- पिछले एक माह से आधा दर्जन सड़कों में फंसा पेंच
- बिना हकीकत जाने निकला टेंडर
- टेंडर निकलने के बाद सामने आया विवाद का मामला
GORAKHPUR:
केस 1
वार्ड नं 53 में तीन माह पहले एक रोड का टेंडर निकाला। वर्कऑर्डर भी जारी हो गया। एक सप्ताह बाद ठेकेदार ने जब सामान गिराना शुरू किया तो कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। उन्होंने बताया कि इस रोड पर विवाद है और कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। अब ठेकेदार परेशान है कि क्या करे। मुश्किल यह है कि अब ठेकेदार दूसरा कार्य भी नहीं करा पाएगा, क्योंकि ठेकेदार का एफडीआर पहले कार्य के फाइल में लग चुका है।
केस 2
वार्ड नं 22 में भी एक नाला निर्माण कार्य का टेंडर निकला। टेंडर के बाद नगर निगम के अधिकारियों को पता चला कि यह नाला जिस जमीन से होकर गुजरेगा, उसके लगभग 30 प्रतिशत एरिया पर मुकदमा है। ऐसे में कोई नया नक्शा भी नहीं बना पा रहे है और इस नाले का निर्माण भी नहीं हो पा रहा है। अब नगर निगम और ठेकेदार दोनों के सामने संकट खड़ा हो गया है।
यह दो केस तो केवल उदाहरण मात्र हैं। शहर में ऐसे करीब 200 मामले विवाद के कारण अधर में लटके हुए हैं। नगर निगम के निर्माण विभाग ने पिछले एक साल में एक हजार से अधिक कार्यो के निर्माण के लिए टेंडर निकाला था। निर्माण विभाग की मानें तो टेंडर वाले कार्यो में लगभग 50 प्रतिशत कार्य हो चुके हैं, 20 प्रतिशत कार्य अधूरे पड़े हुए हैं। लेकिन 30 प्रतिशत कार्य अभी तक शुरू ही नहीं हो पाए हैं।
इस आदेश का होगा पालन
नगर आयुक्त राजेश कुमार त्यागी का कहना है कि विवाद वाले निर्माण कार्य में बहुत अधिक पेंच फंस रहा है। इससे नगर निगम की इमेज तो खराब हो रही है, साथ ही आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। नगर निगम में अब किसी भी जमीन का टेंडर निकालने से पहले उसका एस्टीमेट तैयार करने के साथ जमीन की कागजी जांच होगी। कार्य शुरू होने के बाद अगर पता चलता है कि जमीन पर विवाद है तो उसके टेंडर और कागजी रूपरेखा तैयार करने में होने वाला खर्च एरिया के जेई से वसूला जाएगा।
बिना जानकारी के विवादित जमीन पर टेंडर निकालने के कारण नगर निगम को नुकसान हो रहा था। इसलिए अब आदेश दिया गया है कि टेंडर निकालने के बाद उस जगह की कागजी जांच जरूर कर लें।
-राजेश कुमार त्यागी, नगर आयुक्त