गोरखपुर (ब्यूरो)। यूनिवर्सिटी प्रशासन न केवल अपने कैंपस में बल्कि एफिलिऐटेड कॉलेजों में उन्हें अपनी यह इच्छा पूरी करने का मौका देने जा रहा है। यूनिवर्सिटी के इस फैसले से अब बीकाम और बीएससी के स्टूडेंट्स भी अपने मनपसंद सब्जेक्ट में एमए की रेग्युलर पढ़ाई कर सकेंगे। फैसले को लागू करने को लेकर 'एडमिशन क्राइटेरिया एंड वेटेजÓ नाम की एक कमेटी बनाई जा रही है। यह कमेटी इसे लेकर नियम का प्रारूप भी तैयार करेगी।
पुराना नियम होगा लागू
यूनिवर्सिटी के लिए यह कोई नया नियम नहीं होगा क्योंकि 1988 के पहले ऐसी कोई बाध्यता यहां नहीं थी कि बीकॉम या बीएससी के स्टूडेंट्स ह्यूमैनिटीज के सब्जेक्ट से पोस्ट ग्रेजुएशन नहीं कर सकते। जब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसपर रोक लगाई गई तो कई बार छात्रनेताओं ने आवाज उठाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब जब न्यू एजुकेशन पॉलिसी में मल्टी डिसिप्लिनरी कोर्स के संचालन पर जोर है तो यूनिवर्सिटी ने इस पुरानी व्यवस्था को फिर से लागू करने का फैसला लिया है। यूनिवर्सिटी ऐसा इसलिए भी करने जा रही है क्योंकि देश व प्रदेश की ज्यादातर यूनिवर्सिटीज में यह व्यवस्था पहले से लागू है। ऐसे में जिन स्टूडेंट्स को गोरखपुर यूनिवर्सिटी में यह ऑप्शन नहीं मिलता, वह दूसरी यूनिवर्सिटीज की ओर रुख करने को मजबूर होते हैं।
हर साल निराश होते हैं स्टूडेंट्स
यूनिवर्सिटी में जब एडमिशन प्रोसेस शुरू होता है तब बहुत से अप्लीकेंट्स फॉर्म भर देते हैं और एंट्रेंस एग्जाम में एडमिशन के लिए अच्छे माक्र्स हासिल कर लेते हैं। पर जब वह काउंसिलिंग में आते हैं तो उन्हें नियम की जानकारी देते हुए लौटा दिया जाता है। यूनिवर्सिटी से मिली जानकारी के अनुसार इस कारण से एडमिशन न ले पाने के चलते 100 से ज्यादा स्टूडेंट्स को हर साल निराशा हाथ लगती है। इस साल जब यह संख्या 150 के करीब पहुंच गई तो यूनिवर्सिटी प्रशासन का ध्यान इसे लेकर नियमों में बदलाव की ओर गया।
स्टूडेंट्स को उसकी इंटरेस्ट के हिसाब से पढ़ाई का मौका मिलना चाहिए। ऐसे में बीकॉम और बीएससी के स्टूडेंट्स को एमए करने से रोकना अनुचित है। इस नियम में बदलाव की प्रोसेस शुरू कर दी गई है। इसका फॉर्मेट तय करने के लिए कमेटी का गठन किया जा रहा है। अगले सेशन से इस बाध्यता को खत्म करने की तैयारी है।
प्रो। पूनम टंडन, वीसी, डीडीयूजीयू