कॉमन इंट्रो
शहर के गुजरने वाले नेशनल हाईवे 28 और 29 पर फर्राटा भरती गाडि़यां, रोजाना गुजरते हजारे लोग। बावजूद इसके यहां सेफ्टी और सिक्योरिटी के कोई इंतजाम नहीं है। एनएच-28 जिसकी कुछ साल पहले सूरत बदल गई, गाडि़यां और भी तेजी से फर्राटा भरने लगीं, लेकिन सुरक्षा के इंतजाम अब भी जस के तस। न तो दूर तलक कोई ऐसा बोर्ड है जिसपर इमरजेंसी नंबर लिखा हो और न ही कोई पुलिस या सिक्योरिटी बूथ, जिससे लोगों का डर कुछ कम हो सके। यहां रात में कई किलोमीटर सफर के बाद पुलिस पिकेट शायद नजर आ जाए, जिससे थोड़ी देर के लिए ही सही कुछ सुकून जरूर मिल जाता है। मगर कुछ रास्ता गुजरने के बाद फिर हालत वैसी ही हो जाती है और लोग खुद को अनसेफ फील करते हैं। वहीं एनएच 29 के हालात ही नहीं बदले तो यहां सुरक्षा और दूसरे इंतजाम की बात करना बेमानी होगी। दोनों ही हाइवे की बात की जाए तो इन दोनों ही हाईवे की डगर बिल्कुल सेफ नहीं है।
- झाडि़यों भरी राह में नहीं है कोई सिक्योरिटी के इंतजाम
- नौसढ़ से बेलीपार के बीच सिर्फ एक चेकपोस्ट, वहां भी कोई पुलिस मौजूद नहीं
- रोड साइन न होने से डेंजर मोड़ जहां हो सकता है एक्सीडेंट
GORAKHPUR: नेशनल हाईवे नंबर 29, जो गोरखपुर से बड़हलगंज, दोहरीघाट, आजमगढ़ होते हुए वाराणसी को चला जाता है, इस राह पर भी सफर करना आसान नहीं है। खतरनाक मोड़ और अंधेरे में डूबे रास्तों की बात तो छोड़ दीजिए। इसकी डगर इतनी मुश्किल है, कि कोई भी लड़की अकेले इन राहों पर कदम बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा जाएगी। क्या लड़की, यहां से गुजरने के लिए मेल भी हिम्मत नहीं जुट पाते। जगह-जगह उगी झाडि़यां उनके खौफ को कई गुना बढ़ा देती हैं। वहीं, बंधों के बीच से बनाई गई राहें लोगों को और भी परेशान करने लगी हैं। आई नेक्स्ट ने एनएच 29 का सच जानने के लिए जब 15 किमी सफर किया, तो वहां जो हकीकत नजर आई वह हाईवे का सच बताने के लिए काफी थी।
झाडि़यों के अंबार के बीच लंबा सफर
नेशनल हाईवे 29 पर सेफ्टी और सिक्योरिटी की बात छोड़ दीजिए, यहां की राहें ही रात में सफर करने के लिए आपकी हिम्मत तोड़ देंगी। बमुश्किल 5 से 6 मीटर चौड़ी सड़क पर दोनों ओर घनी झाडि़यों का अंबार, यह कहां खत्म होंगे इसका कोई ठिकाना नहीं। आई नेक्स्ट टीम ने इन राहों पर जितनी भी दूर निगाह दौड़ाई, वही सूरत नजर आई। करीब 15 किमी के सफर में 10 किमी से ज्यादा रास्ते में दोनों ओर झाडि़यां मिली, जहां सिर्फ रेप ही नहीं बल्कि लूट करने के बाद कोई मारकर भी फेंक दे, तो किसी को भनक नहीं लग सकेगी।
10 किमी में सिर्फ एक चेक पोस्ट
एनएच 29 पर सफर की डगर काफी कठिन है। आई नेक्स्ट टीम जब नौसढ़ चौराहे पर पहुंची, तो वहां बेलीपार थाने की एक पुलिस चौकी थी। इसके बाद जब एनएच 29 का सफर शुरू हुआ, तो वहां से करीब 3 किमी के बाद एक चेक पोस्ट पड़ी। यहां सिर्फ पुलिस का बैरियर रखा हुआ मिला, पुलिस वाले नदारद थे। जाहिर है, जब पुलिस नहीं होगी तो कैसी रोक-टोक। बैरियर खुला था और वहां से गाडि़यां धड़ल्ले से फर्राटा भर रहीं थीं। इसके बाद करीब 7.4 किमी के सफर में न तो एक भी पुलिस बूथ था और न ही पुलिस चौकी। यह एनएच 29 पर सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है।
सिक्योरिटी का नामो-िनशां नहीं
एनएच 29 पर सुरक्षा व्यवस्था की बात की जाए, तो यह बिल्कुल ही जारी है। एनएच 28 पर तो पुलिस पिकेट कुछ दूरी पर गश्त करती नजर आ भी जाती है, लेकिन एचएन 29 की हालत तो इससे कई ज्यादा गई-गुजरी है। 15 किमी के सफर में एक भी पुलिस वैन या जीप नजर नहीं आई। वैन तो दूर यहां तक की पुलिस का एक बंदा भी नजर नहीं आया। नौसढ़ चौकी पर पुलिसवाले मिलने के बाद सीधा बेलीपार थाने पर ही खाकीवर्दी नजर आई।