- बम की सूचना ने बढ़ाई मुसीबत
- क्राइम ब्रांच, पुलिस कर रही जांच
GORAKHPUR: बम की सूचना देकर पुलिस की नींद उड़ाने वाले शख्स की तलाश में वक्त लगेगा। जांच में जुटी पुलिस तकनीकी में उलझकर रह गई है। इंटरनेट से आने वाली कॉल पुलिस के लिए जी का जंजाल बन गई है। इस मामले में पुलिस तेजी से जांच में जुटी है। पुलिस का दावा है कि जल्द ही फोन करने वाले को पकड़ लिया जाएगा। लेकिन पुलिस के पास ऐसा कोई ठोस सुराग नहीं जिसके सहारे कॉलर की पहचान हो सके। दो दिनों के भीतर चार जगहों पर बम की सूचना से पुलिस परेशान हो चुकी है।
अलर्ट मोड में पुलिस, जांच जारी
बम की सूचना पर पुलिस अलर्ट मोड में आ गई। पुलिस ने सभी संभावित जगहों पर सघन तलाशी अभियान चलाया। दो घंटे से अधिक के सर्च ऑपरेशन में पुलिस के हाथ कोई विस्फोटक नहीं मिला। बावजूद इसके पुलिस ने कोताही नहीं की। पुलिस का मानना है कि सूचना देने के पीछे कोई साजिश हो सकती है। ऐसे में किसी सूचना को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। कॉल करने वाले तक पहुंचने के लिए एसटीएफ यूनिट गोरखपुर और एटीएस की मदद भी ली जा सकती है। कॉल करने वाले इंटरनेट के जरिए फोन कर रहा है। इस वजह से आईपी एड्रेस ट्रेस करने में समय लग सकता है। इंटरनेट के जरिए काल की सेवा देने वाली ज्यादातर कंपनियों के आफिस विदेशों में हैं। फर्जी आईडी के जरिए रजिस्ट्रेशन कराकर किसी सॉफ्टवेयर के जरिए काल करना आसान है।
लंबी होती है जांच की प्रक्रिया
पुलिस विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि इस तरह के मामलों में सुलझाने में कई समस्याएं आती हैं। पुलिस को पहले गृह विभाग की अनुमति लेनी होती है। गृह विभाग विदेश मंत्रालय को पत्र लिखता है। यदि विदेश मंत्रालय अनुमति देता है तो विदेश में मौजूद अपराधी की गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल की मदद ली जाती है। छोटे मामलों में पुलिस इसको लेकर गंभीर नहीं होती। लंबी प्रक्रिया के चलते इस पर विशेष जोर नहीं दिया जाता। विदेश से आने वाली फ्रॉड काल में विदेशी फोन कंपनी, इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से मदद मांगी जाती है। लेकिन ऐसे में मदद मिलना मुश्किल होता है।
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कब, कब दी थी सूचना
02 मार्च 2016:
- सुबह करीब 10.20 बजे स्टार नर्सिग होम के बेसिक फोन पर काल आई। खुद को सीबीआई का अधिकारी बताकर फोन करने वाले नर्सिग होम में बम होने की सूचना दी।
- सुबह 11.00 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया गया। रेलवे स्टेशन परिसर, स्टार नर्सिग होम और सिटी मॉल में बम होने की सूचना किसी ने दी।
तीन मार्च 2016
दोपहर 12.15 मिनट पर किसी ने सिविल एयरपोर्ट पर फोन किया। बताया कि दिल्ली से आने वाली जेट एयरवेज की फ्लाइट में बम रखा गया है। इंटरनेट के जरिए की गई काल की जांच में पुलिस अटक गई।
तो साइबर कैफे से की गई कॉल
साइबर क्राइम से जुड़े लोगों का कहना है कि मोबाइल से कॉल करने पर ट्रेस करना आसान होता है। सिम के जरिए नजदीकी मोबाइल टॉवर से आईईएमआई नंबर पता लगाया जा सकता है। वाईफाई के फ्री जोन का इस्तेमाल होने पर थोड़ी कठिनाई आती है। इसमें हजारों आईपी एड्रेस के बीच से छांटकर निकलना पड़ता है। लेकिन साइबर कैफे से की जाने वाली इंटरनेट कॉल में फोन करने वाले को पकड़ पाना दोनों की अपेक्षा थोड़ा मुश्किल होता है। इंटरनेट के जरिए सेकेंड में लोकेशन में पूरे वर्ल्ड में चेंज की जा सकती है। इस तरह के ज्यादातर मामलों में साइबर कैफे का यूज पाया गया है। साइबर कैफे पर आने जाने वालों का रिकार्ड दुरुस्त नहीं होता।
क्या है आईएमईआई
आईएमईआई (अंतर्राष्ट्रीय उपकरण पहचान संख्या) मोबाइल में दिया गया 15 अंकों का खास तरह का कोड होता है। यह हर मोबाइल के साथ मिलता है.आईएमईआई नंबर का प्रयोग उस खास हैंडसेट को पहचानने के लिए किया जाता है जिससे कॉल की जाती है या फिर रिसीव की जाती है। मोबाइल खो जाने पर इसी 15 अंको के आईएमईआई नंबर द्वारा जीपीएस की मदद से मोबाइल की लोकेशन का पता चलता है।
आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस
हर वेबसाइट का एक आईपी एड्रेस और डोमेन नेम होता है। इंटरनेट पर मौजूद करोड़ों कंप्यूटर के लिए किसी एक में होस्ट की गई वेबसाइट तक पहुंचने के लिए हर सर्वर को टेलीफोन नंबर की तरह अंकों वाला एक पता दिया जाता है। जिसे आईपी एड्रेस करत हैं।
ऐसे लोगों को पकड़ने के लिए सारे सिस्टम हैं। हमारे पास लिमिटेड संसाधन होने से दिक्कत आती है। साइबर क्राइम के मामलों में ऑनलाइन पेमेंट, फर्जी फोन कॉल्स सहित कई अपराध बढ़ गए हैं। इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने की जरूरत है।
प्रवीर आर्या, टेक एक्सपर्ट
पुलिस इस मामले में जांच कर रही है। जल्द ही काल करने वाले को ट्रेस कर लिया जाएगा। हर सूचना को पुलिस गंभीरता से लेकर काम कर रही है। फर्जी फोन कॉल करने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
हेमराज मीणा, एसपी सिटी