- सिटी से आपरेट बसों पर नहीं लिखते मोबाइल नंबर
- वारदात होने पर ड्राइवर की पहचान मुश्किल, सिर्फ चालान करती है पुलिस
GORAKHPUR: सिटी में चलने वाली बसें और ऑटो बिल्कुल भी सेफ नहींहै। इनमें महिलाओं की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। इतना ही नहीं, महिलाओं के साथ कोई अनहोनी होने पर ड्राइवर्स की पहचान आसान काम नहीं। व्हीकल के रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर तलाश भारी पड़ेगी। मामला फंसने पर बस ऑनर्स आसानी से मुकर जाएंगे। पुलिस की जांच में मामला अटक कर रह जाएगा। वेंस्डे को आई नेक्स्ट टीम ने सिटी में चलने वाली बसों और ऑटो के सेफ्टी मेजर का जायजा लिया। इसमें काफी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। इसके लिए आई नेक्स्ट टीम ने पहले सिटी में चलने वाली बसों का हाल जाना। आखिर उन पर ड्राइवर का नाम और मोबाइल नंबर लिखा है कि नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि सिटी में बसों और आटो का एक जैसा हाल है। एक तो उन पर ड्राइवर को नंबर नहींलिखे है। और तो और कई गाडि़यों पर रजिस्ट्रेशन नंबर तक लिखा नहींमिला। जांच पड़ताल के दौरान पुलिस सिर्फ चालान करती है। सुरक्षा के मानक को लेकर कभी गंभीर नहीं रहती।
आई नेक्स्ट टीम रेलवे स्टेशन पर पहुंची। यहां से करीब दो सौ बसें रोजाना देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज और सोनौली के लिए आवागमन करती हैं। रेलवे स्टेशन के इर्दगिर्द बसें तो नजर आई, लेकिन बसों के आगे या पीछे किसी का मोबाइल नंबर नहीं नजर आया। इक्का दुक्का गाडि़यों पर नंबर्स लिखे गए थे। लेकिन वे सिर्फ बुकिंग के लिए थे। जरूरत पड़ने किसी ड्राइवर, कंडक्टर, खलासी की पहचान मुश्किल होगी।
स्पॉट वन
स्थान: सीएस चौराहा
रिपोर्टर: आप कहां से कहां तक बस चलाते हैं।
ड्राइवर: गोरखपुर से लेकर देवरिया तक, आपको इससे क्या मतलब है?
रिपोर्टर: वर्दी क्यों नहीं पहनते, क्या आपको आई कार्ड नहीं मिला?
ड्राइवर: अरे, यार क्या दिमाग खा रहे हैं। ये दिल्ली, मुंबई है क्या, वर्दी पहनकर चलेंगे
रिपोर्टर: नाम तो बता दीजिए, ड्राइविंग लाइसेंस हैं क्या?
ड्राइवर: क्यों बता दें, लाइसेंस घर पर रखे हैं। कल आइएगा दिखा देंगे।
स्पॉट टू:
स्थान: रेलवे रोडवेज बस स्टेशन से आगे, सवारी भर रही बस
रिपोर्टर: आपका नाम क्या है। बस लेकर कहां जा रहे हो?
ड्राइवर: अजीत सिंह है, कुशीनगर की सवारी भर रहे हैं साहब बताइए। आप को कहां जाना है।
रिपोर्टर: हमको कहीं नहीं जाना है। गाड़ी पर मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिखा है?
ड्राइवर: पीछे देख लीजिए, लिखा होगा। हमारा नहीं होगा तो मालिक का होगा।
रिपोर्टर: किसी का नंबर नहीं लिखा है। और आपका आई कार्ड और वर्दी कहां है?
ड्राइवर: दीपावली पर एक सेट कपड़ा नहीं मिलता। वर्दी कहां से सिलाकर पहने, मालिक देंगे तो जरूर पहन लेंगे।
सीट महिलाओं की कब्जा पुरुषों का
ज्यादातर बसों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर पुरुषों का कब्जा होता है। आई नेक्स्ट की पड़ताल में यह नजर आया। एक बस के भीतर तो महिलाओं के बैठने का स्थान भी आरक्षित नहीं किया गया था। दूसरी बस में महिला सीट पर पुरुषों का कब्जा था। गोद में बच्चे को लेकर महिला किसी तरह से एडजस्ट करने की कोशिश में लगी रही।
पब्लिक प्लेस पर छेड़छाड़ के दर्ज हुए क्ब्भ् मामले
दिन भर में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ के अभद्र बातें की जाती है। गंदे कमेंट करना, अश्लील बातें कहना, राह चलते इशारे करना जैसी घटनाएं खूब होती हैं। लेकिन इनमें ज्यादातर मामले दर्ज नहीं कराए जाते। पुलिस रिकार्ड के अनुसार जनवरी से लेकर नवंबर मंथ के बीच महिलाओं के खिलाफ 8ब्म् अपराध हुए। इनमें 88 अपराध फर्जी पाए गए। सार्वजनिक स्थानों, बसों, टैक्सी में महिलाओं के प्रति अभद्र बातें की गई। ऐसे मामलों की कुल क्ब्भ् शिकायतें दर्ज कराई गईं। छेड़खानी के क्ख् मामले दर्ज कराए गए।
मर्डर ख्ख्
रेप क्07
अश्लील हरकतें क्ब्भ्
छेड़खानी क्ख्
महिला उत्पीड़न ख्ख्9
चेन स्नेचिंग ख्क्
दहेज हत्या ब्9
ऑटो ड्राइवर की नहीं है कोई पहचान
स्थान - शास्त्री चौक
आई नेक्स्ट की टीम दोपहर दो बजे शास्त्री आटो स्टैंड पर पहुंची। यहां से ऑटो रिक्शा बेतियाहाता होते हुए नौसड़ तक जाता है। दूसरा तरफ से वे सवारी लेकर गोलघर होते हुए धर्मशाला बाजार तक आते हैं। इस स्टैंड पर खड़े आधे से अधिक ऑटो पर से ड्राइवर और ओनर के नंबर गायब मिले। जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने उनमें से कुछ एक ड्राइवरों से बात करने की कोशिश की तो वे नियमों को लेकर बगले झांकते नजर आए।
रिपोर्टर- वर्दी, आई कार्ड और डीएल कहां हैं?
