गोरखपुर (महेंद्र प्रताप सिंह)।लगन में डीजे और पटाखों की तेज आवाज समस्याएं और भी बढ़ा रही हैं। सबसे अधिक समस्या रिहायशी इलाकों और साइलेंट जोन में है। सड़क पर तेज हार्न भी लोगों को बीमार कर रहा है। साथ ही परिवहन के साधन हों या फिर मनोरंजन, निर्माण, रेल, धरना प्रदर्शन, रैलियां। सभी से ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। इसकी वजह से लोगों का बैलेंस बिगड़ जा रहा है और वे हादसे के शिकार हो रहे हैं।
मानक से अधिक शोरगुल, रोकने की कवायद कुछ नहीं
गोरखपुर के हर एरिया में मानक से अधिक शोरगुल है। साइलेंस जोन में 40-50 डेसीबल से अधिक शोरगुल नहीं होना चाहिए, लेकिन यह अपने अधिकतम पर है। यही नहीं रेसीडेंशियल एरिया में 45-55 डेसीबल मानक है, लेकिन यहां भी शोर चरम पर है। कुछ ऐसा ही हाल इंडस्ट्रियल और कॉमर्शियल एरिया का भी है। यहां भी मानक से अधिक शोरगुल है। डॉक्टरों के अनुसार यह शोरगुल पहले तो पता नहीं चलता, लेकिन धीरे-धीरे बीमारियों के रूप में जकड़ लेता है। इससे लोगों की जान भी जा रही है। सामान्यत: 25 डेसीबल तक ध्वनि को खामोशी, 26 से 65 तक को शांत, 66 से ऊपर शोर और 75-80 से ऊपर अत्याधिक शोर कहा जाता है। 80 डेसीबल तक शोर मनुष्य का स्वास्थ्य झेल सकता है, लेकिन 90 डेसीबल से अधिक की ध्वनि अत्याधिक नुकसानदेह है। गोरखपुर में ध्वनि प्रदूषण 90 डेसीबल के पार है। इसके बाद भी इसे रोकने की कवायद का अता पता नहीं है।
कलेक्ट्रेट और अस्पताल एरिया में नहीं है साइलेंस
कलेक्ट्रेट और अस्पताल एरिया साइलेंट जोन में आते हैं। इसके बाद भी यहां खूब ध्वनि प्रदूषण है। साइलेंट जोन में 40 से 50 डेसीबल तक शोर का मानक है, लेकिन यहां डेढ़ गुना शोर है। ध्वनि प्रदूषण से सर्वाधिक दिक्कत अस्पतालों में इलाज कराने वालों को हो रही है। यहां विभिन्न प्रकार के मरीज शोर की वजह से कई नई बीमारियों से भी घिर रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण से अस्पताल प्रशासन भी अंजान है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन बेअसर
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार रात 10 बजे के बाद पटाखे जलाना, तीव्र ध्वनि वाले म्यूजिक बजाना प्रतिबंधित है। अगर इसके बाद भी कोई नियम उल्लंघन करता है तो पुलिस प्रशासन सख्ती से उसे बंद कराएगा और ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्रवाई करेगा। इसके बाद भी शहर में पटाखे जल रहे हैं और डीजे पर म्यूजिक बज रहा है।
बीआरडी में बढ़ रहे मरीज
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग की ओपीडी में आने वाले पेशेंट की संख्या औसतन 15 से 20 है। जो बढ़ भी रहे हैं, जिनकी सुनने की क्षमता कम हो गई है। विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि ईयरफोन का लगातार इस्तेमाल करना, ज्यादा पसीना आने से ईयरफोन में फंफूदी से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है। इतना ही नहीं वाहनों के हार्न से भी यह रोग हो रहा है। कई बार तो आदमी को सुनाई देना बंद हो जाता है।
नॉइज पॉल्युशन से होने वाली बीमारी
कमजोरी, अनिद्रा, तनाव, हाई ब्लडप्रेशर, एकाग्रता में कमी, बहरापन, बात करने में परेशानी।
