- स्थानीय स्तर पर नहीं हो रहा पब्लिक की समस्याओं का समाधान

- थानों से निराश होकर रोजाना बड़े अधिकारियों के पास पहुंच रहे फरियादी

GORAKHPUR:

केस एक:

गोरखनाथ एरिया के हुमायूंपुर मोहल्ला निवासी मंजू देवी का कुछ लोगों से भूमि विवाद चल रहा है। इसको लेकर उन्हें जानमाल की धमकी मिल रही है। करीब डेढ़ साल से वह अपने पति के साथ न्याय के लिए भटक रही हैं। लेकिन बात नहीं सुनी जा रही। मंगलवार को न्याय की उम्मीद लिए वह एसएसपी से मिलने पहुंचीं।

केस दो:

कैंपियरगंज एरिया के बसंतपुर, माधोनगर निवासी शिव मूरत गुप्ता की पत्‍‌नी जोखनी देवी की हत्या करके शव को कुएं में डाल दिया गया। आरोप एक प्रेमी जोड़े पर लगा। पांच अक्टूबर को हुई घटना में पुलिस ने प्रेमी को पकड़कर जेल भेज दिया लेकिन साजिश में शामिल प्रेमिका को नहीं गिरफ्तार किया। मंगलवार को शिव मूरत अपने बेटों संग एसएसपी से मिलने पहुंचे। बताया कि उनकी पत्‍‌नी के गहने आरोपी की प्रेमिका के पास हैं लेकिन पुलिस बरामदगी नहीं कर रही है। थाने जाने पर पुलिस उनको डांटकर भगा देती है।

केस तीन:

पूर्वोत्तर रेलवे के मैकेनिकल वर्कशॉप में तैनात कर्मचारी राजकुमार पाठक को झांसा देकर दलालों ने छह लाख रुपए निकाल लिए। मकान बनवाने के लिए राजकुमार ने लोन का आवेदन किया। कुछ लोगों ने उसे आसानी से लोन दिलवाने के नाम पर लाखों रुपए का चूना लगा दिया। सात अक्टूबर को हुई घटना की सूचना देने वह शाहपुर थाना पर गया। वहां पुलिसवालों ने उसे खदेड़ दिया। कहा कि किससे पूछकर लोन लेने गए थे? मंगलवार को वे पत्नी और बेटे के साथ एसएसपी से मिलने पहुंचे। उन्होंने बताया कि रुपए मांगने पर उनको जानमाल की धमकी दी जा रही है।

-------

ये तीन केस तो सिर्फ नजीर हैं, रोज ऐसे दर्जनों मामले आ रहे हैं, जिसमें थाने से निराश होकर पब्लिक बड़े अधिकारियों तक पहुंच रही है। शासन से लेकर बड़े अधिकारी तक पुलिस का चेहरा बदलने के लिए तमाम कोशिशें कर रहे हैं लेकिन थानों पर तैनात पुलिस की कार्यशैली बदल नहीं रही। अफसर बार-बार कर रहे हैं कि थानों पर ही पब्लिक की सुन ली जाए और उसे न्याय दिलाई जाए। तहरीर मिलने पर मुकदमा दर्ज करके विवेचना की जाए। मामला फर्जी मिले तो मुकदमा खत्म करके झूठी सूचना देने वालों पर कार्रवाई हो। लेकिन, तमाम हिदायतों के बाद भी पुलिस पीडि़तों को थाने से भगा दे रही है। इससे बड़े अफसरों के पास शिकायतकर्ताओं की भीड़ जुट रही है। सबकी यही शिकायत होती है कि थाने पर उनकी नहीं सुनी जा रही। वहीं अधिकारी फिर पीडि़तों को थाने पर ही भेज देते हैं। पब्लिक परेशान है।

फैक्ट फाइल

- औसतन रोज हर अधिकारी के पास पहुंचते 20 से अधिक मामले

- एसपी, एसएसपी, डीआईजी और आईजी के वहां लोग लगाते हैं गुहार

- पुलिस के ट्विटर, व्हाट्सअप ग्रुप पर शिकायत करने का इंतजाम।

- जनसुनवाई पोर्टल पर भी लिखित आवेदन कर सकते हैं पीडि़त।

- जिले में हर स्तर पर रोजाना हो रही औसतन 100 शिकायतें।

बॉक्स

जिनके खिलाफ शिकायत, उन्हीं को जांच

थानों पर फरियाद न सुनने की शिकायत लेकर फरियादी भटकते रहते हैं। अफसरों के पास दरख्वास्त देने पर एप्लीकेशन दोबारा उन्हीं को जांच के लिए भेज दिए जाते हैं जिनकी शिकायत अधिकारियों से हुई होती है। मामलों की गंभीरता के अनुसार अधिकारी केस दर्ज करने का निर्देश भी संबंधित थानों को जारी करते हैं। इसके बाद भी कई दिनों तक थानों पर शिकायत वाले पत्र जांच के नाम पर धूल फांकते हैं।

दबाव में नहीं दर्ज होती एफआईआर

पुलिस अधिकारियों के पास अक्सर दूसरे पक्ष के दबाव में एफआईआर न दर्ज करने का आरोप फरियादी लगाते हैं। शिकायत करने पर लोकल पुलिस किसी न किसी लाभ के चक्कर में फरियाद अनसुनी कर देती है। कई बार पुलिस कर्मचारी पीडि़त के विपक्षी से बात करके मामले को निपटाने का आश्वासन देते हैं। इसलिए उनकी कोशिश रहती है कि थाने पर एफआईआर लिखने के बजाय मामले में सुलह करा दी जाए। थाने का चक्कर लगाने के बाद फरियादियों को अधिकारियों की दर पर जाना पड़ता है।

बॉक्स

अफसरों का निर्देश, सुनी जाए सबकी बात

थानों पर पीडि़तों की बात सुनकर उनको राहत पहुंचाने की बात हर अधिकारी कहते हैं। जिले की क्राइम मीटिंग से लेकर आईजी स्तर तक होने वाली बैठक में इसको प्राथमिकता दी जाती है। अधिकारी कहते हैं कि हर पीडि़त की बात सुनकर उसकी समस्या का समाधान किया जाए। मुकदमा दर्ज करने में कोई कोताही न बरती जाए। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में पुलिस ज्यादा सक्रियता दिखाए। इन निर्देशों के बावजूद थानों पर बिना किसी जुगाड़ के काम नहीं हो पाता। इसलिए लोगों को अफसरों के पास जाना पड़ता है।

वर्जन बाकी है