- जिस बेटे ने घर से निकाला, उसके लिए की दुआ
- वृद्धा आश्रम की महिलाओं ने रखा जिउतिया व्रत
GORAKHPUR : बूढ़ी काया, कंपकपाते हाथ, हाथों में पूजा की थाली, दुआ के लिए हाथ उठा मांओं ने उनकी सलामती की प्रार्थना की जिसने घर से बेघर कर दिया। बुढ़ापे में सेवा करने के बजाय दुत्कार कर भगा दिया। सोमवार की शाम वही माएं अपने कलेजे के टुकड़े के लिए बरियार के पौधे को पूज रही थी। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि 'पूत कपूत भले ही, माता कुमाता कभी ना'। ये चौपाई चरितार्थ हो रही है कि रानीडीहा स्थित महिला 'वृद्धा'आश्रम में जिसे देखकर लोगों की आंखों में आंसू आ गए। लोगों ने यहां तक कह दिया कि कोई मां ही ऐसा कर सकती है। उम्र का कोई पड़ाव हो, मां तो आखिर मां होती है।
बेटे की सलामती की दुआ
जिला प्रशासन के सहयोग से चाणक्यपुरी कॉलोनी में महिला वृद्धाआश्रम का संचालन किया जा रहा है। उम्र के अंतिम पड़ाव में बेघर हो चुकी 47 महिलाओं को ठौर मिला है जिनके घरवालों ने निकाल दिया। किसी के बेटे से दुत्कारा तो किसी के पति ने बेसहारा कर दिया। ऐसे में उनका नया ठिकाना वृद्धाश्रम ही बना। सोमवार को जिउतिया का त्योहार मनाया जाना था। इसके लिए दो दिन पहले से ही बुजुर्ग माताएं तैयारी में जुट गई। वृद्धाश्रम संचालक की मदद से लोगों ने पूजा सामग्री मंगाई। रविवार की रात बेटे के लिए व्रत उठाया। सोमवार की तड़के जगी। पूजा की तैयारी करके सूरज को ताकती रही। शाम ढलने पर बरियार पूजकर बेटे के सलामती की दुआ की।
भजन और आरती में बीता वक्त
वृद्धाश्रम में शकुंतला, शोभा, रुमाली, उर्मिला, रसमुनिया सहित आठ महिलाओं ने जिउतिया व्रत रखा है। उनके साथ भजन-कीर्तन और आरती करके सभी महिलाओं ने वक्त बिताया। परिवार के साथ बिताए लम्हों को याद करके उनकी आंखों में आंसू आए भी तो उन्होंने न तो तकदीर को कोसा, न ही बेटे या पति को जिम्मेदार ठहराया। वह भजन में तब तक रमी रहीं, जब तक सांझ का पहर रात में न बदल गया। वृद्धाश्रम से जुड़ी कनक ने बताया कि इसके पहले कुछ महिलाओं ने तीज व्रत भी रखा था। जिउतिया व्रत न रखने के लिए उनको काफी समझाया गया था, लेकिन बेटे के लिए निर्जल व्रत रखने के लिए माताएं अड़ी रहीं।
मां त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति होती है। पूत कपूत हो सकता है लेकिन कोई माता कभी कुमाता नहीं होती। वृद्धाश्रम में जिउतिया रखने वाली बुजुर्ग महिलाओं को देखकर कम से कम इस बात पर यकीन किया जा सकता है।
समर बहादुर, जिला प्रोबेशन अधिकारी, गोरखपुर