गोरखपुर (ब्यूरो)। हाल फिलहाल में गोरखपुर में आईआईटी की तैयारी के लिए बच्चों को राजस्थान स्थित जिला कोटा भेजने का फैशन तेजी से बढ़ा है। क्लास 9वीं और 11वीं क्लास में ही पेरेंट्स बच्चों को कॉम्प्टीशन एग्जाम की तैयारी के लिए कोटा भेज रहे हैं, जिसका साइड इफेक्ट कोटा में सुसाइड के रूप में दिखने लगा है। गोरखपुर के कई बच्चे डिप्रेशन के शिकार होकर वापस घर लौट रहे हैं।

10 लाख बच्चे देते हैं आईआईटी एग्जाम

इंटर पास स्टूडेंट को आईआईटी कॉलेज में एडमिशन पाने के लिए जेईई मेन क्लियर करना होता है। देश भर से दस लाख से अधिक बच्चे इस एग्जाम में बैठते हैं। जेईई मेन क्यिलर करने वाले टॉप करीब 2.5 लाख बच्चे जेईई एडवांस एग्जाम में शामिल होते हैं। इसे पास करने वाले टॉप एक लाख स्टूडेंट को अच्छे आईआईटी कॉलेज में एडमिशन मिलता है।

एक परसेंट बच्चे होते हैं सफल

एक्सपर्ट की मानें तो कोटा तैयारी करने हर साल गोरखपुर से करीब 5000 बच्चे जाते हैं, जिसमे 12वीं पास 50 परसेंट, 11वीं के 40 परसेंट और 10 परसेंट बच्चे 9वीं क्लास के तैयारी करने पहुंच रहे हैं। यह तो केवल गोरखपुर का आंकड़ा है। इसके अलावा अन्य राज्यों और शहरों से बच्चे यहां तैयारी करने पहुंच रहे हैं। वहीं, आईआईटी रिजल्ट की बात करें तो यहां से केवल 1 परसेंट बच्चे ही सफल होते हैं। 99 परसेंट बच्चे असफल होते हैं, जिनके आगे फ्यूचर में तमाम प्रॉब्लम आती हैं।

प्रेशर से बढ़ा सुसाइड

एक्सपर्ट बताते हैं कि कम उम्र में पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रेशर बच्चों पर बहुत अधिक होता है। इसलिए सुसाइड के केस भी कोटा में बढ़े हैं। सूत्रों की मानें तो साल 2023 में कोटा में तैयारी करने आए 25 बच्चे अब तक सुसाइड कर चुके हैं। वहीं, ढेरों बच्चे डिप्रेशन में आकर घर वापस लौट गए हैं।

कोटा में बंद हो गई 9वीं की कोचिंग

बढ़ते सुसाइड के मामले को देखते हुए राजस्थान सरकार ने कक्षा 9 के बच्चों की कोचिंग बंद कर दी है। यह नियम बना दिया है कि कोचिंग में 9वीं क्लास के बच्चे का एडमिशन नहीं लिया जाएगा।

डिमांड क्या है

एक्सपर्ट की मानें तो 80 परसेंट बच्चे इंजीनियरिंग करके अपने मनचाहा या सही पोजिशन नहीं हासिल कर पाते हैं। इसके बाद उन्हें विभिन्न क्षेत्र में हाथ पैर मारना पड़ता है।

स्कूल छुड़ाने से बच्चे का नुकसान

एक्सपर्ट की अनुसार स्कूल में बच्चों को भाषा ज्ञान के साथ खेल-कूद, टीम वर्क, लीडरशिप क्वालिटी, अनुशासन और अपनी बातों को दूसरों को समझाने का मौका देता है। वहीं, स्कूल छोड़कर कोटा जाने वाले स्टूडेंट फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ्स और बायोलॉजी तक ही सीमित रह जाते हैं। इन विषयों में भी प्रैक्टिकल और लांग टर्म क्वेश्चन, सब्जेक्टीव नॉलेज का अभाव होता है। इन बच्चों को केवल कम समय में आंसर निकालने का ही टिप्स दिया जाता है।

कॉम्पटीशन की तैयारी जरूरी है, लेकिन स्कूल छड़़ाकर नहीं। ऐसा करने से वह बच्चा स्कूल से मिलने वाली ढेर सारे ज्ञान से वंचित रह जाता है। जो उसके लिए बहुत जरूरी है। इसलिए पेरेंट्स को जल्दबाजी ना दिखाते हुए बच्चे को रेगुलर स्कूल भेजने पर बल देना चाहिए। बच्चा अगर जीनियस है तो इंटर की क्लास करके भी वह बड़े-बड़े एग्जाम निकाल सकता है।

अजय शाही, अध्यक्ष, स्कूल एसोसिएशन गोरखपुर