- एग्जाम, फिजिकल और मेडिकल में क्वालिफाई करने के बाद भी नहीं हो सकी ज्वाइनिंग

- कैंडिडेट का सिग्नेचर न मैच होने का दे रहे हैं हवाला

- कैंडिडेट का कहना कि अगूंठे के निशान और एग्जाम के समय वीडियोग्राफी भी चेक कराकर देखे रेलवे

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : नार्थ ईस्टर्न रेलवे अपने कैंडिडेट्स के साथ इंसाफ नहीं कर रहा है। रेलवे की ओर से कराए गए सभी तरह के टेस्ट को पास करने के बाद भी रेलवे ने कैंडिडेट को सिर्फ इसलिए ज्वाइन नहीं कराया, क्योंकि उसके सिग्नेचर नहीं मैच कर रहे हैं, जबकि कैंडिडेट का कहना है कि अगर उसके सिग्चेर में डाउट है तो एग्जाम के वक्त जो वीडियोग्राफी कराई गई थी और जो थंब इंप्रेशन लिया गया था, उसको चेक किया जाए, तो उसमें बात क्लीयर हो जाएगी कि एग्जाम के हर स्टेज में वही शामिल हुआ है न कि दूसरा कोई और शामिल हुआ है।

एग्जामिनेशन के सभी स्टेजेस को किया है क्वालिफाई

नालंदा बिहार के रहने वाले रंजीत ने रेलवे ग्रुप डी 2010 का एग्जाम जून 2012 में दिया। इसके बाद वह वाराणसी में ऑर्गेनाइज हुए फिजिकल टेस्ट में अपीयर हुआ, वहीं जनवरी में गोरखपुर में हुए वेरिफिकेशन में शामिल हुआ। इन तीनों ही लेवल पर रंजीत ने कामयाबी हासिल की, मगर उसे झटका तब लगा, जब फरवरी 2013 में डिक्लेयर हुए रिजल्ट में उसका नाम नहीं मिला। रंजीत की मानें तो इसके लिए उसने सेल में पता किया तो यह बताया गया कि अगली लिस्ट में उसका नाम जरूर होगा, लेकिन फाइनल मेरिट लिस्ट जारी होने के बाद भी उसका नाम नहीं निकला।

आरटीआई का सहारा भी न आया काम

अपने फ्यूचर को डिस्टर्ब होता देख रंजीत ने आरटीआई का सहारा लिया, लेकिन इससे भी उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी। रंजीत ने बताया कि आरटीआई के तहत उसने 6 जनवरी 2014 को उपमहाप्रबंधक और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी के ऑफिस में भी अप्लीकेशन डाली, लेकिन आज तक उसका जवाब नहीं मिल सका है। आरटीआई का जवाब तो नहीं आया, हां अलबत्ता 22 फरवरी 2014 को उसे रेलवे की ओर से एक शो कॉज नोटिस जरूर मिला, जिसमें उसके सिग्नेचर न मिलने की बात कही गई है।

अंगूठे का निशान और वीडियो फुटेज कर सकती है इंसाफ

रंजीत का कहना है कि उसके सिग्नेचर गलत हो सकते हैं और उसमें थोड़ा डिफरेंस हो सकता है, मगर अंगूठे के निशान और रेलवे की ओर से कराई गई वीडियोग्राफी भी इस बात का प्रमाण है। सबकुछ बदला जा सकता है, लेकिन थंब इंप्रेशन और वीडियो फुटेज को बदलना तो किसी के बस में नहीं है। रंजीत का कहना है कि अगर इसको चेक कराया जाए तो निश्चित तौर पर उसको इंसाफ मिलेगा।

2007 और 2010 में कई केस डाउटफुल पाए गए थे, इसलिए इनकी चेकिंग कराई गई। पहले कैंडिडेट्स से पैराग्राफ लिखवाया गया और उसके बाद आरआरसी के मेंबर्स ने कैंडिडेट्स के अंगूठे के निशान की जांच की। डाउट होने पर उसे फोरेंसिक टीम के पास भेजा गया। चेकिंग के बाद वहां से यह रिजल्ट आया कि एग्जाम देने वाला व्यक्ति और बाद के लेवल पर शामिल व्यक्ति एक नहीं है। इसकी वजह से उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया।

आलोक कुमार सिंह, सीपीआरओ, एनईआर