गोरखपुर (ब्यूरो).दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स के अलावा ओलंपियन देने वाली गोरखपुर हॉकी की नर्सरी अब सुविधाओं के अभाव में मुरझाने लगी है। अगर सुविधाओं पर ध्यान दिया जाए तो मेडल्स की बरसात होगी।
सिंथेटिक टर्फ जरूरी, पर व्यवस्था नहीं
आज के दौर में स्टेट, नेशनल या इंटरनेशनल लेवल पर जो भी हॉकी के कॉम्प्टीशन होते हैं। वह सिंथेटिक एस्ट्रोटर्फ पर ही होते हैं। मगर सबसे जरूरी और बुनियादी सुविधा होने के बाद भी यहां के खिलाड़ी अब तक इससे वंचित है। मिट्टी और घास के ग्राउंड से शुरुआत करने के बाद जब खिलाड़ी किसी बड़े कॉम्प्टीशन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचते हैं, तो वह खुद को कॉम्प्टीशन में कहीं खड़ा नहीं पाते। कड़ी मशक्कत के बाद एक-दो मैच जीत लिया तो जीत लिया, वरना बोरिया-बिस्तर पैक कर वापस लौट जाते हैं। जिस तरह की सुविधाएं मिल रही हैं, उससे जिम्मेदार सिर्फ नेशनल में पार्टिसिपेशन से ही संतोष कर लेते हैं। ऐसे में गोरखपुर को एक और एस्ट्रोटर्फ की जरूरत है, जिस पर सभी प्रैक्टिस कर सकें।
सिर्फ इंतजार कर रहे हैं खिलाड़ी
प्रदेश सरकार ने जब स्पोट्र्स कॉलेज में एस्ट्रोटर्फ तैयार है। हॉकी खिलाड़ी और जिम्मेदारों को कुछ उम्मीद जगी है। एक इंटरनेशनल मैच भी हुआ है, लेकिन इसके बाद कोविड की मार से पवेलियन का काम जो अटका है, वह अब तक पूरा नहीं हो सका है। इसकी वजह से वहां पर खास हॉकी की ट्रेनिंग के लिए हॉस्टल में पहुंचे खिलाडिय़ों का मनोबल टूट रहा है। इतना ही नहीं सिर्फ हॉस्टल के लोगों के लिए व्यवस्था होने से यहां पर दूसरे खिलाडिय़ों का पहुंचना मुमकिन नहीं है, ऐसे में खिलाडिय़ों को उसी ग्रास ग्राउंड पर प्रैक्टिस करनी पड़ रही है, जिसका बड़े टूर्नामेंट में कोई मायने नहीं है। फिलहाल शहर के दूसरे खिलाडिय़ों को अभी जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए इंतजार करना होगा।
सिर्फ तीन जगह होती है प्रैक्टिस
गोरखपुर में पहले हॉकी की नर्सरी हुआ करती थी। ज्यादातर स्कूल और कॉलेजेज के साथ ही स्टेडियम, स्पोट्र्स कॉलेज में हॉकी की प्रैक्टिस होती थी। टूर्नामेंट में भी काफी जोरदार लड़ाई और टक्कर देखने को मिलती थी। मगर अब सिर्फ तीन जगह ही हॉकी खेली जाती है। एमएसआई इंटर कॉलेज, जिसने गोरखपुर को दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स दिए हैं, वहां अब भी हॉकी को जिंदा रखने की कोशिश जारी है। वहीं स्पोट्र्स कॉलेज और रीजनल स्टेडियम में भी हॉकी का कैंप चलता है, जहां प्रैक्टिस हो रही है। बाकी सभी स्कूल और कॉलेजेज के साथ यूनिवर्सिटी लेवल तक हॉकी खत्म हो चुकी है। हाल में ही रेलवे से बतौर स्पोट्र्स अफसर रिटार्ड ओलंपियन प्रेम माया ने लड़कियों को फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग देनी शुरू की है, जिसमें अब इंटरेस्ट नजर भी आने लगा है।
नहीं है कोई जॉब गारंटी
हॉकी से दूर जाने की वजह जब टटोली गई, तो इसमें सबसे टॉप पर जॉब सिक्योरिटी का सवाल सामाने आया। सिर्फ रेलवे के अलावा कोई भी विभाग स्पोट्र्स कोटे के तहत खिलाडिय़ों की भर्ती नहीं करता, उसमें भी एक गेम से रेलवे भी कितनी भर्ती कर सकता है। वहीं प्रदेश सरकार के पास दर्जनों विभाग हैं, सबमें स्पोट्र्स कोटा के तहत भर्ती की जा सकती है, लेकिन काफी समय से इसमें कोई भर्ती नहीं की गई। इससे जॉब गारंटी की चांसेज और भी कम हो गई।
