- जिले में नहीं सुधर रही सीएचसी-पीएचसी की दशा, लापरवाही और अव्यवस्था के कारण नहीं हो पा रहा ग्रामीणों का इलाज
- डॉक्टर की तैनाती का फायदा, गायब रहते हैं डॉक्टर्स
GORAKHPUR: सरकारी व्यवस्था के तहत हजारों करोड़ रुपए ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा पर खर्च होते हैं। सरकारें बड़े-बडे़ दावें करती हैं। कहा जाता है कि कोई गरीब इलाज के अभाव में नहीं मरेगा। किसी को जमीन बेचकर इलाज नहीं कराना पड़ेगा। लेकिन जब इन दावों की जमीनी हकीकत जांचने के लिए आई नेक्स्ट की टीम चार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पहुंची तो ग्रामीणों का इलाज भागवान भरोसे ही होता दिखा। यहां तो आज भी मरीज इलाज के लिए अपनी जमीन बेचने को मजबूर है।
डॉक्टर बैठते नहीं तो पेशेंट कहां जाएंगे
सिटी के आसपास स्थित चार सीएचसी- पीएचसी पर आई नेक्स्ट टीम ट्यूज्डे को पहुंची। टीम की पड़ताल में पता लगा कि तैनात डॉक्टर्स अपनी ड्यूटी नहीं करते। किसी न किसी बहाने वह गायब रहते हैं। इसलिए डॉक्टर्स पर प्राइवेट प्रैक्टि्स के आरोप भी लगते हैं। सीएचसी और पीएचसी पर डॉक्टर्स नहीं मिलते हैं। इसलिए मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ता है।
आखिर यहां क्यों नहीं आते मरीज
पीएचसी खोराबार
खोराबार ब्लाक कैंपस में स्थित
कुल गांवों की आबादी : एक लाख 84 हजार
पीएचसी पर डॉक्टर्स की तैनाती: पांच डॉक्टर इनमें दो महिला डॉक्टर
एक फार्मासिस्ट, तीन नर्स, एक वार्ड ब्वाय और एक स्वीपर
दवाओं की हालत: सर्दी, जुकाम, बुखार, दर्द सहित सामान्य दवाएं
थर्सडे मार्निग सुबह करीब आठ बजकर 59 मिनट पर आई नेक्स्ट टीम पहुंची। डॉक्टर के कमरे में रजिस्टर खुला था। फार्मासिस्ट के कमरे में तीन-चार लोग बैठकर आपस में बात कर रहे थे। डॉक्टर के बारे में पूछने पर बताया कि छह-सात मरीज को कुत्ता काटने वाली सूई लगी है। उनको देखकर अभी- अभी डॉक्टर साहब नाश्ता करने गए हैं। किसी ने डॉक्टर को मीडिया के आने की जानकारी दी। आननफानन में डॉक्टर अपने चैंबर में पहुंचे। मुस्कुराते हुए बोले कि बैठ जाइए। बताइए क्या काम है। नाश्ता करने चला गया था। हाथ में लिया हुआ जलेबी का टुकड़ा भी दिखाया। डॉक्टर ने बताया कि उनका नाम जितेंद्र पाल है। वह पीएचसी के प्रभारी चिकित्साधिकारी हैं। उनके अलावा यहां पर डॉ। राजेश कुमार, ओबेदुल हक, ज्योति और प्रतिभा की तैनाती है। यह पूछने पर बाकी डॉक्टर्स कहां तो बोले कि एक की इमरजेंसी ड्यूटी रहती है। बाकी दो लेडीज डॉक्टर्स जिला अस्पताल में ट्रेनिंग पर गई हैं। डॉक्टर राजेश अभी थोड़ी देर में आते ही होंगे।
तैनाती भारी भरकम, दिखे कुछ लोग
पीएचसी चरगांवा
चरगांवा ब्लाक के पहले स्थित प्राइमरी हेल्थ सेंटर
कुल आबादी : दो लाख 67 हजार 149
शहरी क्षेत्र : 74008
ग्रामीण क्षेत्र: 193141
तैनात डॉक्टर्स: आठ डॉक्टर्स, तीन महिला डॉक्टर, तीन फार्मासिस्ट, चार वार्ड ब्वाय, एक स्वीपर, एक दाई, एक लैब टेक्नीशियन, दो बाबू और अन्य सहित 32 स्टाफ चरगांवा पीएचसी पर डॉक्टर्स की भारीभरकम तैनाती की गई है। इन सब के बावजूद यहां मरीज नहीं दिखे। यहां का सन्नाटा कई सवाल खड़े कर रहा था। मेडिकल कालेज से महज एक किलोमीटर दूर हास्पिटल पर जब टीम पहुंची तो मेन गेट से समस्या शुरू हो गई। सड़क पर पानी जमा था। पीएचसी पर जाने का कोई रास्ता न होने से लोग अगल-बगल से आ जा रहे थे। टीम सीधे प्रभारी डॉ। अजय देवकुलियार के कमरे में पहुंची। वह बाहर निकल रहे थे। पूछने पर बताया कि मीटिंग के लिए जिले पर जाना है। सबको सहेजकर ले जा रहे हैं। उनके कमरे में एक डॉक्टर और एक कर्मचारी बैठे थे। उन्होंने खुद को डॉक्टर अभिषेक बताया। फार्मासिस्ट अशोक कुमार अपने कमरे में दवा बांटते नजर आए।
