गोरखपुर (ब्यूरो).ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, सुबह स्नान के बाद पितरों का तर्पण करने के लिए सबसे पहले हाथ में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें अपनी पूजा स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करें। पितरों को तर्पण में जल, तिल और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही जिस दिन पितरों की मृत्यु हुई है, उस दिन उनके नाम से और अपनी श्रद्धा और यथाशक्ति के अनुसार भोजन बनवाकर ब्राह्मणों को दान करें। कौवा और श्वान में भी भोजन वितरित करें।
श्राद्ध करने वाले नहीं करें ये काम
ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार, जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं उन्हें पूरे 15 दिनों तक अन्य कर्म नहीं करना चाहिए। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करके ही कुछ खाना पीना चाहिए। तेल-उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
पितृपक्ष के मुख्य दिन
चौथ भरणी या भरणी पंचमी- गतवर्ष जिनकी मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध इस तिथि पर होता है। मातृनवमी- अपने पति के जीवन काल में मरने वाली स्त्री का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है। घात चतुर्दशी- युद्ध में या किसी तरह मारे गए व्यक्तियों का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है। सर्व पैत्री अमावस्या-इस दिन सब पितरों का श्राद्ध होता है। मातामह- नाना का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है।
महालया (पितृ विसर्जनी अमावस्या)
पंडित राकेश पांडेय के अनुसार, आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया कहते हैं। जो व्यक्ति पितृ पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण नहीं करते हैं, वे अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं, वे भी श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को ही करते हैं। इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है।
पितृपक्ष की श्राद्ध तालिका हृषीकेश पंचांग के अनुसार
-11 सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध
-12 सितंबर को द्वितीया और तृतीया श्राद्ध
-13 सितंबर को चतुर्थी श्राद्ध
-14 सितंबर को पंचमी श्राद्ध
-15 सितंबर को षष्ठी श्राद्ध
-16 सितंबर को कोई श्राद कर्म नहीं होगा
-17 सितंबर सप्तमी श्राद्ध
-18 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध
-19 सितंबर को नवमी श्राद्ध
-20 सितंबर को दशमी श्राद्ध
-21 सितंबर को एकादशी श्राद्ध
-22 सितंबर को द्वादशी श्राद्ध
-23 सितंबर को त्रयोदशी श्राद्ध
-24 सितंबर को चतुर्दशी श्राद्ध
-25 सितंबर को अमावस्या श्राद्ध