- डीडीयूजीयू के प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में द्वि दिवसीय सेमिनार

- रूहेलखंड यूनिवर्सिटी के एक्स वीसी समेत असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने रखे अपने विचार

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र: डीडीयू के संवाद भवन में प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में द्वि दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसका टॉपिक 'भारतीय संस्कृति में पर्यावरण की चेतना' रहा। सेमिनार के मुख्य अतिथि रूहेलखंड यूनिवर्सिटी के एक्स वीसी प्रो। ओम प्रकाश ने पर्यावरण के आक्रामकता पर चर्चा की। साथ ही उन्होंने पर्यावरण के संरक्षण संबंधी बात को सम्पूर्ण रूप से प्राकृतिक पर्यावरण की अनाक्रामकता के साथ जोड़ने की बात कही। भारतीय संस्कृति मूलत किसे कहेंगे? इस पर उन्होंने मर्यादा को स्थापित करने पर बल देते हुए कौटिल्य को रेखांकित किया। भारतीय संस्कृति मर्यादा को स्थापित करने पर बल देती है। अरण्य के महत्व को समझाते हुए उन्होंने पर्यावरण के साहचर्य का इसे आरोग्य धाम कहा।

संस्कृति आक्रामकता से ग्रसित है

उन्होंने कहा कि जिसमें, मानव, पशु-पक्षी सभी आश्रम पाते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण, परिवार, समाज सभी की मर्यादा को तोड़ते हुए एकांगी एकल व्यवस्था, व्यक्तिवादी भूमंडलीकरण की सोच सर्वधा व्याप्त है। भूमण्डलीकरण की संस्कृति आक्रामकता से ग्रसित है, जबकि भारतीय संस्कृति वन्य है, शालीन है, मार्यादित है। सबको साथ लेकर चलने वाली है। इसी क्रम में असम यूनिवर्सिटी के एक्स प्रेसीडेंट विशिष्ट अतिथि प्रो। आलोक त्रिपाठी ने वायु, जल व पृथ्वी के बीच सह संबंधों को पर्यावरण कहा। इनके तत्वों जीव तथा अजीव की भी चर्चा की और इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि पर्यावरण को हम सुधार सकते हैं, उसे निर्मित नहीं कर सकते हैं।

जिसमें एक बिंब है

सेमिनार के अध्यक्ष सुरेंद्र दुबे ने प्रकृति को स्वयं एक महाकाव्य कहा। और कहा कि जिसमें हम एक बिंब है। भारत मात्र एक भौगोलिक भारत नहीं वरन चिन्मय भारत है। उन्होंने अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त की चर्चा करते हुए उसमें सन्निहित पर्यावरण संरक्षण के सूत्रों का उल्लेख किया। इसकी क्रम में प्रो। विपुला दुबे ने कहा कि भारतीय संस्कृति मूलत: प्रकृति उपासक रही है। उन्होंने नदियों के देवत्व, देवात्मा, हिमालय, कृष्ण की अश्वत्थ से संबद्धता को पर्यावरण चेतना का प्रतीक कहा। उन्होंने पर्यावरण के प्रति सांस्कृतिक आस्था को पुन जागृत करने की बात कही और पर्यावरण संरक्षण की जोरदार वकालत की।

देश के कोने-कोने से आए विद्वान

वहीं कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो। राजवंत राव ने भारतीय संस्कृति की पर्यावरण चेतना को रेखांकित करते हुए इसे वरेण्य कहा। वहीं धन्यवाद ज्ञापन प्रो। ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने किया। इस अवसर पर यूनिवर्सिटी के अनेक वरिष्ठ आचार्य, देश के कोने-कोने से आए विद्वान, प्रो। डीपी तिवारी, प्रो। एके सिन्हा आदि उपस्थित रहे।