गोरखपुर (ब्यूरो)। जन्माष्टमी को लेकर तैयारियां बुधवार को पूरी कर ली गईं। वहीं, गीता वाटिका, गोपाल मंदिर, गोरखनाथ मंदिर, गोलघर स्थित जलकल, पुलिस लाइन, आरपीएफ बैरक समेत लोगों के घरों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की झांकियां सजाई गई हैं। जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा होती है। मान्यता है कि कृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

जन्माष्टमी दो दिन

ज्योतिर्विद पं। नरेद्र उपाध्याय ने बताया, इस वर्ष 6 सितंबर बुधवार को अष्टमी रात 7.58 बजे लग रही है इस दिन कृतिका दिन में 2.39 पर समाप्त और उसके बाद रोहिणी लग रहा है। 6 सितंबर 2023 को अष्टमी और रोहिणी दोनों मिल रहा है। इसलिए इस बार किसी भी तरीके से कोई मतभेद या विभेद नहीं है। 6 तारीख को ही अष्टमी रहेगी। भगवान कृष्ण की पैदाइश रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी के दिन 12 बजे रात को हुई थी। अत: 6 तारीख को 12.00 बजे रात को अष्टमी भी मिल रही है और रोहिणी नक्षत्र भी मिल रहा है। यह बड़ी अच्छी बात है। इस साल चंद्रमा अपनी उच्च राशि में विराजमान रहेंगे, रोहिणी नक्षत्र, साथ ही अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी तिथि और सर्वार्थ सिद्धि योग का शुभ संयोग बन रहा है। ज्योतिष विद्या के अनुसार, 30 सालों के बाद यह शुभ संयोग जन्माष्टमी पर माना जा रहा है।

जन्माष्टमी व्रत और पूजन विधि

- कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का पूजन होता है।

- इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सभी देवताओं को नमस्कार करके व्रत का संकल्प लें।

- फिर मध्यान्ह के समय काले तिलों को जल में छिड़क कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं।

- अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।

- इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथा माता देवकी जी की मूर्ति भी स्थापित करें।

- देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम लेते हुए विधिवत पूजन करें।

- यह व्रत रात में बारह बजे के बाद ही खोला जाता है।

- इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता।

- फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवे का सेवन कर सकते हैं।