जितेंद्र प्रसाद - आज तक कभी वर्दी नहीं पहनी। शहर में कोई भी ड्राइवर वर्दी नहीं पहनता, मैं क्यों पहनूं? वर्दी, आईडी कार्ड और डीएल सब घर पर है।
रिपोर्टर- गाड़ी पर ड्राइवर और मालिक का नाम और नंबर क्यों नहीं है?
जितेंद्र प्रसाद -यह हमें नहींपता है। वैसे भी हमारी तो रोज गाड़ी बदल जाती है।
स्थान- रेलवे स्टेशन
आई नेक्स्ट टीम ने दोपहर को रेलवे स्टेशन रूट्स का निरीक्षण। रेलवे स्टेशन से मेडिकल कॉलेज के लिए ऑटो सवारियां भर रही थीं। इसमें भी कई ऐसे आटो थे जिन पर नंबर ही गायब थे। एकाध को छोड़ दिया जाए तो किसी भी गाड़ी पर मालिक और ड्राइवर का नाम नहीं था। आई नेक्स्ट टीम ने एक ड्राइवर से बात करने की कोशिश की तो उसका जवाब कुछ ऐसा था।
रिपोर्टर- तुम्हारा नाम क्या है और कहां से कहां तक चलते हो?
ड्राइवर - छोटू। रेलवे स्टेशन से मेडिकल कॉलेज आते-जाते हैं।
रिपोर्टर- कितनी सवारियां हैं?
ड्राइवर- आप पुलिस वाले हैं क्या जो पूछ रहे हैं? वैसे लगभग क्भ् सवारियां हैं।
रिपोर्टर- आईडी कार्ड कहां है? वर्दी क्याें नहीं पहनी है? किसी संगठन से जुड़े हैं क्या?
ड्राइवर- कोई आईडी कार्ड नहीं है। डीएल घर पर छूट गया है। संगठन वाले चंदा वसूलते हैं। इसलिए कभी संगठन से नहीं जुड़ा।
सिटी के प्रमुख ऑटो स्टैंड
- धर्मशाला बाजार
- गोलघर काली मंदिर
- यूनिवर्सिटी चौराहा
- शास्त्रीचौक
- नार्मल टैक्सी स्टैंड
- रुस्तमपुर ढाला
नगर निगम को भी लगा रहे चूना
ऑटो वाले केवल नियम का ही उल्लघंन नहीं कर रहे हैं, बल्कि हर साल नगर निगम को भी लाखों रुपए का चूना लगा रहे हैं। शासनादेश ख्008 के तहत नगर निगम सीमा के अंदर चलने वाले ऑटो को नगर निगम से लाइसेंस लेना होता है। नगर निगम के लाइसेंस विभाग के हेड क्लर्क राजेंद्र सिंह का कहना है कि सिटी में लगभग कुल 7भ्00 ऑटो जीएमसी के आकंड़े में हैं। इनमें क्भ्00 ने नगर निगम में रजिस्टर्ड हैं। जब बाकी को ऐसा करने को कहा जाता है तो वे हंगामा करते हैं।
बिना परमिट दौड़ रही है गाड़ी
सिटी में बिना परमिट ही ऑटो दौड़ रहे हैं। शास्त्री चौक पर चलने वाले एक ऑटो पर नंबर प्लेट गायब था। जब ड्राइवर से बात की गई तो उसने बताया कि अभी एक साल पहले गाड़ी ली गई थी। अभी केवल आरटीओ में रजिस्ट्रेशन हुआ है नंबर नहीं मिला है। जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने ड्राइवर का नाम पूछा तो वह भाग गया। सिटी के सभी आटो स्टैंड पर लगभग क्00 से अधिक ऑटो बिना नंबर के हैं। पुलिस पकड़ती है तो केवल चालान करके छोड़ देती है। नंबर लगवाने के लिए कभी दबाव नहीं बनाती।
सिटी में ऐसे टैंपो वाले अधिक हैं, जिन पर मालिक और ड्राइवर की कौन कहे, गाड़ी का नंबर तक गायब है। संगठन की अगली बैठक में इस मुद्दे को उठाया जाएगा।
शत्रुघन मिश्रा, गोरक्षपूर्वाचल आटो आपरेटर एसोसिएशन