- एक रुपए में फरियादियों को मिल जाता था अपनी अप्लीकेशन का स्टेटस
- छह साल से धूल फांक रही मशीन, अंग्रेजी दफ्तर में पूछते हैं लोग सवाल
GORAKHPUR: कलेक्ट्रेट के अंग्रेजी दफ्तर स्थित भूलेख ऑफिस में आनेजाने वाले गेट पर ठिठक जाते हैं। ऐसा नहीं कि कोई उनको रोक देता है, बल्कि गेट के बाहर रखी एक मशीन उन्हें ठिठकने पर मजबूर करती है। इस पर नजर पड़ते ही लोगों के मन में एक सवाल कौंधता है। आखिर यह क्या बला है? सवाल का जवाब जानने की फिराक में ऑफिस में इधर-उधर चक्कर लगाने पड़ जाते हैं, लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं। कुछ पूछने पर कलेक्ट्रेट के कर्मचारी सोचते हैं। फिर कहते हैं बहुत कुछ तो नहीं पता लेकिन सालों पहले यह मशीन महज एक रुपए में फरियादियों के हालचाल बताती थी। शिकायत वाले प्रार्थना पत्रों के निस्तारण का स्टेटस पता लग जाता था।
एक रुपए में मिल जाती थी जानकारी
अंग्रेज दफ्तर में रखी इस मशीन का यूज करीब छह साल से नहीं हो रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि मशीन लगने के बाद यह कुछ दिनों तक तो वर्किंग कंडीशन में रही, लेकिन इसके बाद जब यह बंद हुई तो किसी ने इसकी सुधि नहीं ली। तभी से मशीन बेकार पड़ी है। कर्मचारियों का कहना है कि इस मशीन से फरियादियों को उनके प्रार्थना पत्र की जानकारी मिलती थी। लोग एक रुपए का सिक्का डालकर अपने अप्लीकेशन का स्टेटस जान लेते थे। डीएम आफिस से जुड़े लोगों का कहना है कि वर्ष 2005-06 में यहां जनसेवा केंद्र स्थापित किया था। तब इस मशीन का यूज होता था।
नहीं लगाने पड़ते चक्कर
डीएम दफ्तर में औसतन 50 से 60 फरियादी रोजाना पहुंचते हैं। विभिन्न विभागों की शिकायत सुनने के बाद अफसर- कर्मचारी अप्लीकेशन को संबंधित विभाग में ट्रांसफर कर देते हैं। डाक में चढ़कर यह संबंधित विभाग को चली भी जाती है। उसपर क्या कार्रवाई हुई, इसकी जानकारी के लिए फरियादियों को भटकना पड़ता है। प्रार्थना पत्रों के संबंध में जानकारी देने में कर्मचारी आनाकानी करते हैं। कार्रवाई का स्टेटस जानने में लोगों को पसीना छूट जाता है। ऐसे में यह मशीन काफी मददगार थी और इसकी मदद से फरियादी आसानी से अपना अप्लीकेशन स्टेटस जान लेते थे।
तहसील दिवस पर फोकस अफसर
डीएम दफ्तर को रोजाना पहुंचने वाली शिकायतों पर बहुत जोर नहीं रहता। एक अफसर दूसरे को आवश्यक कार्रवाई का निर्देश देकर अप्लीकेशन फॉरवर्ड कर देते हैं। तहसील दिवस को छोड़कर बाकी दिनों में आने वाली शिकायतों पर किसी का जोर नहीं रहता है। ऐसे में इस तरह के इंतजाम की जरूरत है जिससे पब्लिक आसानी से प्रार्थना पत्रों के बारे में जानकारी ले सके।