- द्वितीय राष्टीय पुस्तक मेले का आकर्षण हैं स्थानीय साहित्यकार
- अपने ही शहर में फिराक गोरखपुरी को नहीं जानता कोई
- मुनव्वर राना की मां को मिल रहे सबसे अधिक खरीदार
GORAKHPUR : देश और दुनिया के कई हिस्सों में अपनी शेरो शायरी से महफिल लूटने वाले फिराक गोरखपुरी अपने ही शहर में बेगाने हैं। द्वितीय राष्टीय पुस्तक मेले में उनकी रचनाओं और कृतियों के दर्जन भर संग्रह देखने के बाद एक पाठक ने सवाल किया कि ये मेला समाप्त होने के बाद फिराक गोरखपुरी की रचनाओं की ये पुस्तकें और कहां मिलेंगी? पास खड़े एक साहित्यकार ने कहा कि मुझे लगता है कि कहीं नहीं। तभी एक दूसरे हिंदी के छात्र ने कहा कि मुझे तो फिराक साहब की इन कृतियों के बारे में जानकारी नहीं थी। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने फिराक गोरखपुरी की पुस्तकों के नाम के संबंध में मेले में आए करीब एक दर्जन लोगों से बात की। जिसमें चौंका देने वाले तथ्य सामने आए। विश्वनाथ तिवारी, रामदेव शुक्ल, परमानंद श्रीवास्तव और रंजना जायसवाल, प्रमोद कुमार, महेश अश्क जैसे दर्जन भर साहित्यकारों के इस शहर में फिराक गोरखपुरी की एक भी पुस्तक का नाम कोई नहीं बता पाया।
बेगाने हैं फिराक गोरखपुरी
पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन के स्टाल में फिराक गोरखपुरी की दर्जन भर से अधिक कृतियां लगाई गई हैं। उसमें धरती की करवट, नजीर की बानी, हजार शेर फिराक के, राग विराग, रम्ज-ओ-किनायात, रूह-ए कायनात, शबपमिस्तां, गुफ्तगू, हमारा सबसे बड़ा दुश्मन, उर्दू कविता, उर्दू गजलगोई, उर्दू की इश्किया शायरी, आदमी, मन आनम, नौरत्न शामिल हैं। हैरान कर देने वाली बात यह है कि अपने ही शहर में ढूंढने पर भी फिराक साहब की चार पुस्तकें नहीं मिलती। सिटी की लाइब्रेरी में भी फिराक गोरखपुरी की दो से अधिक पुस्तक नहीं मिलेंगी। जबकि फिराक गोरखपुरी की पांच दर्जन से अधिक पुस्तकें छप चुकी हैं।
ºींच रहीं शहर की कृतियां
द्वितीय राष्टीय पुस्तक मेले में गोरखपुर के सहित्यकारों की कृतियां लोगों को अपनी ओर खींच रही हैं। लोग फिराक गोरखपुरी की दर्जन भर से अधिक छपी पुस्तकों, रामदेव शुक्ल की आंनंदघन और मन दर्पण, रंजना जायसवाल की 'क्रांति है प्रेम' को देखते ही लोग ठहर जा रहे हैं।
सिटी में कहीं भी फिराक साहब की पुस्तकें नहीं मिलती हैं। कुछ पढ़ने वालों के पास दो तीन पुस्तकें हो सकती हैं। मेरे पास भी दो हैं। मैंने कुछ और लोगों के पास भी देखीं हैं। किसी दुकान पर फिराक गोरखपुरी की पुस्तकें नहीं देखने को मिलतीं।
प्रो। अनंत मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग, गोरखपुर यूनिवर्सिटी
गोरखपुर की पुस्तकों की दुकानों और लाइब्रेरी से फिराक गोरखपुरी की पुस्तकें विलुप्त हैं। मैंने कई बार कुछ पुस्तकों के बारे में पता किया। किसी दुकान पर उनकी प्रसिद्ध पुस्तक नहीं मिली। एक-दो दुकानों पर पुस्तकें देखने को मिल जाती हैं।
डा। रजीर्उरहमान, लेक्चरर, उर्दू विभाग, गोरखपुर यूनिवर्सिटी