गोरखपुर (ब्यूरो)। यह खुलासा किया है डीडीयूजीयू के मनोविज्ञान की एक्स एचओडी व साइकोलॉजिस्ट डॉ। सुषमा पांडेय ने। उन्होंने बताया, 7-18 वर्ष तक के 1200 बच्चों पर की गई स्टडी में पाया गया कि कोई ऐसा विद्यालय नहीं मिला, जहां पर बच्चे एब्यूज के शिकार न हो रहे हों।
आईएसएसआर की स्टडी
दरअसल, डीडीयूजीयू के मनोविज्ञान विभाग की एक्स एचओडी डॉ। सुषमा पांडेय को इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन) की तरफ से मिली फेलोशिप के लिए आईएसएसआर रिपोर्ट तैयार किए जाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। आईसीएसएसआर के लिए सिलेक्ट टॉपिक में 'डॉयनमिक्स ऑफ चाइल्ड मल्ट्रीटमेंट इन स्कूल्सÓ - एजुकेशनल इंप्लीकेशंस, प्रिवेंशन एंड मैनेजमेंट स्ट्रैटेजी है। इस टॉपिक के मिलने के बाद डॉ। सुषमा ने अपनी स्टडी के लिए जिलेभर के सभी सरकारी व प्राइवेट स्कूलों को चुना। इन स्कूलों में पढऩे वाले 1200 बच्चों पर स्टडी की गई, जिसमें पाया गया कि बच्चों का साइकोलॉजिकल टॉर्चर किया जा रहा है। इन बच्चों से न सिर्फ स्कूल की टीचर्स को एक्सपेक्टेशन रहती हैै। बल्कि पेरेंट्स भी ज्यादा ही उम्मीदें रहती हैैं। इस रिसर्च को 2024 में कंप्लीट करने की जिम्मेदारी भी दी गई है। इसके लिए कुल 11.60 लाख रुपए का बजट भी निर्धारित है।
टीचर्स करते हैैं डंडे से पिटाई
साइकोलॉजिस्ट डॉ। सुषमा पांडेय ने बताया कि स्कूलों में किए गए सर्वे और रिसर्च के दौरान यह देखा गया कि सिटी व रूरल एरिया के स्कूलों में आज भी टीचर्स डंडा मार कर पढ़ा रहे हैैं। उनके साथ दुव्र्यव्हार कर रहे हैैं। उन्होंने बताया कि इसका बुरा प्रभाव भी देखने को मिला। स्टडी के दौरान तीन प्वाइंट पर सर्वे किया गया था। पहला फिजिकिल एब्यूज, दूसरा साइकोलॉजिकल व तीसरा नेगलेक्ट एब्यूज शामिल रहा। नेगलेक्ट एब्यूज में छह प्वाइंट अलग-अलग बनाए गए।
क्या हैं कारण
- मनोवैज्ञानिक
- आर्थिक
- सामाजिक
- शैक्षणिक
बाल दुव्र्यव्हार एवं निरादर के लिए तैयार क्वेश्चन पेपर
- शारीरिक दुव्र्यव्हार - 25 परसेंट
- मनोवैज्ञानिक - 26 परसेंट
- यौन दुव्र्यव्हार - 13 परसेंट
- दैहिक निरादर - 10 परसेंट
- शैक्षणिक निरादर - 16 परसेंट
- संवेगात्मक निरादर - 10 परसेंट
(नोट: चाइल्ड नेगलेट में दैहिक, शैक्षणिक व संवेगात्मक निरादर शामिल है। जो 36 परसेंट पाया गया है.)
ट्यूशन के लिए बनाते दबाव
डॉ। सुषमा ने बताया कि दैहिक निरादर में पाया गया कि बच्चे स्कूल में हैैं, लेकिन उन्हें भूख, प्यास के लिए नहीं जाने दिया जाता। खानपान का ध्यान नहीं दिया जाता। नित्य क्रिया के लिए भी उन्हें रोका जाता है। वहीं शैक्षणिक निरादर में पाया गया कि बच्चों के होम वर्क, क्लास वर्क के लिए मॉनिटर के भरोसे छोड़ दिया गया। ट्यूशन पढ़ाने के लिए दबाव बनाया जाना। पढ़ाई के दौरान डांटना आदि रहा। वहीं संवेगात्मक में इन्हें इमोशनली दबाव बनाया जाता है। पढ़ाई अच्छे से करो तो हम तुम्हें यह पुरस्कार देंगे।
बच्चों पर इसका प्रभाव पाया गया
- बच्चों का शैक्षणिक स्तर पुअर मिला। परीक्षा में खराब परफॉर्म मिला।
- एकेडमिक परफॉर्मेंस खराब पाया गया।
- हिंदी, इंग्लिश, सोशल साइंस, साइंस और मैथमैटिक्स टेस्ट लिया गया।
- एकेडमिक परफॉर्मेंस खराब हो रहा है।
- मेंटल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ा।
क्या है सॉल्यूशन
- स्कूल में अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाने की जरुरत है।
- पेरेंट्स को अपनी रिस्पॉसिबिल्टी निभानी होगी। अच्छा माता-पिता बनना होगा।
- भले ही महंगी फीस दे रहो हैैं, लेकिन बच्चों पर खुद निगरानी बढ़ानी होगी।
- स्कूल बेस्ड पर मां-बाप को किसी उच्च अधिकारी के सामने जानकारी दी जानी चाहिए।
- गुड टच और बेड टच के बारे में बताना होगा।
- स्कूल स्टाफ के लोगों को ट्रेनिंग देना होगा।
- हर विद्यालय में मनोवैज्ञानिक काउंसलर होना चाहिए।
- चाइल्ड प्रोटेक्शन के बारे में बताना होगा।
- प्रिंसिपल व टीचर्स गलत करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।