ़ाते थे। तब टीचिंग तब प्रोफेशन नहीं था। पहले के गुरु अनुकरणीय थे। आज के गुरु पॉलिटिक्स से जुड़कर किसी तरह से सिर्फ वेतन के जुगाड़ में रहते हैं। इससे टीचर्स की छवि गिरी है। जरूरत है कि गुरु अपने को समझें, छात्रों को पूरी रिस्पांसिबिल्टी से पढ़ाएं तभी छात्र अपने गुरु का रिस्पेक्ट कर सकेगा।
कुमार प्रशांत, सीडीओ गोरखपुर
एकेडमी की शुरूआत में गुरु ने सपोर्ट किया। सिंगल परसन गुरु थे। जिन्होंने मेरी मरती हुई सोच को जिंदा किया। इसलिए उनकी आज भी रिस्पेक्ट करता हूं। कोई बात होने पर हम आज भी उनसे बात करते हैं। रिस्पेक्ट की भावना बचपन से सिखाई जाती है।
विकास पांडेय, स्टूडेंट
गुरू शिष्य के बीच का रिश्ता कम नहीं हुआ है। वह तो जन्म जन्मांतर का रिश्ता है। गुरु हमेशा शिष्य को अंधकार से उजाले की तरफ ले जाने का काम करते हैं। परछाई बनकर छात्र को सही रास्ता दिखाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही यह परपंरा आज भी कायम है।
कृष्णकांत मिश्र, डायरेक्टर, मॉर्डन हेरीटेज एकेडमी, कृष्णा नगर
स्कूल में जिस अध्यापक से नफरत करते थे, जिन बातों को लेकर अध्यापक से कड़वाहट रहती थी। वह प्रोफेशनल फील्ड में आने पर खुद ब खुद दूर हो जाती है। 20 साल बाद जब हमारी जिदंगी का विलेन मिलता है, तो आंखों से सिर्फ आंसू छलकते हैं। टीचर की आंखों में आंसू देखकर लगता है वह पिता तुल्य था। आज समझ में आता है कि उसका दिया हुआ ज्ञान, उसका मार्गदर्शन किस तरह का था।
पूणेंदु शुक्ल, प्रोफेशनल
आज का युवा बहुत ज्यादा एग्रीसेव है। वह समझता है कि उसकी मुट्ठी में दुनिया है, इसलिए उसको जबरन नहीं पढ़ाया जा सकता है। आज का समय गुरु के लिए कठिन दौर है। छात्र को यह बताना है कि बहुत सारी चीजों के बीच से वह क्या चुने। आज के दौर में टेक्नॉलाजी की बात होती है। इसलिए सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं बल्कि गुरु के पास व्यवहारिक ज्ञान का होना आवश्यक हो चुका है। आज के दौर में सफल गुरु वही है जो पूरी तरह से व्यवहारिक हो।
नीरज शाही, पूर्व छात्र नेता
आज के युग में वह गुरु नहीं चाहिए जो डंडा चलाए। इस परिवेश में एक दोस्त की जरूरत है। आजकल के स्टूडेंट्स, स्कूल में गुरु के भीतर अपने दोस्त को तलाशते हैं। ऐसा दोस्त जिससे हम अपनी बातों को शेयर कर सकें। अपनी बात निसंकोच भाव से कह सकें। इससे गुरु के रूप में वह हमें अच्छी बात बताएं। ज्ञान के साथ-साथ हमारा मार्गदर्शन कर सकें।
आर्य नंदिनी, स्टूडेंट