नॉइज पॉल्युशन के स्रोत
मोटर वाहन, विमान, रेल यातायात, औद्योगिक और आवासीय इमारतों का निर्माण, फैक्टरी और मशीनरी, बिजली उपकरण, आडियो सिस्टम आदि।
इस तरह रोक सकते हैं ध्वनि प्रदूषण
उद्योग धंधों एवं कारखानों को शहरों या आबादी से दूर स्थापित करने चाहिए। वाहनों में लगे हार्नों को तेज बजाने से रोकने, शहरों और औद्योगिक इकाइयों एवं सड़कों के किनारे पौधरोपण से ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। साथ ही निजी वाहनों की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल से ध्वनि प्रदूषण को रोका जा सकता है।
ये है मानक
एरिया सुबह 6 से रात 10 बजे तक रात 10 से सुबह 6 बजे तक
इंडिस्ट्रयल 75 डेसीबल 70 डेसीबल
कॉमर्शियल 65 डेसीबल 55 डेसीबल
रेसीडेंशियल 55 डेसीबल 45 डेसीबल
साइलेंट जोन 50 डेसीबल 40 डेसीबल
दिसंबर में चरम पर रहा शोर
एरिया सुबह 6 से रात 10 बजे तक रात 10 से सुबह 6 बजे तक
इंदिरा बाल विहार (कॉमर्शियल) 96 डेसीबल 70 डेसीबल
महादेव झारखंडी (रेसीडेंशियल) 78 डेसीबल 66 डेसीबल
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल (साइलेंट जोन) 84 डेसीबल 62 डेसीबल
यूपीएसआईडीसी इंडस्ट्रियल एरिया 80 डेसीबल 60 डेसीबल
कलेक्ट्रेट (साइलेंट जोन) 74 डेसीबल 64 डेसीबल
नवंबर में भी नहीं थी राहत
एरिया सुबह 6 छह से रात 10 बजे तक रात 10 से सुबह 6 बजे तक
इंदिरा बाल विहार (कॉमर्शियल) 94 डेसीबल 70 डेसीबल
महादेव झारखंडी (रेसीडेंशियल) 76 डेसीबल 64 डेसीबल
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल (साइलेंट जोन) 80 डेसीबल 60 डेसीबल
यूपीएसआईडीसी इंडस्ट्रियल एरिया 86 डेसीबल 62 डेसीबल
कलेक्ट्रेट (साइलेंट जोन) 72 डेसीबल 60 डेसीबल
अक्टूबर में शोरगुल ने बढ़ाई परेशानी
एरिया सुबह 6 से रात 10 बजे तक रात 10 से सुबह 6 बजे तक
इंदिरा बाल विहार (कॉमर्शियल) 92 डेसीबल 68 डेसीबल
महादेव झारखंडी (कॉमर्शियल) 74 डेसीबल 62 डेसीबल
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल (साइलेंट जोन) 78 डेसीबल 58 डेसीबल
यूपीएसआईडीसी इंडस्ट्रियल एरिया 88 डेसीबल 62 डेसीबल
कलेक्ट्रेट (साइलेंट जोन) 70 डेसीबल 60 डेसीबल
ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए संस्थाओं को नोटिस दिया जाता है। पुलिस-प्रशासन के साथ मिलकर कार्रवाई की जाती है। साथ ही लोगों से अपील की जाती है कि ध्वनि प्रदूषण को कम करने की कोशिश करें। यह सबके सहयोग से ही कम हो सकता है।
- पंकज यादव, रीजनल पॉल्युशन ऑफिसर
बाइक से लेकर ट्रक की आवाज 70 से 90 डेसीबल तक होती है। रोज सात से आठ घंटे तक 70 डेसीबल तक आवाज के संपर्क में रहने के कारण कानों के सुनने की क्षमता कम होने लगती है। 40 डेसीबल से ज्यादा आवाज कान की सुनने की क्षमता पर सीधा असर डालती है।
डॉ। आदित्य पाठक, ईएनटी विभाग, बीआरडी मेडिकल कॉलेज
ध्वनि प्रदूषण से मरीजों को सर्वाधिक परेशानी होती है। अस्पताल के आसपास तीव्रता अधिक होने से सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण हार्ट के साथ कई बीमारियों को जन्म भी देता है। ऐसे में लोगों को ऐसी जगहों से दूर रहना चाहिए। साथ ही बचाव के उपाय भी करना चाहिए।
डॉ। आर के गुप्ता, हार्ट विशेषज्ञ, जिला अस्पताल