सुविधाएं मिलें तो बरसेंगे मेडल
ऐसा नहीं कि गोरखपुराइट्स में टैलेंट की कमी है। एस्ट्रोटर्फ न होने के बाद भी शहर के होनहार बेहतर प्रदर्शन करते हैं। बस अगर उन्हें एस्ट्रोटर्फ के साथ जरूरी सुविधाएं मिलने लगें तो मेडल्स की बरसात हो। यह हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि पिछले साल आए रिजल्ट को देखकर यह कहा जा सकता है। साल 2015 में प्रैक्टिस के बाद जहां 4 स्टूडेंट्स नेशनल खेलने के लिए गए, वहीं करीब चार प्लेयर्स का साई हॉस्टल और स्टेडियम में सेलेक्शन भी हुआ है। अगर इन्हें स्टार्टिंग से ही बेहतर सुविधाएं मिलने लगे तो गोरखपुराइट्स मेडल्स की बरसात करेंगे।
इनका हुआ सेलेक्शन -
सादिक जूनियर इंडिया
प्रीती दुबे, टीम इंडिया
2016 - ममता गौड़, सांई हॉस्टल भोपाल
2015 -
वर्षा आर्या - केडी सिंह बाबू स्टेडियम
आदित्य तिवारी - साईं हॉस्टल बरेली
रोहित श्रीवास्तव - साईं हॉस्टल बरेली
आतिफ - स्पोट्र्स कॉलेज लखनऊ
ये हैं हॉकी के इंटरनेशनल खिलाड़ी
जनपद ने हाकी में सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं। इनमें अनवार अहमद, एसएम अली सईद, अवध नरेश, मुकेश श्रीवास्तव, स्व.शफीक अहमद, गुलाम सरवर, राम प्रकाश ङ्क्षसह, मो। आरिफ, मो.जिल्लुर रहमान, प्रदीप शर्मा, जनार्दन गुप्ता, शमशू जुहा, मो। इम्तियाज, सनवर अली और दिवाकर राम शोमिल हैं। जिन्होंने समय-समय पर देश का प्रतिनिधित्व किया। इसी तरह महिला खिलाडिय़ों में प्रेम माया, रंजना श्रीवास्तव, पुष्पा श्रीवास्तव, रीता पांडेय, संजू ओझा, रजनी चौधरी, परवीन शर्मा, निधि मुकेश, वर्तिक ङ्क्षसह व इति श्रीवास्तव ने भारतीय महिला हाकी टीम का प्रतिनिधित्व किया। वर्तमान में प्रीति दूबे भारतीय हाकी टीम की कैंप में प्रशिक्षण ले रहीं हैं।
शहर में हॉकी के लिए बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं। जब यहां के खिलाड़ी ग्रास ग्राउंड में खेलने के बाद किसी बड़े इवेंट में पार्टिसिपेट करने के लिए जाते हैं, तो उन्हें सिंथेटिक एस्ट्रोटर्फ का मैदान मिलता है। इसमें उन्हें काफी दिक्कत होती है, जिससे वह कोई कमाल नहीं दिखा पाते। प्राइमरी लेवल पर ही उन्हें यह सुविधा मिलेगी, तो बात बन सकती है।
- प्रेम माया, अर्जुन और लक्ष्मीबाई अवार्डी, ओलंपियन, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर
गोरखपुर में स्कूलों से हॉकी बिल्कुल खत्म हो गई है। बस इस्लामियां कॉलेज में ही हॉकी के मैच होते हैं। इसमें भी होने वाले टूर्नामेंट में एक्का-दुक्का टीमें ही पार्टिसिपेट करती हैं। इसको बेहतर करने के लिए स्कूल लेवल पर हॉकी को फिर से स्टार्ट करना होगा। वहीं स्टेट लेवल पर अब खिलाडिय़ों को सुविधाएं दी जाने लगी हैं।
- जिल्लुर्रहमान, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर
यह रही है उपलब्धियां
- जूनियर में फाइनल जीती
- सब जूनियर में फाइनल जीती
- खेलो इंडिया में थर्ड प्लेस
- सीनियर में सेमीफाइनल