- सीएचसी, पीएचसी में एंटी रैबीज वैक्सीन नहीं, जिला अस्पताल में भी टोंटा
- रैबीज होने पर चली जाती है जान लेकिन स्वास्थ्य महकमा बेपरवाह
GORAKHPUR: कुत्ते या बंदर के काटने से होने वाली रैबीज बीमारी इतनी घातक है कि पीडि़त की जान तक जा सकती है लेकिन इसके बाद भी सीएचसी, पीएचसी में इसकी वैक्सीज नहीं है। इस कारण गांवों के पीडि़त सीधे जिला अस्पताल की तरफ भाग रहे हैं जबकि यहां भी वैक्सीन का टोंटा पड़ गया है। जिला अस्पताल ने डिमांड की है लेकिन अभी तक पर्याप्त वैक्सीन नहीं मिल पाई है। ऐसे में कुत्ता, बंदर के काटने के पीडि़तों का जीवन संकट में है।
रोज 50 से 100 मरीज
आंकडों पर गौर करें तो जिला अस्पताल में रोज 50 से 100 लोग एंटी रैबीज वैक्सीन के लिए पहुंच रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा ग्रामीण एरियाज के मरीज हैं। पीएचसी, सीएचसी में वैक्सीन नहीं होने से जिला अस्पताल में पेशेंट की संख्या बढ़ने से यहां खपत अधिक हो गई और छह रोज पहले ही वैक्सीन का संकट उत्पन्न हो गया। अस्पताल प्रशासन इस संकट से निपटने के लिए उधार की वैक्सीन से काम चला रहा था।
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रैबीज कितना खतरनाक?
कुत्ता, बंदर सहित अन्य जानवर जब किसी को काटते हैं तो उसकी जीभ के लार के जरिए संक्रमित वायरस मनुष्य के खून में चले जाते हैं। जिसके कारण रैबीज होने की संभावना रहती है। रैबीज होने के बाद मरीज की कुछ ही दिन में जान चली जाती है। इसका कोई इलाज भी नहीं है। कुत्ते या किसी जानवर के काटने के तुरंत बाद निश्चित अवधि में पांच टीके लगवाकर ही जान बचाई जा सकती है। वहीं कुत्ते के बालों के कारण स्वांस रोग से लेकर त्वचा की एलर्जी भी हो सकती है।
ऐसे करें बचाव
कुत्ता या बंदर काटने के बाद तुरंत साफ पानी व एंटीसेप्टिक लोशन से धोएं। इसके अलावा घाव को बहते नल के नीचे साबुन लगाकर कई बार धोएं, इससे 90 प्रतिशत खतरा टल जाता है। एंटी रैबीज का इंजेक्शन तत्काल लगवाएं और कुत्ते पर 15 दिनों तक नजर रखें। यदि कुत्ता पागल नहीं हुआ तो मरीज सुरक्षित है। इंजेक्शन को 1,3,7,14 व 30 दिन के भीतर एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाना चाहिए। हालांकि त्वचा की बायोप्सी एवं एंटी बॉडी की जांच करवाकर संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। साथ ही अपने पालतू पशुओं के बदलते व्यवहार पर नजर रखें। उन्हें भी एंटीरैबीज का टीका जरूर लगवाएं।
रैबीज के लक्षण
- मरीज का पानी से डरना
- हल्का बुखार आना
- मरीज को उल्टी लगना
- मरीज का बेहोश हो जाना
- मानसिक संतुलन बिगड़ना
- चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
वर्जन
एंटी रैबीज वैक्सीन खत्म होने से पहले ही तीन हजार वायल की डिमांड भेजी गई थी लेकिन सिर्फ एक हजार ही वायल आई हैं। जिससे काम चल रहा है। रैबीज के शिकार ज्यादातर मरीज ग्रामीण एरियाज से आ रहे हैं। जिसकी वजह से अगर और वैक्सीन नहीं आई तो परेशानी हो सकती है।
डॉ। एचआर यादव, एसआईसी
वैक्सीन खत्म होने से स्वास्थ्य केंद्रों पर परेशानी हो रही है। इसके लिए डिमांड भेज दी गई है। तब तक जिला अस्पताल प्रशासन से 100 वायल की डिमांड की गई है।
- डॉ। रविंद्र कुमार, सीएमओ