गोरखपुर (ब्यूरो)।हमारे इर्द-गिर्द ऐसे ढेरों रिश्ते हैैं, जो अनगिनत अहसास कराते हैैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की न्यूज सीरीज मेरी मां के छठे अंक में आज आपको कुछ ऐसी ही मां की कहानी बता रहे हैं, जो एक औरत को मां होने का अहसास कराती हैं। जो एक औरत के मां बनने के सुख में बराबर की भागीदार होती हैं।
26 साल से मां की भूमिका में सीके
जिला महिला अस्पताल में असिस्टेंट नर्सिंग सुप्रीटेंडेंट सीके वर्मा भले ही सुप्रिटेंडेंट के पद पर हैैं। लेकिन वह पिछले 26 वर्ष से डिलीवरी रूम में आने वाली प्रसूताओं को डिलीवरी के बाद उन्हें हर एक जानकारी देती हैैं। एक मां को कैसे बच्चे को फींिडंग करानी है और कैसे उसकी परवरिश करनी है, यह सबकुछ वह बताती हैैं। सीके के नाम जानी जाने वाली नर्स जिला महिला अस्पताल के गायनिक डिपार्टमेंट के लेबर रुम में पिछले 26 साल से सेवा दे रही हैैं। अपने काम को लेकर सीके कहती हैं कि लेबर रूम में जब पहली बार आना हुआ तो मैं घबरा गई थी और मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, चारों तरफ चीखने-चिल्लाने की आवाजों से घबराहट होती थी तो दूसरे ही पल नन्हीं किलकारी की गूंज सुकून भरी खुशी देती थी। एक बच्चा दुनिया में कैसे आता है या यूं कहें कि बच्चे को दुनिया में कैसे लाया जाता है। सीके ने ये करीब से देखा है। मां के पेट से बच्चे के बाहर आने तक वो 5 से 7 मिनट के मुश्किल पल, जितना गर्भवती के लिए चुनौतीपूर्ण होता है उससे ज्यादा डॉक्टर्स, दाई और नर्स के लिए होता है। दर्द से कराहती महिला के माथे पर प्यार भरा हाथ सहलाना हो, उसे सांत्वना देना हो या कभी-कभी उसे मां की तरह डांटना हो, ये सब काम सीके करती हैं, ताकि वो महिला मां बन सके।
एक दिन में 8-10 डिलीवरी
सीके वर्मा बताती हैं कि, कभी-कभी ऐसे केसेस होते हैं कि महिला का प्रसव कराना जैसे किसी युद्ध के मैदान में जंग लडऩा हो, ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार पेशेंट सहज नहीं होते वो दर्द में होते हैं तो दाई को अपशब्द भी कह देते हैं। हंसते हुए उन्होंने अपना किस्सा बताया कि एक बार तो एक पेशेंट ने उन्हें सीधे लात मार दी थी, कई बार तो ऐसा होता है कि लेबर पेन में पेशेंट एक जगह ठहरती नहीं, कभी जमीन पर ही लेट जाती हैं तो वहीं डिलवरी करानी पड़ती है। सीके बताती हैैं कि ज्यादातर पेशेंट को-ऑपरेट करते हैं उनकी हिम्मत बंधाने का काम दाई बखूबी करती हैं। बच्चे का जन्म हो तो खुशियां ही खुशियां, परिवार की खुशी देख मन गदगद हो जाता है, पर जब किसी बच्चे की डेथ हो जाती है तो मां का गम देखा नहीं जाता। एक दिन में कम से कम 8 से 10 डिलीवरी करवा लेते हैं।
लेबर पेन में छोड़कर चले जाते हैैं
जिला महिला अस्पताल में तैनात नर्स अंजना व वंदना भी एक मां का रोल अदा करती आ रही हैैं। अंजना बताती हैैं कि जब लेबर पेन से कराहती महिला के पास उनके परिवार का कोई नहीं होता तब उस शोर और दर्द के बीच एक मां का आंचल बन जाती हैं। बहुत तकलीफ होती है एक मां होकर मां का दर्द देखने में, लेकिन हम एक लक्ष्य के तहत काम करते हैं। जहां सबको खुशी देना है।