-शहर के गोरखनाथ पुल पर हर रात मौत की आगोश में सोते हैं सैकड़ों मजदूर
-शहर में दसियों रैन बसेरे, लेकिन गरीबों के लिए ठिकाना नहीं
<-शहर के गोरखनाथ पुल पर हर रात मौत की आगोश में सोते हैं सैकड़ों मजदूर
-शहर में दसियों रैन बसेरे, लेकिन गरीबों के लिए ठिकाना नहीं
GORAKHPUR:
GORAKHPUR:
'रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं
अपना खुदा है रखवाला' कुछ इसी अंदाज में शहर के सैकड़ों गरीब मजदूर अपनी हर रात मौत के साए में गुजारते हैं। गर्मी हो, बरसात या फिर जाड़ा, इनके सिर पर छत मयस्सर नहीं होती। मजदूरों की 'मौत की सेज' गोरखनाथ ओवरब्रिज पर सजती है। भारत से नेपाल को जोड़ने वाली इस सड़क पर ये गरीब कभी भी हिट एंड रन का शिकार हो सकते हैं। लेकिन न तो प्रशासन को इसकी परवाह है और न ही यहां के जनप्रतिनिधियों को इसकी सुधि।
हर पल हादसे का अंदेशा
रविवार रात आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने गोरखनाथ पुल पर सोने वालों से बातचीत की। नेपाल रोड होने की वजह से रात के वक्त पुल पर बड़ी गाडि़यां ही गुजरती हैं। पुल की बनावट कुछ ऐसी है कि हादसे की आशंका बनी ही रहती है। कभी भी अगर किसी गाड़ी का नियंत्रण छूटा तो एक साथ कई जिंदगियां दांव पर लग जाएंगी।
यहीं बिता दी जिंदगी
आई नेक्स्ट रिपोर्टर के साथ बातचीत में यहां सोने वालों ने बताया कि ये सिलसिला बीते कई दशकों से जारी है। तमाम लोगों ने तो इस पुल पर ही अपनी पूरी जिंदगी ही गुजार दी। यहां सो रहे गरीब मजदूरों ने बताया कि इस बीच कई बार रात में सोने के दौरान गाडि़यों के चपेट में आने से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। लेकिन कोई और ठिकाना न होने के चलते यहां रात बिताना इनकी मजबूरी है।
काम की तलाश में आते हैं शहर
पुल पर सो रहे मजदूर दिनेश कुमार के मुताबिक ये वो लोग हैं जो बिहार और आसपास के जिलों से काम की तलाश में गोरखपुर आते हैं। जब रहने का ठिकाना ढूंढते हैं तो पता चलता है कि कमाई का एक बड़ा हिस्सा किराए में ही निकल जाएगा। ऐसे में यह पुल ही उनके लिए एकमात्र आसरा होता है। दिनेश ने बताया कि गर्मी के दिनों में पुल पर सोते है। जाड़े और बारिश में पुल के नीचे चले जाते हैं।
आखिर किस काम हैं रैन बसेरे
ऐसा नहीं है कि इस शहर में गरीबों के रात गुजाने के लिए रैन बसेरे नहीं हैं। यह रैन बसेरे शहर में बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, कचहरी बस स्टेशन, धर्मशाला बाजार, गोरखनाथ, गोलघर काली मंदिर, मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, हांसूपुर और बरगदवां में हैं। लेकिन शर्मनाक यह है कि इनमें से ज्यादातर में या तो ताला जड़ा रहता है या फिर पर्याप्त व्यवस्था नहीं रहती। ऐसे में उन तमाम गरीबों को मजबूरन हर रात मौत से आंख-मिचौली करते हुए गुजारनी पड़ती है।
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कॉलिंग
पूरा दिन मजदूरी करने के बाद हम लोग यहीं रात गुजारते हैं। मौत से सबको डर लगता है, लेकिन चंद रुपए बचाने की गरज, इस डर पर भारी पड़ जाती है। 25 साल हो गए इस पुल पर सोते। अब यही घर और दुनिया हो गई है।
-रविंद्र यादव, गरीब मजदूर
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रोजी की तलाश में इस शहर में आए हैं। मेरे जैसे यहां सैकड़ों गरीब हैं, जिनका आशियाना ही यह पुल बन चुका है। ऊपर वाले ने अगर यहीं मौत लिखी है तो क्या कर सकते हैं।
-पुर्नवासी, गरीब मजदूर
