ृ-व‌र्ल्ड कैंसर डे पर आई नेक्स्ट ने जानी मेडिकल कॉलेज के कैंसर वार्ड की स्थिति

-मरीजों के बाहर से खरीदनी पड़ती हैं दवाएं, रेडियोथेरेपी तक भी व्यवस्था नहीं

<ृ-व‌र्ल्ड कैंसर डे पर आई नेक्स्ट ने जानी मेडिकल कॉलेज के कैंसर वार्ड की स्थिति

-मरीजों के बाहर से खरीदनी पड़ती हैं दवाएं, रेडियोथेरेपी तक भी व्यवस्था नहीं

GORAKHPUR : GORAKHPUR : कल यानी ब् फरवरी को कैंसर विश्व कैंसर दिवस था। इस दिन दुनिया भर में कैंसर जैसी भयावह बीमारी से लड़ने के लिए तमाम कदम उठाए जाते हैं। सेमिनार और सम्मेलनों से इस खतरनाक बीमारी लड़ने के उपाय सुझाए जाते हैं। गोरखपुर में भी कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज है। यहां के कैंसर वार्ड की स्थापना इसी मकसद से की गई थी इस भयावह बीमारी को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा। आखिर किस हाल में है बीआरडी मेडिकल कॉलेज का कैंसर वार्ड? व‌र्ल्ड कैंसर डे पर आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने इसका मुआयना किया। वहां पर जो हमने देखा वह कैंसर से भी खतरनाक था। कैंसर वार्ड का हाल यह है कि यहां अत्याधुनिक संसाधनों की बात तो छोड़ दीजिए, दवाएं तक उपलब्ध नहींहै। डॉक्टर उचित संसाधानों के बिना ही कैंसर के मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। मरीजों को रेडियोथेरेपी कराने के लिए सिटी निजी अस्पतलों की शरण लेनी पड़ती है या मेट्रो सिटीज की तरफ रुख करना पड़ता है। कई बार इसमें देर हो जाती है और मरीजों को अपनी जान देकर इस देरी की कीमत चुकानी पड़ती है।

आंखों देखा हाल

वेंस्डे को दोपहर क्ख् बजे आई नेक्स्ट रिपोर्टर कैंसर विभाग के वार्र्डो में पहुंचा। यहां चार वार्ड है। दो वार्डो में कैंसर के रोगी मौजूद थे, लेकिन डॉक्टर बाहर थे। बरामदे में स्थिति के वेटिंग रूम में क्ख् मरीज डॉक्टर का इंतजार कर रहे थे। जब उन मरीजों से आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने बात की तो रूह कांप उठी। एक मरीज ने बताया कि भैया हमारे पास इतना पैसा नहींहै कि हम बड़े शहर में इलाज करा सकें। मेडिकल कॉलेज में तो कई दवाएं ही मौजूद नहींहैं, कैंसर के इलाज में काम में आने वाली कई मशीनें दम तोड़ चुकी हैं। मजबूरी में हमें प्राइवेट अस्पतालों में जांचें करवानी पड़ती हैं। महंगी होने के कारण यह हमारी आर्थिक स्थिति को भी खराब कर रही हैं।

केस क्

तीन हफ्ते से हैं भर्ती

संतकबीरनगर के परसा निवासी दीनानाथ को चेस्ट कैंसर है। वह पिछले एक साल से इस बीमारी से जूझ रहे हैं। जब उन्हें सीने में तेज दर्द होना शुरू हुआ तो जांच की गई। जांच में कैंसर की पुष्टि हुई। वह मेडिकल कॉलेज के कैंसर वार्ड में पिछले ख्क् दिनों से भती हैं। उनका कहना है कि यहां के कैंसर वार्ड में अव्यवस्थाओं की भरमार है। कभी दवाएं नहींमिलती हैं तो कभी समय पर जांच नहींहोती।

अब तक पांच लाख खर्च

बस्ती जिले के बानपुर निवासी सीताराम मिस्त्री हैं। इनकी पत्नी जगुंता देवी को एक साल पहले गले में कैंसर हो गया। इलाज मेडिकल कॉलेज के कैंसर विभाग में चल रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद भी फैमिली मेंबर्स इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पांच बेटी और दो बेटों के खर्च के साथ में पत्नी के इलाज में अभी तक पांच लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। कुछ जरूरत की दवाएं मेडिकल कॉलेज से मिल जाती है, लेकिन ज्यादतर दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ती हैं।

पैसे तो मिले, लेकिन नहींलगा कोबाल्ट

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कैंसर रोगियों के लिए कोबाल्ट मशीन लगाने के लिए शासन ने पैसे दे रखे हैं, लेकिन पैसा आने के बाद भी इसे अब तक नहींलगवाया जा सका है। मशीन नहीं लगने की वजह से कैंसर रोगियों को रेडियोथेरेपी कराने के लिए प्राइवेट क्लिनिक या अस्पताल का सहारा लेना पड़ता है। रोगियों के इसमें लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं।

इस तरह के हैं रोगी

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ज्यादातर महिला कैंसर रोगी बच्चेदानी के कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर, पित्त की थैली के कैंसर के पीडि़त हैं। वहीं पुरुष मरीज ओरल कैंसर से पीडि़त हैं।

वर्जन

कैंसर विभाग में कोबाल्ट मशीन लगाने के लिए साढ़े चार करोड़ रुपये मिल चुके हैं। कोबाल्ट मशीन के लिए अभी तक एक ही कंपनी सामने आई है। जल्द से जल्द मशीन लगा दी जाएगी।

मेजर डा.एमक्यू बेग, कैंसर विभाग के विभागाध्यक्ष, मेडिकल कॉलेज

कोबाल्ट मशीन के लिए काफी दिनों पहले प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था। शासन ने प्रस्ताव पर बजट पास कर दिया है। जल्द ही हम नई कोबाल्ट मशीन खरीद लेंगे।

डा.केपी कुशवाहा, प्रिंसिपल, बीआरडी मेडिकल कॉलेज