गोरखपुर (ब्यूरो).एमएमएमयूटी के साइंटिफिक असिस्टेंट सत्येंद्र नाथ यादव ने बताया कि एक्युआई में भारी गिरावट देखने को मिली है। आंकड़ों पर नजर डालें तो सितंबर की शुरुआत में एक्युआई 110 रिकॉर्ड किया गया था। वहीं, 20 सितंबर को बारिश के बाद ली गई रीडिंग में इसका लेवल 30 पाया गया है। इंडस्ट्रियल जोन में यह 288 से 101 पहुंचा है। जबकि कॉमर्शियल जोन में भी भारी गिरावट के साथ यह 260 से सीधा 94 पर पहुंच गया है।
पीएम-10 भी हुआ कम
हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर्स की तादाद भी बारिश के कारण एटमॉस्फियरिक ऑक्सीजन में कम हो गई है। आंकड़ों की बात करें तो कॉमर्शियल जोन में यह 310 से 94 पर पहुंचा है। जबकि इंडस्ट्रियल जोन में 338 से 101 पर पहुंच गया है। इसी तरह रेसिडेंशियल जोन में 114 से 30 तक की गिरावट दर्ज की गई है।
नमी है खतरनाक
मौसम के इस रुख से जहां पॉल्युटेंट में कमी आई है। वहीं, बारिश की वजह से मौसम नम भी हुआ है। ऐसी कंडीशन लोगों के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस वक्त मौसम में फ्लक्चुएशन काफी ज्यादा होता है। ऐसे में नमी और दबाव ज्यादा होने से पॉल्युटेंट लोवर लेवल पर पहुंच जाते हैं। इससे रेस्पीरेटरी ऑर्गन में इंफेक्शन के चांसेज काफी बढ़ जाते हैं। इस दौरान डर्ट माइट भी काफी एक्टिव होती हैं, जिससे भी परेशानी हो सकती है। बदलते मौसम में ह्यूमन बॉडी टेंप्रेचर एडजस्ट नहीं कर पाती और लोग मौसम की उठापटक की चपेट में आकर बीमार पड़ जाते हैं।
पॉल्युशन स्टेटस - अगस्त -
1 अगस्त -
जोन - पीएम 10 एक्यूआई
रेसिडेंशियल - 125.89 117
इंडस्ट्रियल - 398.48 361
कॉमर्शियल - 325.06 275
15 अगस्त -
जोन - पीएम 10 एक्यूआई
रेसिडेंशियल - 136.92 125
इंडस्ट्रियल - 394.64 356
कॉमर्शियल - 328.85 279
29 अगस्त -
जोन - पीएम 10 एक्यूआई
रेसिडेंशियल - 129.89 120
इंडस्ट्रियल - 411.86 377
कॉमर्शियल - 324.56 275
1 सितंबर -
जोन - पीएम 10 एक्यूआई
रेसिडेंशियल - 114.41 110
इंडस्ट्रियल - 338.27 288
कॉमर्शियल - 310.19 260
12 सितंबर -
जोन - पीएम 10 एक्यूआई
रेसिडेंशियल - 119.36 113
इंडस्ट्रियल - 342.76 293
कॉमर्शियल - 166.08 144
20 सितंबर -
जोन - पीएम 10 एक्यूआई
रेसिडेंशियल - 30.54 31
इंडस्ट्रियल - 101.25 101
कॉमर्शियल - 94.48 94
बारिश -
अगस्त 2022 - 258.8 एमएम
सितंबर 2022 - 352.6 एमएम
लिमिट क्रॉस तभी मुश्किल
एक्सपट्र्स की मानें तो हवा में मौजूद ऑक्सीजन को हम इनहेल करते हैं, जिससे हमारी सांसें चलती हैं। इसमें तरह-तरह के पॉल्युटेंट मौजूद होते हैं। इसमें एक लिमिट तक तो प्रॉब्लम नहीं होती, लेकिन जैसे ही लिमिट क्रॉस होती है, मुश्किलें बढऩे लगती हैं। एक्युआई इसी का मानक है। इसमें अगर किसी जगह का एक्युआई 50 या उससे कम है, तो इसका काफी थोड़ा असर ह्यूमन बींग पर पड़ता है, लेकिन जैसे-जैसे एक्युआई बढ़ता है, मुसीबत भी बढ़ जाती है।
यह है एक्युआई का मानक -
0-50 - मिनिमम इंपैक्ट
51-100 - सेंसिटिव लोगों को सांस लेने में थोड़ा प्रॉब्लम
101-200 - लंग, हर्ट पेशेंट के साथ बच्चों और बुजुर्गों को सांस लेने में दिक्कत
201-300 - लंबे समय तक संपर्क में रहने वालों को सांस लेने में प्रॉब्लम
301-400 - लंबे समय तक संपर्क में रहने वालों को सांस की बीमारी
401 या ऊपर - हेल्दी लोगों को भी सांस लेने में दिक्कत, रेस्पिरेटरी इफेक्ट
इनके भी हैं मानक -
पीएम 10 - 60 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब
एसओ 2 - 40 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब
एनओ 2 - 50 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब
बारिश की वजह से पर्टिकुलेट मैटर्स और पॉल्युटेंट दोनों ही एटमॉस्फियर से कम हो गए हैं। लगातार बारिश से यह हवा में नहीं जा पा रहे हैं, जिससे कि फिलहाल पॉल्युशन लेवल बेहतर बना हुआ है। जाड़े के मौसम में एटमॉस्फियर में नमी की वजह से यह बढ़ेगा। आने वाले महीने पॉल्युशन के लिहाज से सेंसेटिव हैं।
- सत्येंद्र नाथ यादव, साइंटिफिक असिस्टेंट, एमएमएमयूटी
यह सच है कि बारिश प्रदूषण को कम कर देती है, लेकिन साथ ही साथ टेंप्रेचर में चेंज और एटमॉस्फियर में इससे नमी भी पैदा होती है। यह दमा के मरीजों को नुकसान कर सकता है। इसलिए सिर्फ पॉल्युशन कम होने से मरीज को फायदा नहीं हो पाता है। इस सीजन में वायरल फीवर भी ज्यादा होते हैं जो कि दमा को उभार देते हैं।
- डॉ। वीएन अग्रवाल, चेस्ट स्पेशलिस्ट