- कोशिश करें कि पटाखें न जलाएं, जलाएं तो सावधान रहें
- कोई झुलस जाएं तो परिजन घबराएं नहीं, तत्काल फर्स्ट एड दें और डॉक्टर के पास ले जाएं
- आई नेक्स्ट के ग्रुप डिस्कशन में एक्सपर्ट्स ने दी राय
GORAKHPUR: दीवाली खुशियों को त्योहार है, लेकिन कई बार हमारी नादानियां त्योहार पर गम दे जाती हैं। असावधानी से जलाए गए पटाखों से कई बार आग लग जाता है और जन-धन का नुकसान होता है। लेकिन, इसके बाद भी लोग सावधानी नहीं अपनाते और घबराहट में ऐसी गलतियां कर देते हैं कि झुलसे व्यक्ति की जान पर बन आती है। इसलिए कोशिश करें कि इको दिवाली मनाएं। और यदि पटाखे जलाते भी हैं तो सावधानी जरूर रखें। इसके साथ ही यदि पटाखों से झुलस गए तो घबराने की बजाय फर्स्ट एड इस्तेमाल करें और हालात को बिगड़ने से बचाएं। ये बातें आई नेक्स्ट के ग्रुप डिस्कशन में निकलकर सामने आई।
ऐसे करें फर्स्ट एड
डॉ। संदीप श्रीवास्तव का कहना है कि तेज आवाज वाला पटाखा जब फूटता है तो उसके अंदर के कड़ों का तापमान 800 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। कई बार लोग हाथ में पटाखा लेकर जलाते हैं। जिससे हाथ में पटाखा फूट जाता है तो हाथ के एक बड़े हिस्से को सुन्न कर देता है। वहीं हाथ के हिस्से को भी जला देता है। ऐसे में घायल व्यक्ति के जले हिस्से पर आलू या पेस्ट न लगाएं, बल्कि घायल हाथ को नीचे कर दें और उस पर ठंडा पानी डालें। यह प्रक्रिया तब तक करते रहें जबतक कि उसके हाथ से जलन न समाप्त हो जाए। जब जलन मामूली रह जाए और हाथ से बारूद के कण पूरी तरह निकल जाए, तो कॉटन का कपड़ा हाथ पर बांध दें और फिर बर्फ का लेयर चढ़ा दें। वहीं अगर आंख में बारूद का कण चला गया हो तो आंख को सीधा करके छीटा न मारें, बल्कि पहले जिस आंख में सबसे अधिक जलन हो रही हो, उस आंख में सिर बाये या दाये झुका लें और उसके बाद पानी का छींटा मारें।
पटाखे से नुकसान
- वायु मंडल का प्रदूषण बहुत अधिक खराब हो जाता है।
- हवा गर्म हो जाती है।
- लोग घायल हो सकते हैं।
- कान से कम सुनाई देने लगेगा।
- आग लग सकती है।
- पैसे का नुकसान हो सकता है।
- हार्ट या अस्थमा पीडि़त लोगों के लिए परेशानी बढ़ जाती है।
- आंख में बारूद या धुआं जाने पर पुतली के झुलसने का खतरा रहता है। पुतली में घाव बन सकता है जिससे व्यक्ति अंधा भी हो सकता है।
बॉक्स
पटाखे के तत्व और उससे नुकसान
कॉपर - आंख पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। दमा रोगी को सांस की परेशानी हो जाती है।
कैडमियम- किडनी पर दुष्प्रभाव, एनीमिया।
लेड- मानसिक समस्या
जिंक- उल्टी
सल्फर डाइआक्साइड- दमा
पटाखा जलाते समय बरतें सावधानी:
- पटाखा अपने पास के तीन वर्ग मीटर के एरिया के ऑक्सीजन में फैलता है इसलिए पटाखे से कम से कम चार वर्ग मीटर की दूरी बनाएं रखें
- गार्जियन किसी भी हाल में अपने बच्चों को अकेला न छोड़ें।
- यदि पटाखे छोड़ना ही चाहते हैं तो अनार, चरखी, छुरछुरी, चटाई बम, अनार बम का उपयोग करें।
- खुले एरिया में पटाखा जलाएं।
- जहां पटाखा जलाया जा रहा हैं, वहां पर बालू, पानी और कंबल जरूर रखें।
- अस्थमा के रोगियों को दिवाली की रात बाहर न ले जाएं, अगर बाहर जा भी रहे हो या बैठ रहे हों तो मास्क जरूर पहन लें।
- आग लगने पर या घायल होने पर संतुलन न खोए।
- पटाखा जलाते समय तीन वर्ग मीटर के दायरे में कोई भी ज्वलनशील पदार्थ न रखें।
- पटाखे को धुएं से दूर रहें, कोशिश करें कि यह शरीर के अंदर न जाए।
कोट्स
खुशी की कोई परिभाषा नहीं होती है, इसलिए खुशी मनाने के लिए पटाखे जला रहे हैं तो उसमें सावधानी बरतें। पटाखे जलाते समय एक बात का ध्यान रखें कि बारूद किसी भी हाल में अपने शरीर से टच न होने दें। अगर शरीर से टच हो गया तो उसे तत्काल साफ कर लें।
- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, फिजिशियन
दीप जलाने का मतलब तो समझ में आ रहा है, लेकिन पटाखा क्यों जलाते हैं? अगर बच्चों की खुशी के लिए जला रहे हैं तो उसमें कम आवाज और धुआं वाले पटाखे का उपयोग करें।
- दीपक दूबे, प्रोफेशनल
घर में बच्चों को मना करना बहुत ही मुश्किल है। वह पटाखे के लिए जिद करते हैं। ऐसे में घर में हार्टपेशेंट को संकट हो जाता है। ऐसे घर के लोग बच्चों को समझाएं कि शौक से ज्यादा जीवन जरूरी है।
सुनील कुमार, गार्जियन
गार्जियन को इस बात को ध्यान देने की जरूरत है कि तेज आवाज वाले पटाखे किसी भी हाल में न जलाने दें। कोशिश करें कि घर में एक भी पटाखा न जले तो अच्छा है।
विनोद पांडेय, प्रोफेशनल
मेरे यहां 20 से 25 युवाओं की एक ग्रुप है जो यह तय किया है कि दीवाली के अवसर पर पटाखा नहीं फोड़ेंगे, यही नहीं हम लोगों को ग्रुप ने यह भी तय किया है कि दीवाली मिट्टी में मिट्टी के दीए ही जलाएंगे।
अक्षय कुमार, गार्जियन
पहले पूरी फैमिली के सदस्य एक साथ पटाखा जलाते थे, जिससे कुछ पटाखों में ही पूरा परिवार इंज्वाय कर लेता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अलग-अलग पटाखे जलाने से प्रदूषण भी अधिक होता है और खतरा भी बढ़ जाता है। कोशिश करें कि एक साथ ही पटाखे जलाएं।
जितेंद्र द्विवेदी, पर्यावरणविद्