- राप्तीनगर निवासी दंपति मानते हैं बेटी को बेटे से बेहतर

- शिक्षक पिता का कहना, समाज को आईना दिखाएगी मेरी बेटी

GORAKHPUR: गुरु समाज को दिशा देता है। यह कहावत आपने जरूर सुनी होगी। इसे हकीकत बनाने का कार्य राप्तीनगर निवासी पेशे से टीचर करुणेश कुमार अस्थाना और उनकी पत्नी स्नेहलता कर रहे हैं। दस साल पहले शादी के बंधन में बंधे इस दंपति की आठ साल की बेटी है। अन्य लोगों की तरह इनके परिवार का भी मानना था कि बेटा ही वंश का नाम आगे बढ़ाता है। लेकिन करुणेश और स्नेहलता की तो कुछ और ही सोच थी। इस दंपति ने समाज की परिपाटी के विपरित सिंगल गर्ल चाइल्ड का कॉन्सेप्ट अपनाया। बेटी के बाद दूसरी संतान के बारे में ना सोचने का फैसला करते हुए उन्होंने पूरा ध्यान बेटी की परवरिश में लगा दिया। ये छोटा मगर सुखी परिवार बेटा-बेटी में भेदभाव करने वाली वर्तमान सोच को असल मायने में आईना दिखा रहा है।

मोटिवेट करने में आई प्रॉब्लम

करुणेश बताते हैं कि 2008 में जब बेटी यशस्वी का जन्म हुआ तो उसी समय उन्होंने सोच लिया कि दूसरी संतान के बारे में नहीं सोचेंगे। उनका मानना था कि उनका पूरा ध्यान और प्यार यशस्वी को ही मिलना चाहिए। कुछ दिन बाद उन्होंने ये बात पत्नी स्नेहलता को बताई। यह विचार सुनने के बाद वे कुछ दिन तो विचलित रहीं, लेकिन जल्द मोटिवेट हो गईं। करुणेश का कहना है कि पत्नी के मानते ही लगा कि मंजिल की तरफ पहला कदम बढ़ गया, लेकिन परिवार और ससुराल पक्ष को ये समझाना बहुत मुश्किल था। बुजुर्गो के मन में वंश चलाने की बात को लेकर असमंजस था। लेकिन काफी समझाने के बाद वे भी मान गए। करुणेश बताते हैं कि बेटी अभी छोटी है, इसलिए कई बार वह भी कहती है कि एक भाई या बहन चाहिए। उन्होंने उसे बताना शुरू कर दिया है कि उनके लिए जीवन की सबसे बड़ी खुशी केवल वह है और कोई नहीं।

बेटी के लिए जीती पहली लड़ाई

करुणेश अस्थाना का कहना है कि वे और पत्नी बेटी की हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करते हैं। वह भी अपनी प्रतिभा से अभी से जताने लगी है कि जीवन में निश्चित ही कुछ बड़ा कर गर्व प्रदान करेगी। उनका कहना है कि बेटी के लिए लड़ी गई परिवार और समाज से पहली लड़ाई हम दोनों ने जीत ली है। परंपराओं के खिलाफ बेटी के लिए लड़ी गई लड़ाई जीतने के बाद बहुत सारी जिम्मेदारियां भी आ गई हैं। इसे देखते हुए दंपति ने बिटिया के भविष्य निर्माण की अभी से तैयारी शुरू कर दी है। उनका मानना है कि उनकी बेटी अपने पैरों पर खड़ी होगी, सफलता के नए आयाम छूकर समाज को बताएगी कि मम्मी-पापा का फैसला गलत नहीं था।