GORAKHPUR : पांच हैवानों द्वारा मिट्टी का तेल छिड़क कर आग के हवाले की गई अकांक्षा की पीड़ा बढ़ती ही जा रही है। अगर दर्द मापने का कोई पैमाना होता तो आकांक्षा को हो रही पीड़ा से वह भी टूट जाता। पीठ पर बड़े-बड़े फफोले उसे हर पल चीखने और बिलखने के लिए मजबूर कर रहे हैं। हर फफोले के फूटने पर मां का कलेजा फटता नजर आया। मासूम बेटी की हर चिख पर पिता तिलमिलाता दिखा। वहीं अस्पताल की लापरवाही आकांक्षा के जलन को और बढ़ाती दिखी।
इस अस्पताल में बढ़ते हैं रोग
ये गोरखपुर का जिला अस्पताल है, पेशेंट तो यहां अपनी बीमारी का इलाज कराने आते हैं। लेकिन उनके साथ कभी न भूलने वाला धोखा हो जाता है। यहां जड़े जमा चुकी अव्यवस्था के कारण मरीज की बीमारी ठीक न होकर और बढ़ जाती है। मंडे को जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने बुरी तरह जलाई गई आकांक्षा के इलाज की व्यवस्थाओं की पड़ताल की तो हर तरफ जान ले लेने वाला इंफेक्शन नजर आया।
सफाई व्यवस्था का लगा इंफेक्शन
जिला अस्पताल का बर्न वार्ड जहां आकांक्षा का इलाज चल रहा है। वहां की सफाई व्यवस्था में क्रिटीकल इंफेक्शन नजर आया। वार्ड के मेन गेट के सामने और गेटों के पीछे पर पर जगह-जगह पान खाकर थुके गए थे। कहीं थालियां फेंकी गई थी तो कहीं पानी लगा हुआ था।
इलाज व्यवस्था का लगा इंफेक्शन
आकांक्षा का इलाज जिस तरीके से चल रहा है। उससे तो कोई विशेष राहत मिलती हुई नहीं दिख रही है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने एक विशेषज्ञ डाक्टर से बात कर जब आकांक्षा की स्थिति को बताया तो उस डाक्टर ने इतने क्रिटिकल केस के इलाज के जो तरीके बताए उस हिसाब से आकांक्षा को जो इलाज मिल रहा है वो वो काफी कम है। विशेषज्ञ डाक्टर के अनुसार अकांक्षा के शरीर के डेड स्कीन को हटाया जाना चाहिए लेकिन जिला अस्पताल में तीन दिन से एडमिट आकांक्षा के डेड स्कीन को अब तक नहीं हटाया गया। ऐसे मरीज के लिए अच्छी नर्सिग की व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन पूरे दिन आकांक्षा की देख भाल उसके ही परिजन ही करते नजर आए। पेशेंट की क्लोज पट्टी होनी चाहिए लेकिन इस तरह का कोई इलाज नहीं किया जा रहा था।
भ्रष्टाचार का इंफेक्शन
जलने वाले पेशेंट को जिला अस्पताल की तरफ से शरीर को ठंडक पहुंचने वाला क्रीम फ्री में देना चाहिए, लेकिन अस्पताल स्टाफ ने उनसे यह क्रीम बाहर से मंगवाई। इस क्रीम की कीमत करीब 300 रुपये प्रति डिब्बे है। अस्पताल के लोगों की माने अस्पताल में बर्न पेशेंट के इलाज के लिए ये क्रीम आती तो है लेकिन मरीजों को न देकर गड़बड़झाला कर दिया जाता है।
लापरवाही का इंफेक्शन
जिला अस्पताल में बर्न पेशेंट के इलाज के लिए बनाए गए प्लास्टिक सर्जरी वार्ड में शुरू से ही ताला लटका हुआ है। आलम यह है कि वार्ड के बाहर बड़ी-बड़ी घासें उग आईं है। वहीं अस्पताल में किसी प्लास्टिक सर्जन की नियुक्ति नहीं की गई है। जिससे मरीजों को इलाज के दूसरी जगहों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
'जो पीर पराई जाने रे'
गांधी जी का प्रिय भजन है 'वैष्नव जन तो तेने कहिये जो पीर पराई जाणे रे'। इस सिटी में ऐसे वैष्नव जन की कमी नहीं जो हर पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ लेते हैं। मंडे के अंक में जब आई नेक्स्ट ने पांच हैवानों द्वारा जिंदा आग के हवाले की गई आकांक्षा के इलाज के आर्थिक मदद की अपील की तो निजी तौर पर सैकड़ों लोगों तथा कई सामाजिक संगठनों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया।
सिटी के स्टार हॉस्पिटल के मालिक विजाहत करीम ने आकांक्षा के इलाज के लिए अस्पताल का दरवाजा खुला होने की बात कही तो, सामाजिक संस्था जन जागृति सेवा संस्थान की अध्यक्ष शिप्रा मैसी ने हर तरह की मदद का आश्वासन देते हुए आकांक्षा का इलाज दिल्ली के सफदरगंज स्थित सबसे अच्छे बर्न हॉस्पिटल में इलाज कराने का प्रस्ताव रखा। वहीं दिन भर आई नेक्स्ट के आफिस में फोनकर कर बड़ी संख्या में लोगों ने आकांक्षा के लिए दुआएं देते हुए मदद की पेशकश की।
डा। नीरज नैथानी पहुंचे जिला अस्पताल
आई नेक्स्ट में छपी खबर और फोटो देखने के बाद शहर के नामी प्लास्टिक सर्जन मंडे की दोपहर को आकांक्षा को देखने जिला अस्पताल पहुंचे। उन्होंने अकांक्षा के घावों को देखने के बाद उसके माता पिता को जरूरी सुझाव भी दिए। आई नेक्स्ट को उन्होंने बताया कि आकांक्षा करीब 45 प्रतिशत जली हुई है। इसको काफी केयर की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस समय अकांक्षा को इंफेक्शन से बचाने की जरूरत है।