- रमजान के तीसरे हिस्से में जहन्नम से आजादी पाने का मौका
GORAKHPUR: हर इंसान से जाने-अनजाने में रोजाना कई गुनाह हो जाते हैं। इससे अगर तौबा कर ली जाए, तो अल्लाह यकीनन दुआओं को कबूल करेगा। रमजान का पाक महीना चल रहा है। ऐसे में यह सही मौका है, जब बारगाहे इलाही में दुआएं जल्द कबूल हो जाती हैं। जामा मस्जिद अबु बाजार उंचवा के इमाम हाफिज नसरुद्दीन अंसारी ने बताया कि रमजान का तीसरा अशरा शुरू होने वाला है, जिसमें मोमिनों को जहन्नम से खुद आजाद कराने का मौका मिलता है। इसलिए जरूरी है कि अब लगन के साथ इबादत-ए-इलाही में लग जाएं। इसकी रजा और खुशनूदी के लिए रोजा रखें। तरावीह में कलाम अल्लाह की तिलावत सुनें और जिक्रो-अजकार करें। इसके सामने तौबा व अस्तगफार करें। गिड़गिड़ा कर अपने गुनाहों की माफी तलब करें, ताकि अल्लाह हमारे गुनाहों को बख्श दे और जहन्नम की आग से आजादी मिल सके।
ताकि तुम तकवा वाले बनो
उन्होंने बताया कि रोजा इस्लाम की इबादत का तीसरा रुक्न है। अरबी में इसको सोम कहते हैं, जिसके मायने रुकने और चुप रहने के हैं। रोजा सिर्फ भूखे और प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि इसका खास मकसद है। अल्लाह तआला फरमाता है कि रोजे तुम पर इसलिए फर्ज किए गए हैं ताकि इसके जरिए तुम तकवा वाले बन जाओ। तकवा का मतलब अल्लाह के बताए रास्ते पर चला और जहां तक हो सके, उसकी नाराजगी से बचना।
शैतान हो जाता है कैद
हाफिज नासिरुद्दीन ने बताया कि अल्लाह को अपने महबूब नबी मोहम्मद साहब की उम्मत से बहुत मोहब्बत है। इसलिए उन्होंने इनके वास्ते रहमत और मगफिरत और नवाजिश के लिए बेशुमार दरवाजे खोल दिए हैं। इन्हीं में से एक रमजान भी है। इसमें रहमत और बरकत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। शैतानों को कैद कर लिया जाता है ताकि वह बंदों को बहका न सके और इन्हें अल्लाह की इबादत से दूर न कर सके। इस वक्त मालिक के करम से हम को रमजान की मुबारक घडि़यां मिली है, जिसका पहला हिस्सा रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरा जहन्नम से आजादी का है, इसका हमें भरपूर फायदा उठाना चाहिए।