गोरखपुर (ब्यूरो)।दुनिया का सबसे लंबा प्लेटफॉर्म हो या फिर हिंदुस्तान में इकलौती सोने-चांदी की ताजिया रखने वाला इमामबाड़ा। इन सभी के नाम तो काफी दिनों से लोगों की जुबां पर रहा है। मगर इन सबके अलावा गोरखपुर की एक अलग तस्वीर लेखनी और साहित्य के जरिए दुनिया भर में पहुंची है। जिसे लोगों तक पहुंचाने वाले कोई और नहीं बल्कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद हैं। शहर में छोटा सा वक्फा गुजारने के बाद भी उनकी कहानियों में गोरखपुर की साफ झलक नजर आती है।

अस्ताने की याद दिलाता है 'ईदगाह'

इसके ठीक पीछे मुबारक खां शहीद की दरगाह है, वहां ईदगाह है, जहां ईद और बकरीद की नमाज पढ़ी जाती है। मुंशी जी की कहानी 'ईदगाहÓ के किरदार यही से लिए गए हैं और उनकी कहानी इसी अस्ताने के इर्द-गिर्द लगने वाले मेले की कहानी बयां करती है। वहीं बर्फखाना रोड पर स्थित बर्डघाट में होने वाली रामलीला और उसके किरदारों को प्रेमचंद ने अपनी कहानी 'रामलीलाÓ में जगह दी। प्रेमचंद जहां रहा करते थे, वहां के आसपास घरों में एक बूढ़ी औरत काम किया करती थी। वह अपने घर को चलाने के लिए बर्तन माजा करती। मुंशी जी ने उसे भी अपनी कहानी का हिस्सा बनाया और 'बूढ़ी काकीÓ की दास्तान लिख डाली।

महात्मा गांधी से हुए प्रभावित

कथा सम्राट ने 1916 से 1921 तक का वक्त नार्मल स्थित प्रेमचंद निकेतन में बिताया। 1903 में बनी इस बिल्डिंग को टीचर ट्रेनिंग के वार्डन के लिए बनाया गया था, जब मुंशीजी की तैनाती यहां हुई, तो उन्हें यहीं पर रहने के लिए क्वार्टर मिला। नौकरी मिलने के बाद जब 1916 में प्रेमचंद गोरखपुर आए, तो शुरुआत में उन्होंने अपनी नौकरी दिल लगाकर की। मगर 15 फरवरी 1921 में बाले मियां के मौदान में हुई महात्मा गांधी की सभा में उनका भाषण सुनने के बाद उन्होंने टीचिंग सर्विस और टीचर ट्रेनिंग कॉलेज के वार्डन पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने कहानियां लिखनी शुरू की। सोज-ए-वतन उनकी पहली रचना है, जिसे उन्होंने उर्दू में लिखा था। इसमें उन्होंने अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान बताती है। वहीं गोदान भी गोरखपुर और आसपास के किसानों के दर्द को बयां करती है।

यहां से जुड़ी हैं यह कहानियां

कफन

गबन

गोदान

ईदगाह

नमक का दरोगा

रामलीला

बूढ़ी काकी

दो बैलों की जोड़ी

पूस की रात

मंत्र

प्रेमचंद की कई कहानियों में गोरखपुर की झलक नजर आती है। इसमें से कई कहानी तो उन्होंने यही प्रेमचंद निकेतन में बैठकर लिखी है। जिसमें ईदगाह, बूढ़ी काकी और रामलीला सबसे खास है।

- मनोज सिंह, सचिव, प्रेमचंद साहित्य संस्थान