सुविधाएं न मिलने के कारण नहीं आते मरीज
पीएचसी मानीराम
सोनौली हाइवे से सटा, मानीराम
कुल आबादी : एक लाख 30 हजार
तैनात डॉक्टर्स: दो
एक फार्मासिस्ट, एक वार्ड ब्वाय
मानीराम पीएचसी का निर्माण करीब तीन साल पहले सवा करोड़ की लागत से हुआ था। एक इंटर कॉलेज के पीछे स्थित पीएचसी तक पहुंचने का कोई पक्का रास्ता नहीं। कच्चे रास्ते से होकर आई नेक्स्ट टीम पीएचसी में दाखिल हुई। मेज के सामने कुर्सी लगाकर बैठा आदमी खड़ा हो गया। तपाक से पूछ पड़ा। क्या काम है। बैठ जाइए डॉक्टर साहब आते होंगे। तीन साल पहले बनी पीएचसी खुद बीमार नजर आई। वार्ड ब्वाय अजय कुमार ने बताया कि सुविधाओं का भारी अभाव है। इसलिए मरीज नहीं आते हैं। जब डॉक्टर बैठेंगे तब न मरीज आएंगे का तर्क देने पर वह चुप हो गया। फार्मासिस्ट का कमरा खाली पड़ा था। वार्ड ब्वाय ने कहा कि फार्मास्टि विमल कुमार छुट्टी पर गए हैं। डॉक्टर साहब मरीज देखकर खुद दवा दे देते हैं।
तीन साल में टूटने लगी सवा करोड़ की बिल्डिंग
मानीराम सीएचसी की हालत देखकर सरकारी व्यवस्था पर तरस आया। तीन साल पहले हास्पिटल में कमरों का निर्माण किया गया। निर्माणदायी संस्था के गोलमाल की कहानी दीवारें बयां कर रही थीं। हास्पिटल में प्रॉपर इंतजाम के लिए अलग- अलग कमरे बनाए गए हैं। पंखा और बल्ब लगाकर कनेक्शन पूरे अस्पताल में फैला दिया गया है। लेकिन बिजली की सप्लाई नहीं हो सकी। बिजली का कनेक्शन और जनरेटर न होने से पानी का मोटर भी नहीं चलता। इसके अलावा हास्पिटल के कमरों में खिड़कियों के शीशे टूटे पड़े हैं। दीवारों का प्लास्टर झड़ रहा है, फर्श धंसने लगी है। ऑपरेशन थियेटर, वार्ड, फार्मासिस्ट कक्ष सहित एक दर्जन कमरे बना दिए गए हैं। लेकिन इन कमरों में सिर्फ बेड के अलावा कुछ भी नहीं। हास्पिटल के बगल में बना कर्मचारी आवास भी वीरान पड़ा है।
12 बजे तक केवल 30 पेशेंट
पीएचसी जंगल कौडि़या
हाइवे किनारे, ब्लाक कैंपस में स्थित
कुल आबादी: दो लाख 49 हजार
तैनात डॉक्टर्स: चार
फार्मासिस्ट दो, तीन स्टाफ नर्स, एक वार्ड ब्वाय।
पीएचसी के बाहर, दीवार के आसपास बकरियां चरती नजर आई। गेट पर प्राइवेट कर्मचारी भजुराम पर्ची बना रहा था। भजुराम ने बताया कि सुबह से 30 मरीजों की पर्ची बना चुके हैं। प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉक्टर लालदेव की कुर्सी खाली पड़ी थी। उनके कमरे में बैठे डॉ। एन सिद्दिकी और ज्योति गुप्ता पेशेंट्स को देखने में बिजी थे। पूछने पर बताया कि डॉक्टर लालदेव फील्ड में गए हैं। चौथे डॉक्टर हरिओम पांडेय फार्मासिस्ट के कमरे में पेशेंट देख रहे थे। वह पर्चा लिखकर सीधे फार्मासिस्ट से मेज पर फैली दवाओं में से उठाकर देने को कह रहे थे। उनके टेबल पर दर्द, बुखार, पेट दर्द जैसी जनरल दवाएं ही नजर आई। मरीजों की कम संख्या के बारे में पूछने पर डॉक्टर हरिओम सोचने लगे। सोच समझकर बताया कि मौसम के अनुसार घटते बढ़ते रहते हैं। सोमवार के दिन बहुत भीड़ होती है।