- 38 साल बाद विशेष योग में 15 दिन का पितृपक्ष

- पूर्णिमा और अमावस्या पर बन रहा है गज छाया योग

GORAKHPUR : पितरों का पर्व पितृपक्ष आज सुबह 6.03 मिनट से शुरू होकर 12 अक्टूबर की सुबह 8.51 मिनट तक रहेगा। इस साल पितरों को पिंडदान और जलांजलि से महा अक्षय की प्राप्ति होगी। सोमवार और चंद्रमा का संबंध पितृगणों और पितृलोक से है। आचार्य पं। शरद चंद्र मिश्र ने बताया कि पितरों का ऋण श्राद्ध से चुकाया जाता है।

इसलिए महत्वपूर्ण है पितृपक्ष

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का श्राद्ध करने वालों का गृहस्थ जीवन सुखी रहता है। पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए उनके वंशज हर साल पितृपक्ष में दान देते हैं। भारतीय परंपरा में यह माना जाता है कि पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। 15 दिन के इस पक्ष में पुत्र अपने पिता के नाम पर सुबह पीपल के पेड़ को जल देते हैं। पितृपक्ष में पिता के मृत्यु के दिन जल, तिल, जौ, कुश, अक्षत, दूध, पुष्प आदि से उनको श्रद्धा दिया जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध कराने का केवल पुत्रों को अधिकार होता है। अगर पुत्र न हो तो परिवार का कोई भी सदस्य श्राद्ध कर्म करा सकता है। यही नहीं विधवा पत्‍‌नी भी श्राद्ध कर्म करा सकती है।

38 साल बाद बना संयोग

38 साल बाद, पूर्ण चंद्र ग्रहण में पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है। हालांकि पूर्ण चंद्र ग्रहण भारत के पश्चिमी राजस्थान और पश्चिमी गुजरात के कुछ हिस्सों में ही दिखाई देगा। इसका श्राद्ध प्रक्रियापर कोई असर नहीं होगा। इससे पहले 1977 में ऐसा संयोग आया था।

कब बनता है गज छाया योग?

- जब पितृपक्ष में सूर्य और राहू या फिर सूर्य या केतु की युति हो तो गज छाया योग बनता है।

-सूर्य पर राहू या फिर केतु की दृष्टि पड़ने पर गज छाया योग बनता है।

गज छाया योग में श्राद्ध का फल

गज छाया योग में पड़ने वाले पितृ पक्ष को, वंश वृद्धि, धन संपत्ति और पितरों से मिलने वाले आशीर्वाद के लिये विशेष माना गया है। ऐसी मान्यता है कि गज छाया योग में पितृकर्म और तर्पण करने से, पांच गुना फल मिलता है। पितृ आत्मायें तृप्त होकर, अपने वंशजों को भरपूर आशीर्वाद देती हैं।