- औसत से भी 50 फीसदी कम हुई बारिश
- सितंबर में पानी नहीं बरसा तो बरबाद हो जाएंगे फसलें
GORAKHPUR: बारिश कम हो या ज्यादा, मौसम हर हाल में डराता है। ज्यादा बारिश होने पर जहां बाढ़ का खतरा बढ़ने लगता है, वहीं कम पानी बरसने से सूखे का संकट गहरा जाता है। पिछले कुछ दिनों से गोरखपुर एडमिनिस्ट्रेशन इसी पशोपेश में परेशान है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि बाढ़ से बचाव की तैयारी की जाए या फिर सूखे से निपटने की। कुछ मंथ पहले से ज्यादा बारिश होने की संभावना पर बाढ़ अलर्ट ने प्रशासन की टेंशन बढ़ा दी थी, वहीं अब अच्छी न होने से सूखे का डर सताने लगा है।
50 प्रतिशत से कम बारिश से सूखे की आहट
जिला प्रशासन से जुड़े लोगों का कहना है कि इस बार बारिश बेहद ही कम हुई है। जून, जुलाई और अगस्त माह में औसत बारिश 50 फीसदी से कम है। किसी क्षेत्र को सूखा घोषित करने के लिए औसत बारिश होनी चाहिए। इसके साथ फसलों की पैदावार के पांच साल के रिकार्ड का आंकलन किया जाता है। जिले में वर्ष 2014 में हुदहुद की वजह से गेहूं की फसल खराब हो गई थी। कम बारिश होने से धान पर संकट गहरा गया है।
तीन माह के भीतर इतनी हुई बारिश
माह औसत वर्ष 2014 में बारिश वर्ष 2015 में बारिश एवरेज
जून 163.6 95.12 71.57 43.75
जुलाई 322.3 168.02 112.85 35.01
अगस्त 349.5 170.08 194.58 55.67
टोटल 845.4 433.22 379.00 45.37
तीन माह के भीतर सिर्फ 45.37 प्रतिशत बारिश
जिला प्रशासन के आपदा विभाग में मौजूद आंकड़ों के अनुसार तीन माह के भीतर बारिश औसत से कम हुई। एवरेज रेनफॉल की अपेक्षा पांच प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। बारिश का आंकड़ा इससे भी कम होता, लेकिन एक अगस्त को हुई 64.28 मिलीमीटर बारिश ने इस संकट को थोड़ा कम किया। सावन के बाद यदि सितंबर मंथ में भादो सूखा रहा तो फसलों पर इसकी मार पड़नी तय है। हालांकि संडे को जिले में कुछ जगहों पर बारिश हुई है, लेकिन छिटपुट बारिश से औसत पर असर नहीं पड़ेगा। उधर बारिश न होने पर सूखा राहत का बोझ बढ़ेगा। वर्ष 2014 में जिले में राहत के लिए करीब 72 करोड़ की डिमांड की गई थी।
बारिश का आंकड़ा औसत से कम रहा है। यह संकेत ठीक नहीं है लेकिन सितंबर में बारिश होने से यह संकट दूर हो सकता है।
गौतम, प्रबंधक, जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण