गोरखपुर (ब्यूरो)।इस बीमारी में रीढ़ के फ्रेक्चर का जल्दी पता भी नहीं चलता। चेकअप के बाद ही इसके बारे में कुछ कहा जा सकता है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर एक बार यह बीमारी हो गई तो जड़ से कभी खत्म नहीं होती। केवल इसे कम किया जा सकता है। पश्चिमी देशों की तुलना में अब भारत में यह बीमारी गंभीर रूप ले रही है। हालांकि, अच्छी डाइट और प्रॉपर रूप से एक्टिव रहने पर इस बीमारी को काबू किया जा सकता है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी तेजी से घिर रही है, ऐसे में उन्हें जागरूक रहने की जरूरत है। शुक्रवार को यूपी आर्थोकॉन में भी मुख्य वक्ता से लेकर उपस्थित डॉक्टरों ने इस पर चर्चा की। यूनाइटेड किंगडम (यूके) के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ। गोविंद सेठी ने भारत में इस बीमारी के बढऩे के कारणों और निदान के बारे में बताया। आर्थोपेडिक एसोसिएशन व आर्थोपेडिक क्लब के तत्वावधान में रेडिशन ब्लू, मोहद्दीपुर में आयोजित तीन दिवसीय यूपी आर्थोकान में देश-विदेश के हड्डी रोग विशेषज्ञ शामिल हुए।

विमेन में तेजी से फैल रही बीमारी

डॉ। गोविंद सेठी के अनुसार पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। पुरुषों में जहां यह बीमारी 55 साल के बाद देखने को मिल रही है। वहीं, महिलाएं 40 साल की उम्र में ही चपेट में आ रही हैं। हालांकि अब यूथ में इसकी बीमारी तेजी से होने के आसार हैं। डॉ। गोविंद के अनुसार बच्चों में न्यूट्रीशन की कमी, विटामिन-डी की के कारण बोन कमजोर हो जाती है, जिस कारण उनमें रिकेट्स नामक बीमारी होती है। बच्चों को हेल्दी डाइट और कैल्शियम प्रॉपर देना चाहिए।

बीमारी के कारण

आरामदायक जीवन शैली

दिनभर कुर्सी पर बैठे रहना

गलत पॉस्चर में कंप्यूटर, लैपटाप और मेाबइल पर घंटे बिताना

गलत खानापान

फास्ट फूड खाने से कैल्शियम में कमी आने से

क्या हैं लक्षण

शुरुआती दिनों में ऑस्टियोप्रोसिस का कोई लक्षण नही दिखाई देता है। इसका पता तब चलता है जब कूल्हे, रीढ़ की हड्डी या कलाई में फ्रेक्चर होने लगता है। कुछ खास लक्षणों के आधार पर ऑस्टियोप्रोसिस के बारे में पता लगाया जाता है। इसमें मसूढ़े में ढीला पन आ जाता है। हाथों में पकडऩे की क्षमता में कमी आ जाती है, नाखूनों के कमजोर होने से भी अनुमान लगाया जाता है। इसके साथ ही पीठ और गर्दन में दर्द शुरू हो जाता है।

पश्चिमी देशों की तर्ज पर हो ज्वाइंट रजिस्टर

डॉ। गोविंद सेठी ने कहा कि यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड में नेशनल ज्वाइंट रजिस्टर बना है। इसकी जरूरत भारत में भी है। जिससे कि जोड़ प्रत्यारोपण के आंकड़ों को मेंटेन किया जा सके। इस रजिस्टर में हर जोड़ प्रत्यारोपण का विवरण दर्ज होगा। 10 साल से कम समय में जोड़ प्रत्यारोपण विफल होने पर मामले की पूरी पड़ताल की जा सके। इसे फेल्योयर सर्जरी भी कहते हैं। रांची के रिम्स के हड्डी रोग विभाग के एचओडी डॉ। सुधीर कुमार ने बताया कि कोविड की पहली लहर में पेशेंट्स को स्टेरॉयड बड़े पैमाने पर दिए गए। उसका असर अब सामने आ रहा है। पहली लहर के संक्रमितों के कूल्हे की हड्डी सूख रही है। इससे एवैस्कुलर नैक्रोसिस (एवीएन) कहते हैं। इसमें कूल्हा प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है।

जमीन पर बैठने से घिस रही प्लेट

आर्थोपेडिक एसोसिएशन के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ। अतुल श्रीवास्तव ने बताया कि घुटनों के जोड़ अब यूथ में भी हो रहा है। उत्तर भारत में इसकी प्रमुख वजह जमीन पर बैठने बैठना है। इसके कारण घुटनों की मांसपेशियां और प्लेट घिस रही हैं। जिससे गठिया हो जाता है। कुछ दिन बाद घुटने काम नहीं करते। इससे बचने के लिए 40 वर्ष से अधिक उम्र के व्यस्क को जमीन पर बैठने से परहेज करना चाहिए। पूजा स्थल में पीढ़े पर बैठना चाहिए। शाकाहारी कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए पनीर, ड्राई फ्रूट, अंजीर, भिंडी का सेवन जरूर करें। इस मौके पर आयोजन सचिव डॉ। अमित मिश्रा, डॉ। अतुल श्रीवास्तव, डॉ। सुधीर कुमार, डॉ। बीबी त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।