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<'रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं
अपना खुदा है रखवाला' कुछ इसी अंदाज में शहर के सैकड़ों गरीब मजदूर अपनी हर रात मौत के साए में गुजारते हैं। गर्मी हो, बरसात या फिर जाड़ा, इनके सिर पर छत मयस्सर नहीं होती। मजदूरों की 'मौत की सेज' गोरखनाथ ओवरब्रिज पर सजती है। भारत से नेपाल को जोड़ने वाली इस सड़क पर ये गरीब कभी भी हिट एंड रन का शिकार हो सकते हैं। लेकिन न तो प्रशासन को इसकी परवाह है और न ही यहां के जनप्रतिनिधियों को इसकी सुधि।
हर पल हादसे का अंदेशा
रविवार रात आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने गोरखनाथ पुल पर सोने वालों से बातचीत की। नेपाल रोड होने की वजह से रात के वक्त पुल पर बड़ी गाडि़यां ही गुजरती हैं। पुल की बनावट कुछ ऐसी है कि हादसे की आशंका बनी ही रहती है। कभी भी अगर किसी गाड़ी का नियंत्रण छूटा तो एक साथ कई जिंदगियां दांव पर लग जाएंगी।
यहीं बिता दी जिंदगी
आई नेक्स्ट रिपोर्टर के साथ बातचीत में यहां सोने वालों ने बताया कि ये सिलसिला बीते कई दशकों से जारी है। तमाम लोगों ने तो इस पुल पर ही अपनी पूरी जिंदगी ही गुजार दी। यहां सो रहे गरीब मजदूरों ने बताया कि इस बीच कई बार रात में सोने के दौरान गाडि़यों के चपेट में आने से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। लेकिन कोई और ठिकाना न होने के चलते यहां रात बिताना इनकी मजबूरी है।
काम की तलाश में आते हैं शहर
पुल पर सो रहे मजदूर दिनेश कुमार के मुताबिक ये वो लोग हैं जो बिहार और आसपास के जिलों से काम की तलाश में गोरखपुर आते हैं। जब रहने का ठिकाना ढूंढते हैं तो पता चलता है कि कमाई का एक बड़ा हिस्सा किराए में ही निकल जाएगा। ऐसे में यह पुल ही उनके लिए एकमात्र आसरा होता है। दिनेश ने बताया कि गर्मी के दिनों में पुल पर सोते है। जाड़े और बारिश में पुल के नीचे चले जाते हैं।
आखिर किस काम हैं रैन बसेरे
ऐसा नहीं है कि इस शहर में गरीबों के रात गुजाने के लिए रैन बसेरे नहीं हैं। यह रैन बसेरे शहर में बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, कचहरी बस स्टेशन, धर्मशाला बाजार, गोरखनाथ, गोलघर काली मंदिर, मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, हांसूपुर और बरगदवां में हैं। लेकिन शर्मनाक यह है कि इनमें से ज्यादातर में या तो ताला जड़ा रहता है या फिर पर्याप्त व्यवस्था नहीं रहती। ऐसे में उन तमाम गरीबों को मजबूरन हर रात मौत से आंख-मिचौली करते हुए गुजारनी पड़ती है।
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कॉलिंग
पूरा दिन मजदूरी करने के बाद हम लोग यहीं रात गुजारते हैं। मौत से सबको डर लगता है, लेकिन चंद रुपए बचाने की गरज, इस डर पर भारी पड़ जाती है। ख्भ् साल हो गए इस पुल पर सोते। अब यही घर और दुनिया हो गई है।
-रविंद्र यादव, गरीब मजदूर
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रोजी की तलाश में इस शहर में आए हैं। मेरे जैसे यहां सैकड़ों गरीब हैं, जिनका आशियाना ही यह पुल बन चुका है। ऊपर वाले ने अगर यहीं मौत लिखी है तो क्या कर सकते हैं।
-पुर्नवासी, गरीब मजदूर
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https://www.inextlive.com/video/poor-labourers-and-rickshaw-pullers-constrained-to-sleep-on-over-bridges-in-GORAKHPUR-201605060017https://www.inextlive.com/video/poor-labourers-and-rickshaw-pullers-constrained-to-sleep-on-over-bridges-in-GORAKHPUR-201605060017